मंत्र शक्ति MANTR SHAKTI

मंत्र शक्ति 

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।

अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।

गुणातीतं नीराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

ॐ is the primordial sound heard-evolved with the evolution of life over the earth. Its a single syllable constituting of three syllables अ, ऊ & म The Almighty is addressed in three ways :: ॐ, Tat, Sat. Its the sound that was created-heard at the time of evolution. Its recitation at the beginning grant the desired result. Om “ॐ” is the root word used as a prefix before uttering-singing the verses-sacred hymns described in the Veds, which leads to desired outcome of the verses (Shloks, Mantr, Richas-sacred verses).

Video link :: https://youtu.be/Sfn7vW8cUn8
ॐ ओ३म् AUM-OM
जिस समय परमेष्ठी ब्रह्मा जी पूर्व सृष्टि का ज्ञान सम्पादन करने के लिये एकाग्र चित्त हुए, उस समय उनके हृदयाकाश से कण्ठ-तालु आदि स्थानों से, संघर्ष से रहित एक अत्यन्त विलक्षण अनाहत नाद प्रकट हुआ। उस अनाहत नाद की उपासना कर योगी मोक्ष के अधिकारी होते हैं।
ॐ ब्रह्माण्ड की अनाहत ध्वनि है। इसे अनहद नाद भी कहते हैं। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में यह अनवरत जारी है। इसे प्रणवाक्षर (प्रणव+अक्षर) भी कहते है प्रणव का अर्थ है, “प्रकर्षेण नूयते स्तूयते अनेन इति, नौति स्तौति इति वा प्रणवः”।

प्रणव वह शब्द, अनाहत नाद है जो सृष्टि की उत्पत्ति के समय सुना गया।जब जीव अपनी मनोवृत्तियों को रोक लेता है, तब उसे भी इस अनाहत नाद का अनुभव होता है। बड़े-बड़े योगी उसी अनाहत नाद की उपासना करते हैं और उसके प्रभाव से अन्तःकरण के द्रव्य, अधिभूत क्रिया-अध्यात्म और कारक-अधिदैव रूप मल को नष्ट करके वह परम गति रूप मोक्ष प्राप्त करते हैं, जिसमें जन्म-मृत्यु संसार चक्र नहीं है।
उसी अनाहत नाद से “अ ” कार, “उ” कार और “म” कार रूप तीन मात्राओं से युक्त “ॐ कार” प्रकट हुआ। इस ॐ कार की शक्ति से ही प्रकृति अव्यक्त से व्यक्त रूप में परिणित हो जाती है। ॐ कार स्वयं व्यक्त एवं अनादि है और परमात्म स्वरूप होने से स्वयं प्रकाश भी है।  
परब्रह्म परमेश्वर-परमात्मा के तीन प्रकार के नाम :: ॐ, तत् और सत्।ॐ ओम-ओ३म् ज्ञान का आधार और प्रणव है।
‘‘समाहित ब्रह्म के ह्रदय कोश से नाद (अव्यक्त शब्द) प्रगट होता है। दोनों कान बंद कर अंदर वह ध्वनि सुनाई देता है”।[श्रीमद्भागवत्]
जिस परम ध्येय को भगवान्, परब्रह्म परमेश्वर अथवा परमात्मा के नाम से कहा जाता है, उसके स्वरूप का बोध भी ॐ कार के द्वारा ही होता है। क्रतु, यज्ञ आदि के अनुष्ठान के प्रारम्भ में जो ॐ का उच्चारण किया जाता है, उससे ही ऋचाएँ अभीष्ट फल देती हैं। वैदिकों के लिए प्रणव “ॐ” का उच्चारण प्रमुख है। ईश्वर के नाम, स्मरण और मंत्र के पहले इसका उच्चारण करने से जातक की कामना पूर्ति होती है।इसीलिये शास्त्र विधि से नियत यज्ञ, दान और तप रुप क्रियाएँ सदा “ॐ” इस परमात्मा के नाम का उच्चारण करके ही आरम्भ होती हैं।[श्रीमद्भागवत गीता 17.24]
ॐ ओ३म् AUM-OM
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
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गायत्री मंत्र ::जिस प्रकार ओङ्कार क जप, श्रवण, भजन जातक के मन-मस्तिष्क को शान्त करता है, चिंताओं, मनोरोग, व्याधियों से मुक्त करता है उसी प्रकार गायत्री मंत्र सुख, सम्पत्ति, समृद्धि, ऐश्वर्य प्रदान करता है। santoshsuvichar.blogspot.com गायत्री मंत्र के 146 रूपों का संग्रह प्रस्तुत किया है। 
ॐ भू: भुव: स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम्भर्गो देवस्य धीमहि।धियो यो नः प्रचोदयात्॥
हे पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल लोक के प्रकाशक! सबसे उत्तम, सूर्य की भाँति उज्जवल, कर्मों का उद्धार करने वाले, आत्म चिंतन और बुद्धि में धारण-ध्यान करने के योग्य परमात्मा, हमें शक्ति दें। उस प्राण स्वरूप, दुःख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पाप नाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।जो सविता हम लोगों की बुद्धि को प्रेरित करता है, सम्पूर्ण श्रुतियों में प्रसिद्ध उस द्योतमान जगत्स्रष्टा परमेश्वर के संभजनीय परब्रह्मात्मक तेज का हम लोग ध्यान करते हैं।जो सविता देव हमारी बुद्धियों को सन्मार्ग में प्रेरित करते हैं, उन पूर्ण तेजस्वी, सर्व-प्रकाशक, सर्वदाता, सर्वज्ञाता, सर्वश्रेष्ठ, परमात्मा के उस दिव्य-महान पापों का पतन करने वाले, तेज को धारण करते हुए उसी का ध्यान करें।यह मंत्र ऋग्वेद में उद्धृत है। इसके ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं। यह मंत्र विश्वामित्र के इस सूक्त के 18 मंत्रों मे केवल एक है। इसकी महिमा का अनुभव ऋषियों ने किया। संपूर्ण ऋग्वेद के 10 सहस्र मंत्रों में से इस मंत्र के अर्थ की गंभीर व्यंजना सबसे अधिक की गई। इस मंत्र में 24 अक्षर हैं। उनमें आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण हैं।इन अक्षरों से पहले तीन व्याहृतियाँ और उनसे पूर्व प्रणव या ओंकार को जोड़कर मंत्र का पूरा स्वरूप :- 
(1), ॐ,
(2). भूर्भव: स्व: और
(3). तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। 
मंत्र के इस रूप को मनु ने सप्रणवा, सव्याहृतिका गायत्री कहा है और जप में इसी का विधान किया है। गायत्री एक ओर विराट् विश्व और दूसरी ओर मानव जीवन, एक ओर देवतत्व और दूसरी ओर भूत तत्त्व, एक ओर मन और दूसरी ओर प्राण, एक ओर ज्ञान और दूसरी ओर कर्म के पारस्परिक संबंधों की पूरी व्याख्या कर देती है। इस मंत्र के देवता सविता हैं, सविता सूर्य की संज्ञा है, सूर्य के नाना रूप हैं, उनमें सविता वह रूप है जो समस्त देवों को प्रेरित करता है। जाग्रत् में सविता रूपी मन ही मानव की महती शक्ति है। जैसे सविता देव है, वैसे मन भी देव है।[देवं मन: ऋग्वेद 1.164.18]
गायत्री के पूर्व में जो तीन व्याहृतियाँ हैं, वे भी सहेतुक हैं :-
“भू”:- पृथ्वी लोक, ऋग्वेद, अग्नि, पार्थिव जगत् और जाग्रत् अवस्था का सूचक है। 
“भुव:” अंतरिक्ष लोक, यजुर्वेद, वायु देवता, प्राणात्मक जगत् और स्वप्नावस्था का सूचक है। 
“स्व:” द्युलोक, सामवेद, आदित्य देवता, मनोमय जगत् और सुषुप्ति अवस्था का सूचक है।
ॐ :: प्रणव; ओउम;
भूर :- मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला, 
भुवः :- दुख़ों का नाश करने वाला,
स्वः :- सुख़ प्रदान करने वाला।
गायत्रीमन्त्र ::
 सूर्य :: ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥1॥
ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकिरणाय धीमहि। तन्नो भानुः प्रचोदयात्॥2॥
ॐ प्रभाकराय विद्महे दिवाकराय धीमहि। तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्॥3॥
ॐ अश्वध्वजाय विद्महे पाशहस्ताय धीमहि। तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्॥4॥
ॐ भास्कराय विद्महे महद्द्युतिकराय धीमहि। तन्न आदित्यः प्रचोदयात्॥5॥
ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकराय धीमहि। तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्॥6॥
ॐ भास्कराय विद्महे महातेजाय धीमहि। तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्॥7॥
ॐ भास्कराय विद्महे महाद्द्युतिकराय धीमहि। तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्॥8॥
चन्द्र ::
ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि। तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात्॥9॥
ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्वाय धीमहि। तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात्॥10॥ॐ निशाकराय विद्महे कलानाथाय धीमहि। तन्नः सोमः प्रचोदयात्॥11॥
अङ्गारक, भौम, मङ्गल, कुज ::
ॐ वीरध्वजाय विद्महे विघ्नहस्ताय धीमहि। तन्नो भौमः प्रचोदयात्॥12॥
ॐ अङ्गारकाय विद्महे भूमिपालाय धीमहि। तन्नः कुजः प्रचोदयात्॥13॥
ॐ चित्रिपुत्राय विद्महे लोहिताङ्गाय धीमहि। तन्नो भौमः प्रचोदयात्॥14॥
ॐ अङ्गारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि। तन्नो भौमः प्रचोदयात्॥15॥
बुध :: 
ॐ गजध्वजाय विद्महे सुखहस्ताय धीमहि। तन्नो बुधः प्रचोदयात्॥16॥
ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे रोहिणी प्रियाय धीमहि। तन्नो बुधः प्रचोदयात्॥17॥
ॐ सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि। तन्नो बुधः प्रचोदयात्॥18॥
गुरु :: 
ॐ वृषभध्वजाय विद्महे क्रुनिहस्ताय धीमहि। तन्नो गुरुः प्रचोदयात्॥19॥
ॐ सुराचार्याय विद्महे सुरश्रेष्ठाय धीमहि। तन्नो गुरुः प्रचोदयात्॥20॥
शुक्र :: 
ॐ अश्वध्वजाय विद्महे धनुर्हस्ताय धीमहि। तन्नः शुक्रः प्रचोदयात्॥21॥ 
ॐ रजदाभाय विद्महे भृगुसुताय धीमहि। तन्नः शुक्रः प्रचोदयात्॥22॥
ॐ भृगुसुताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि। तन्नः शुक्रः प्रचोदयात्॥23॥
शनीश्वर, शनैश्चर, शनी ::
ॐ काकध्वजाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि। तन्नो मन्दः प्रचोदयात्॥24॥
ॐ शनैश्चराय विद्महे सूर्यपुत्राय धीमहि। तन्नो मन्दः प्रचोदयात्॥25॥
ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि। तन्नः सौरिः प्रचोदयात्॥26॥
राहु :: 
ॐ नाकध्वजाय विद्महे पद्महस्ताय धीमहि। तन्नो राहुः प्रचोदयात्॥27॥
ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि। तन्नो राहुः प्रचोदयात्॥28॥
केतु ::
ॐ अश्वध्वजाय विद्महे शूलहस्ताय धीमहि। तन्नः केतुः प्रचोदयात्॥29॥
ॐ चित्रवर्णाय विद्महे सर्परूपाय धीमहि। तन्नः केतुः प्रचोदयात्॥30॥
ॐ गदाहस्ताय विद्महे अमृतेशाय धीमहि। तन्नः केतुः प्रचोदयात्॥31॥
पृथ्वी ::
ॐ पृथ्वी देव्यै विद्महे सहस्रमर्त्यै च धीमहि।तन्नः पृथ्वी प्रचोदयात्॥32॥
ब्रह्मा ::
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसारूढाय धीमहि। तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्॥33॥
ॐ वेदात्मनाय विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि। तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्॥34॥
ॐ चतुर्मुखाय विद्महे कमण्डलुधराय धीमहि। तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्॥35॥
ॐ परमेश्वराय विद्महे परमतत्त्वाय धीमहि। तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्॥36॥
विष्णु ::
ॐ त्रैलोक्यमोहनाय विद्महे कामदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥37
नारायण ::
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥38॥ 
वेङ्कटेश्वर ::
ॐ निरञ्जनाय विद्महे निरपाशाय धीमहि। तन्नः श्रीनिवासः प्रचोदयात्॥39॥
राम ::
ॐ रघुवंश्याय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि।तन्नो रामः प्रचोदयात्॥40॥
ॐ दाशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि।तन्नो रामः प्रचोदयात्॥41॥
ॐ भरताग्रजाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि।तन्नो रामः प्रचोदयात्॥42॥
ॐ भरताग्रजाय विद्महे रघुनन्दनाय धीमहि।तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥43॥ 
कृष्ण ::
ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात्॥44॥
ॐ दामोदराय विद्महे रुक्मिणीवल्लभाय धीमहि। तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥45॥
ॐ गोविन्दाय विद्महे गोपीवल्लभाय धीमहि। तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥46॥
गोपाल ::
ॐ गोपालाय विद्महे गोपीजनवल्लभाय धीमहि।तन्नो गोपालः प्रचोदयात्॥47॥ 
पाण्डुरङ्ग ::
ॐ भक्तवरदाय विद्महे पाण्डुरङ्गाय धीमहि। तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥48॥
नृसिंह ::
ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्णदंष्ट्राय धीमहि। तन्नो नृसिंह: प्रचोदयात्॥49॥
ॐ नृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि। तन्नः सिंहः प्रचोदयात्॥50॥
परशुराम ::
ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि। तन्नः परशुरामः प्रचोदयात्॥51॥
इन्द्र ::
ॐ सहस्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि। तन्न इन्द्रः प्रचोदयात्॥52॥
हनुमान ::
ॐ आञ्जनेयाय विद्महे महाबलाय धीमहि। तन्नो हनूमान् प्रचोदयात्॥53॥
ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो हनूमान् प्रचोदयात्॥54॥
मारुती ::
ॐ मरुत्पुत्राय विद्महे आञ्जनेयाय धीमहि। तन्नो मारुतिः प्रचोदयात्॥55॥
दुर्गा ::
ॐ कात्यायनाय विद्महे कन्यकुमारी च धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥56॥
ॐ महाशूलिन्यै विद्महे महादुर्गायै धीमहि। तन्नो भगवती प्रचोदयात्॥57॥
ॐ गिरिजायै च विद्महे शिवप्रियायै च धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥58॥
शक्ति ::
ॐ सर्वसंमोहिन्यै विद्महे विश्वजनन्यै च धीमहि। तन्नः शक्तिः प्रचोदयात्॥59॥
काली ::
ॐ कालिकायै च विद्महे श्मशानवासिन्यै च धीमहि। तन्न अघोरा प्रचोदयात्॥60॥
ॐ आद्यायै च विद्महे परमेश्वर्यै च धीमहि।तन्नः कालीः प्रचोदयात्॥61॥
देवी ::
ॐ महाशूलिन्यै च विद्महे महादुर्गायै धीमहि। तन्नो भगवती प्रचोदयात्॥62॥
ॐ वाग्देव्यै च विद्महे कामराज्ञै च धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्॥63॥
गौरी ::
ॐ सुभगायै च विद्महे काममालिन्यै च धीमहि। तन्नो गौरी प्रचोदयात्॥64॥
लक्ष्मी ::
ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे  विष्णुप्रियायै धीमहि। तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्॥65
ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥66॥ 
सरस्वती ::
ॐ वाग्देव्यै च विद्महे विरिञ्चिपत्न्यै च धीमहि। तन्नो वाणी प्रचोदयात्॥67॥
 सीता ::
ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै च धीमहि। तन्नः सीता प्रचोदयात्॥68॥
राधा ::
ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि।तन्नो राधा प्रचोदयात्॥69
अन्नपूर्णा ::
ॐ भगवत्यै च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि। तन्न अन्नपूर्णा प्रचोदयात्॥70॥
तुलसी ::
ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे विष्णुप्रियायै च धीमहि। तन्नो बृन्दः प्रचोदयात्॥71॥
महादेव ::
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥72॥
रुद्र ::
ॐ पुरुषस्य विद्महे सहस्राक्षस्य धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥73॥
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥74॥
शिव :: 
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्॥
ॐ सदाशिवाय विद्महे सहस्राक्ष्याय धीमहि। तन्नः साम्बः प्रचोदयात्॥75॥
नन्दिकेश्वर ::
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे नन्दिकेश्वराय धीमहि। तन्नो वृषभः प्रचोदयात्॥76॥
गणेश ::
ॐ तत्कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥77॥
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥78॥
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥79॥
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥80॥
ॐ लम्बोदराय विद्महे महोदराय धीमहि। तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥81॥
षण्मुख ::
ॐ षण्मुखाय विद्महे महासेनाय धीमहि। तन्नः स्कन्दः प्रचोदयात्॥82॥
ॐ षण्मुखाय विद्महे महासेनाय धीमहि। तन्नः षष्ठः प्रचोदयात्॥83॥
सुब्रह्मण्य ::
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महासेनाय धीमहि। तन्नः षण्मुखः प्रचोदयात्॥84॥
ॐ ::
ॐ ॐकाराय विद्महे डमरुजातस्य धीमहि। तन्नः प्रणवः प्रचोदयात्॥85॥
अजपा ॐ हंस हंसाय विद्महे सोऽहं हंसाय धीमहि। तन्नो हंसः प्रचोदयात्॥86॥
दक्षिणामूर्ति ::
ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि। तन्नो धीशः प्रचोदयात्॥87॥
गुरु ::
ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्मणे धीमहि। तन्नो गुरुः प्रचोदयात्॥88॥
हयग्रीव ::
ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि। तन्नो हंसः प्रचोदयात्॥89॥
अग्नि ::
ॐ सप्तजिह्वाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि। तन्न अग्निः प्रचोदयात्॥90॥
ॐ वैश्वानराय विद्महे लालीलाय धीमहि। तन्न अग्निः प्रचोदयात्॥91॥ 
ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि। तन्नो अग्निः प्रचोदयात्॥92॥
यम ::
ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि। तन्नो यमः प्रचोदयात्॥93॥
वरुण ::
ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि। तन्नो वरुणः प्रचोदयात्॥94॥
वैश्वानर ::
ॐ पावकाय विद्महे सप्तजिह्वाय धीमहि। तन्नो वैश्वानरः प्रचोदयात्॥95॥
मन्मथ ::
ॐ कामदेवाय विद्महे पुष्पवनाय धीमहि। तन्नः कामः प्रचोदयात्॥96॥
हंस ::
ॐ हंस हंसाय विद्महे परमहंसाय धीमहि। तन्नो हंसः प्रचोदयात्॥97॥
ॐ परमहंसाय विद्महे महत्तत्त्वाय धीमहि। तन्नो हंसः प्रचोदयात्॥98॥
नन्दी ::
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे चक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो नन्दिः प्रचोदयात्॥99॥
गरुड़ ::
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि।तन्नो गरुडः प्रचोदयात्॥100॥
सर्प ::
ॐ नवकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि। तन्नः सर्पः प्रचोदयात्॥101॥
पाञ्चजन्य ::
ॐ पाञ्चजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि। तन्नः शङ्खः प्रचोदयात्॥102॥
सुदर्शन ::
ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि। तन्नश्चक्रः प्रचोदयात्॥103॥
अग्नि ::
ॐ रुद्रनेत्राय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि। तन्नो वह्निः प्रचोदयात्॥104॥
ॐ वैश्वानराय विद्महे लाललीलाय धीमहि। तन्नोऽग्निः प्रचोदयात्॥105॥
ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निमथनाय धीमहि। तन्नोऽग्निः प्रचोदयात्॥106॥
आकाश ::
ॐ आकाशाय च विद्महे नभोदेवाय धीमहि। तन्नो गगनं प्रचोदयात्॥107॥
अन्नपूर्णा ::
ॐ भगवत्यै च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि। तन्नोऽन्नपूर्णा प्रचोदयात्॥108॥
बगला मुखी ::
ॐ बगलामुख्यै च विद्महे स्तम्भिन्यै च धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्॥109॥
बटुक भैरव ::
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे आपदुद्धारणाय धीमहि। तन्नो बटुकः प्रचोदयात्॥110॥
भैरवी ::
ॐ त्रिपुरायै च विद्महे भैरव्यै च धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्॥111॥
भुवनेश्वरी ::
ॐ नारायण्यै च विद्महे भुवनेश्वर्यै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्॥112॥
ब्रह्मा ::ॐ पद्मोद्भवाय विद्महे देववक्त्राय धीमहि। तन्नः स्रष्टा प्रचोदयात्॥113॥
ॐ वेदात्मने च विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि। तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्॥114॥
ॐ परमेश्वराय विद्महे परतत्त्वाय धीमहि। तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्॥115॥
चन्द्र ::
ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृततत्त्वाय धीमहि। तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥116॥
छिन्नमस्ता ::
ॐ वैरोचन्यै च विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्॥117॥
दक्षिणामूर्ति ::
ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि।तन्नो धीशः प्रचोदयात्॥118॥
देवी ::
ॐ देव्यैब्रह्माण्यै विद्महे महाशक्त्यै च धीमहि।तन्नो देवी प्रचोदयात्॥119॥
धूमावती ::
ॐ धूमावत्यै च विद्महे संहारिण्यै च धीमहि। तन्नो धूमा प्रचोदयात्॥120॥
दुर्गा ::
ॐ कात्यायन्यै विद्महे कन्याकुमार्यै धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्॥121॥
ॐ महादेव्यै च विद्महे दुर्गायै च धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्॥122॥
गणेश ::
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥123॥
ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्॥124॥
गरुड ::
ॐ वैनतेयाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि। तन्नो गरुडः प्रचोदयात्॥125॥
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपर्णाय (सुवर्णपक्षाय) धीमहि। तन्नो गरुडः प्रचोदयात्॥126॥
गौरी ::
ॐ गणाम्बिकायै विद्महे कर्मसिद्ध्यै च धीमहि। तन्नो गौरी प्रचोदयात्॥127॥
ॐ सुभगायै च विद्महे काममालायै धीमहि। तन्नो गौरी प्रचोदयात्॥128॥
गोपाल ::
ॐ गोपालाय विद्महे गोपीजनवल्लभाय धीमहि। तन्नो गोपालः प्रचोदयात्॥129॥
गुरु ::ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्माय धीमहि। तन्नो गुरुः प्रचोदयात्॥130॥
हनुमत् ::
ॐ रामदूताय विद्महे कपिराजाय धीमहि। तन्नो हनुमान् प्रचोदयात्॥131॥
ॐ अञ्जनीजाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो हनुमान् प्रचोदयात्॥132॥
हयग्रीव ::
ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि। तन्नो हंसः प्रचोदयात्॥133॥
इन्द्र, शक्र ::
ॐ देवराजाय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि। तन्नः शक्रः प्रचोदयात्॥134॥
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सहस्राक्षाय धीमहि। तन्न इन्द्रः प्रचोदयात्॥135॥
जल ::
ॐ ह्रीं जलबिम्बाय विद्महे मीनपुरुषाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥136॥
ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि। तन्नस्त्वम्बु प्रचोदयात्॥137॥
जानकी ::
ॐ जनकजायै विद्महे रामप्रियायै धीमहि। तन्नः सीता प्रचोदयात्॥138॥
जयदुर्गा ::
ॐ नारायण्यै विद्महे दुर्गायै च धीमहि। तन्नो गौरी प्रचोदयात्॥139॥
काली ::
ॐ कालिकायै विद्महे श्मशानवासिन्यै धीमहि। तन्नोऽघोरा प्रचोदयात्॥140॥
काम ::
ॐ मनोभवाय विद्महे कन्दर्पाय धीमहि।तन्नः कामः प्रचोदयात्॥141॥
ॐ मन्मथेशाय विद्महे कामदेवाय धीमहि। तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयात्॥142॥
ॐ कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि।तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयात्॥143॥
*कामकलाकाली ::
ॐ अनङ्गाकुलायै विद्महे मदनातुरायै धीमहि।
तन्नः कामकलाकाली प्रचोदयत्॥144॥
ॐ दामोदराय विद्महे वासुदेवाय धीमहि।तन्नः कृष्णः प्रचोदयात्॥145॥
ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि।तन्नः कृष्ण: प्रचोदयात॥146॥ 
GAYATRI MANTR गायत्री मंत्र
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
santoshsuvichar.blogspot.com

Video link :: https://youtu.be/4Ix2MZrMQY8
विघ्न हरण :: 
गणपति विघ्न हर्ता हैं। ये साधक को बुद्धि चातुर्य, मातृ-पितृ भक्ति भी प्रदान करते हैं। सच्चे मन से गई इनकी प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती।
गणपति मंत्र GANPATI MANTR ::
ॐ गं गणपत्ये नम:। 
ॐ गं गणपत्ये स्वाहा:। 

Om Gan Ganpatye Namh.  
Om Gan Ganpatye Swaha.  
ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसम्स्प्रभः।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

Vakr Tund Maha Kay Sury Koti Sam Prabh:, 
Nir Vighnam Kuru Me Dev Sarv Karyeshu Sarvada.
Let Ganpati, bearing large body, curved trunk, who shines like a million Suns, should always make my work free from obstacles. 
गणेश्वरकल्प मन्त्र :: 
ॐ गाँ गीं गूँ गैं गौं ग:।
नया मकान खरीदना :: निम्न मंत्रों से युक्त विघ्नहर्ता भगवान गणपति की प्रतिमा घर में स्थापित करने से आर्थिक तंगी-परेशानी, कलह, विघ्न, अशांति, क्लेश, तनाव, मन-मुटाव, बच्चों में अशांति, मानसिक संताप आदि का नाश होता है। 
(1). बीज मंत्र ::
“गं”
 का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है, 
(2). षडाक्षर मंत्र ::
“ॐ गं गणपतये नमः”
 का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि प्रदायक है, 
(3). 
ॐ श्री विघ्नेश्वार्य नम:, 
(4). ऊं श्री गणेशाय नम:, 
(5). निर्हन्याय नमः। 
अविनाय नमः।
गणपति की प्रतिमा के साथ 
श्रीपतये नमः, रत्नसिंहासनाय नमः, ममिकुंडलमंडिताय नमः, महालक्ष्मी प्रियतमाय नमः, सिद्घ लक्ष्मी मनोरप्राय नमः लक्षाधीश प्रियाय नमः, कोटिधीश्वराय नमः जैसे मंत्रों का सम्पुट होता है। गणपति की मूर्ति की पीठ दक्षिण दिशा में रखें।

Video link :: https://youtu.be/PoO_nHLVIi0
महामृत्युंजय मंत्र :: 
जन-धन हानि, अकाल मृत्यु, बीमारी हो रही हो तो महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्

सुगन्ध युक्त, त्रिनेत्रधारी भगवान् शिव समस्त प्राणियों को भरण-पोषण, पालन-पोषण करने वाले, हमें संसार सागर (मृत्यु-अज्ञान) से उसी प्रकार बन्धन मुक्त करें, जिस प्रकार खीरा अथवा ककड़ी पककर बेल से अलग हो जाती है।[ऋग्वेद 7.59.12]
मार्कन्डेय ऋषि :: मृकंदु ऋषि और उनकी पत्नी मरुदमती ने भगवान् शिव की पुत्र प्राप्ति हेतु तपस्या की। भगवान् शिव प्रकट हुए और पुत्र उत्पन्न होने का वरदान दिया। मगर यह भी कह दिया कि उनके यहाँ एक तेजस्वी, विद्वान पुत्र पैदा होगा, लेकिन वह अल्पायु होगा और उसकी मृत्यु 7 साल की उम्र में हो जायेगी।
बच्चे का नाम मार्कण्डेय रखा गया। मार्कण्डेय ने एक शिवलिंग के समक्ष शिव महा मृत्युजय से आराधना करनी शुरु की। निश्चित समय पर यमदूत उन्हें लेने आये मगर शिव भक्ति के प्रभाव से लौट गये। तब धर्मराज स्वयं आये। जैसे ही उन्होंने यमपाश से मार्कण्डेय को बाँधा महाकाल भगवान् शिव प्रकट हो गये और उन्होंने यमराज को लौटा दिया। उन्होंने मार्कण्डेय को अजर-अमर होने का वरदान दिया।
शिव पुराण में महामृत्युंजय मंत्र की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है।
साकार और निराकार दोनों ही रूपों में शिव जी की पूजा कल्याणकारी होती है, लेकिन शिवलिंग की पूजा करना अधिक उत्तम है।[
शिवपुराण]
महामृत्युंजय मंत्र का एक लाख जाप करने पर शरीर की शुद्धि होती है। दो लाख जाप करने पर पूर्वजन्म का स्मरण होता है। तीन लाख जाप करने पर इच्छित वस्तु की प्राप्ति हो जाती है। चार लाख जाप करने पर स्वप्न में भगवान् शिव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। पाँच लाख जाप करने पर 
भगवान्
 शिव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। दस लाख जाप करने पर संपूर्ण फल की सिद्धि होती है। मंत्र जाप आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से पूर्ण पवित्र होकर करें। जो असहाय बीमार हो वह कैसी भी अवस्था में लेटे-बैठे, बगैर स्नान किए, किसी भी समय, किसी भी उम्र में बीज मंत्रों का जाप कर सकते हैं। उन्हें भगवान् शिव की कृपा से निरोगता प्राप्त होगी।
ह्रौं ॐ॥ 
Video link :: https://youtu.be/XBhljTj6rgA
मृत संजीवनी मंत्र :: 
भगवान् शिव ने काव्य-शुक्राचार्य को वैदिक और लौकिक विद्या के साथ-साथ ही मृत संजीविनी विद्या भी प्रदान की, जिससे देवगण भी अनभिज्ञ थे। इस विद्या द्वारा काव्य को किसी भी मृत प्राणी को पुनरुज्जीवित करने की शक्ति प्राप्त हो गई। 
भृगु ऋषि पुत्र शुक्राचार्य ने इस विद्या में सिद्धि प्राप्त की और देव दानव युद्ध में जो भी राक्षस मृत्यु ग्रस्त हुआ उसे जीवित कर दिया। 
देवताओं  भगवान् शिव से उनकी शिकायत  वे काव्य को निगल गये।  लम्बे अरसे के बाद वे भगवान् शिव के मूत्र मार्ग से बाहर आये और उनका नाम शुक्र पड़ गया।
संजीवनी मंत्र अर्थात्‌ संजीवनी विद्या :: 
ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। 
उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ 
स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ। 
इस विद्या का दुरूपयोग कभी भूलकर भी नहीं करना चाहिये। 
मृत्यु-रोग, शांति-मन्त्र ::
ॐ ह्रूमं हं स:।
मृत संजीवनी मन्त्र ::
ॐ हं स: हूं हूं स:,
ॐ ह: सौ:,
ॐ हूं स:,
ॐ जूं स:,
ॐ जूं स: वषट।


(1). एकाक्षरी मंत्र :- 
हौं

 

(2). त्र्यक्षरी मंत्र :-
ॐ जूं सः। 
(3). चतुराक्षरी मंत्र :- 
ॐ वं जूं सः। 
(4). नवाक्षरी  मंत्र :- 
ॐ जूं सः पालय पालय। 
(5). दशाक्षरी (10) मंत्र :- 
ॐ जूं सः मां पालय पालय।
Please refer to :: 
SHUKRACHARY-SON OF BHRAGU शुक्राचार्य :: भृगु पुत्र
santoshkathasagar.blogspot.com


Video link :: https://youtu.be/Q21MnxWzR9k
भूत-प्रेत से मुक्ति PROTECTION FROM GHOSTS ::
जातक को शुद्धि का ध्यान रखना चाहिये। हनुमान चालीसा पाठ करने से भी भूत-प्रेत आदि भय नहीं रहता। 
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए सरसों के दाने अभिमन्त्रित करके आविष्ट पुरुष पर डालने से ब्रह्म राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाचादि से मुक्ति प्राप्त होती है :-
(1). अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक्।
अहींश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योSधराची: परा सुव॥
[शुक्ल यजुर्वेद 16.5]
(2). ॐ श्री महा अन्ज्नाये पवन पुत्रावेशवेशय। 
 ॐ श्री हनुमते फट॥ 
अतुलित बल धामं हेम शैला  भदेहं, 
दजु जवन  कृषानु  ज्ञानी नामग्र गम्यं।
सकल गुण निधानं वंरधिषम वानराधीशं, 
रघुपति प्रियभ्कृम्  वात  जातं नमामि॥ 
 


Video link :: https://youtu.be/kPLxgHq7Jhw
मृत्यु भय दूर करना ::
कूष्माण्ड मंत्र :: 
कूष्माण्डैर्वापि जुहुयाद् घृतमग्नौ यथाविधि।

उदित्यृचा वा वारुण्या तृचेनाब्दैवतेन वा॥


कृष्माण्ड मंत्रों से यथाविधि अग्नि में घृत से हवन करें। 
“किंया उदुत्तमं” 
इस वरुण मन्त्र से जल देवता की तीन ऋचाओं से हवन करे।
“ॐ कूष्माण्डायै नम:” का जाप मृत्यु भय दूर करने के लिये किया जाता है। महामृत्युंजय मंत्र में उर्वारिक शब्द तोरी, घीया, खीरे जैसी वनस्पतियों के लिये आया है। इसका जाप करने से रोग, शोक, जरा-मृत्यु भय दूर होता है।
[मनु स्मृति 8.106]
One should recite “Kushmand Mantr” while offering holy sacrifices in holy fire. “Kinya Uduttamam” is a rhyme devoted to Varun Dev-deity of water, which has to be recited trice while performing Yagy, Hawan, Agnihotr-holy sacrifices in fire.
Kushmand Mantrs reduces the fear of diseases, ageing, sorrow-pain and death. Kushmand is a word used for gourds in Maha Mratunjay Mantr devoted to Bhagwan Shiv i.e., Maha Kal.

कूष्माण्ड :: gourd, cucurbit.
Video link :: https://youtu.be/X_bjzcXcNCoProtection from Snakes/Nag/Serpents. Recitation of these Mantr is useful.नागों, साँपों से सुरक्षा ::(1). ॐ कुरुकुल्ले फट स्वाहा:।(2). ॐ नगर फट स्वाहा:।(3). ॐ नर्मदायै नम:. प्रातर्नर्मदायै नमो निशि।नमोअस्तु नर्मदे तुभं त्राहि मां विश्सर्पत:॥(4). ॐ नमो भगवते नील कंठाय।(5). नवनाग स्तोत्र :-अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं, शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं, कालियं तथा एतानि नव नामानि नागानाम च, महात्मनं सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत।(6). नाग गायत्री मंत्र :-ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धी महि तन्नो सर्प प्रचोदयात।(7). काल सर्प योग के दोष निवारण :- इस कार्य हेतु ताँबे का एक बड़ा सर्प शिवलिंग को अर्पित करें अथवा चाँदी के नाग-नागिन का जोड़ा समर्पित करें। नव नाग स्तोत्र तथा सर्प गायत्री मंत्र का उच्चारण करें।(8). पाँच महानाग जिनके नाम स्मरण मात्र से ही विषबाधा, मानसिक तनाव, अवसाद आदि का नाश होता है :-कपिला कालियोSनन्तो वासुकिस्तक्षकस्तथा।पञ्चैतान् स्मरतो नित्यं विषबाधा न जायते॥
Video link :: https://youtu.be/1hiCTclBuOg
प्रात कालीन वन्दना ::
ॐ गं गणपत्ये नम:।
ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसम्स्प्रभः।निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”; “ॐ नमोः शिवाय”।
गायत्री मंत्र ::
ॐ भुर्भुवः स्वः तत्सोवितुवरेण्यं।भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्॥
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, हे नाथ नारायण वासुदेवा।
पितु मात स्वामी, सखा हमारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या च द्रविणम त्वमेव, त्वमेव सर्वमम देव देवः॥ 
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
मंगलम्  भगवान  विष्णु, मंगलम् गरुड़ ध्वज।  मंगलम् पुंड्रिरिकाक्ष, मंगलाय तनु  हरि:॥
ॐ नमस्ते अस्तु भगवन विश्र्वेश्र्वराय महादेवाय; त्र्यम्बकाय त्रिपुरान्तकाय त्रिकालाग्निकालाय।कालाग्निरुद्राय नीलकण्ठाय मृत्युंजयाय सर्वेश्र्वराय सदाशिवायश्रीमन् महादेवाय नमः॥
भगवान् शिव स्तुति ::
कर्पूर गौरम करुणावतारं, संसार सारं भुजगेन्द्र हारं। सदा वसंतं हृदयार विन्दे, भवं भवानी सहितं नमामि॥ 
भगवान्  श्री हरी विष्णु स्तुति :: 
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्। लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
महामृत्युंजय मंत्र ::
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात॥
देवराज इन्द्र रचित श्री कृष्ण वन्दना  ::
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।गुणातीतं नीराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
शान्ति मंत्र ::
(1). ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी; भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव; सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु॥
(2). ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी; भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव; कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
(3). ॐ असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।मृत्योर्मामृतं गमय॥
ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः॥
 (4). ॐ द्यौ: शांति अंतरिक्ष शांति पृथिवी शांति आपः शांति औषधय: शांति वनस्पतय: शांति विश्र्वेदेवा शांति सर्व शांति ब्रह्म शांतिरेव शांति  सामा शांति शान्तिरेधि: विश्वानि देव सवितुर्दुरितानि परासुव। यद् भद्रं तन्न आसुव। ॐ शांति: शांति: शांति: ॐ॥
Video link :: https://youtu.be/PkVufR4rFZs
प्रातः और रात्रि संध्या :: सुबह स्नान आदि से निवृत होकर सूर्य आराधना करें।
ॐ सूर्याय नमः। ॐ आदित्याय नम:। ॐ ज्योतिर आदित्य फट स्वाहा:। ॐ भास्कराय नम:। ॐ भानुवे नम:। ॐ खखोलकाय नम:। ॐ खखोलकाय स्वाहा:। ॐ व्यं फट। ॐ ह्रां ह्रीं स: फट स्वाहा:। ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नम:।
रात्रि में माता भगवती आराधना करें। 
” ॐ  ऐं  ह्रीं  क्लीं चामुंडाय  विच्चै  नमः” 
शत्रु, परेशानियों, विध्न बाधाओं से मुक्ति हेतु :- ॐ  ऐं  ह्रीं  क्लीं चामुंडाय  विच्चै  फट  स्वाहा:।
 महामृत्युंजय मंत्र :: व्याधि, बीमारी, रोगों, अकाल मृत्यु से बचने के लिये :- 
ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात॥
ईश्वर अनन्त अवतार ले चुका है और लेता ही रहेगा। भगवान् शिव, भगवान् कृष्ण और भगवान् विष्णु एक ही हैं। भगवान् श्री अवतारी अर्थात ईश्वर स्वयं पृथ्वी पर प्रकट हो गये है।मकान का मुँह पूर्व, उत्तर, उत्तर-पूर्व और पश्चिम दिशा में होना शुभ फल देता है।
Video link :: https://youtu.be/3Nbba7QCnNY
सम्मोहन साधना विधि :- सर्वप्रथम साधक को प्रात:काल जल्दी उठकर शौच आदि से निवृत्त होकर स्नान कर शुद्ध हो जाना चाहिए और शुद्ध सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके पश्चात् किसी शांत व एकांत स्थान का साधना हेतु चुनाव करना चाहिये। अब उत्तर दिशा की ओर मुख करके कुश अथवा सफेद कपड़े के आसन पर बैठे। इस साधना को सुबह 4 से 5 बजे के मध्य में अथवा रात्रि में 10 बजे से 11 बजे के मध्य संपन्न करना चाहिये। अपने सामने चौकी पर एक सफेद वस्त्र बिछायें और उस पर एक थाली स्थापित करें। थाली में हल्दी व कुमकुम से षटकोण बनायें। इस षटकोण में प्राण प्रतिष्ठित सम्मोहन यंत्र व तीन हकीक गुटिका स्थापित करें। यंत्र पर कुमकुम से तिलक करें। पंचामृत से स्नान करवायें, पुष्प चढ़ायें। इसके पश्चात् थाली के पास ही बाजोट पर एक शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें। इस बात का ध्यान रहे कि कमरे में दीपक के अतिरिक्त और कहीं से भी प्रकाश नहीं आ रहा है। अब हकीक माला से निम्न मंत्र की पांच माला जाप करें।
मंत्र :- ऊं हुं श्रं हुं ऊं।
इस मंत्र का जाप करते समय यंत्र को निरन्तर देखते रहें, पलक झपकाये बिना। यानी यंत्र पर त्राटक करते रहें। जब आपकी आंखों से आंसु बहने लगे तो थोड़ी देर के लिए रुक जायें और फिर पुन: त्राटक आरंभ करें। मंत्र जाप करते समय मन में ऐसी भावना रखें कि आपको सम्मोहन शक्ति प्राप्त हो रही है, आपकी आंखों में विलक्षण शक्ति समा रही है। आप धीरे-धीरे सम्मोहन करने की शक्ति से परिपूर्ण हो रहे हैं। इस प्रकार आपको उपरोक्त मंत्र की पांच माला जपनी है। इसके पश्चात् समस्त सामग्री को साधना स्थल पर यूं ही छोड़ दें। अगले सोमवार को पुन: दीपक जलायें और इस क्रिया को उसी समय नियमित रूप से दोहरायें। जब आपके पांच सोमवार पूरे हो जायें तो साधना सम्पन्न हो जायेगी। इसके बाद समस्त साधना सामग्री को सफेद कपड़े में बांधकर जल में विसर्जित कर दें।
सम्मोहन विद्या में शीघ्र ही सफलता के लिये त्राटक का अभ्यास भी निरन्तर रखना चाहिये।
वशीकरण मंत्र :: मंत्र की सिद्धि प्राप्त करने के लिए साधक को सूर्य या चंद्र ग्रहण में इस मंत्र का जाप 1,008 बार जाप करना चाहिए। जब भी आवश्यकता हो आप निम्नलिखित प्रयोग कर सकते हैं।गोरोचन, कुमकुम, सिन्दूर को धात्री के रस में पीस लें। सभी को सम्मोहित करने के लिए ऊर्जावान बनें और तिलक लगाएं।गोरोचन, असगंध और हरताल को समान भाग में लेकर केले के रस में पीस लें, फिर इस मंत्र का 7 बार जाप करें, अपने संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सम्मोहित करने के लिए उसे अभिमंत्रित करें और अपने माथे पर तिलक लगाएं। यह महत्वपूर्ण सौदों को बंद करने में उपयोगी है।लड़कियों और महिलाओं को आकर्षित करने के लिए तुलसी के बीज और सहदायी के रस को पीसकर 21 बार मंत्र से अभिमंत्रित करें और तिलक लगाएं।अनार और सफेद घुंघुंची के फल, फूल, जड़, पत्तियां और छिलका इकट्ठा कर लें, इन्हें कुचल लें और इन्हें ऊर्जावान बनाने के लिए 21 बार जपें। राजा, मंत्री, न्यायाधीश या किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को आकर्षित करने के लिए माथे पर तिलक लगाएं।कपूर और मेनसिल को केले के रस में पीस लें। 31 बार जप करें, अपने माथे पर तिलक लगाएं और आसानी और पूर्णता से प्रिय व्यक्ति को आकर्षित करें।
ॐ नमो भगवते कामदेवाय यस्य यस्य दृश्यो भवामि। यश्च यश्च मम मुखं पश्यति तं तं मोहयतु स्वाहा॥MANTROPCHAR (1) DIVINE CURE
मंत्रोपचारCONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ (बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)

DEMIGODS-DEITIES देवी देवता

DEMIGODS-DEITIES

देवी देवता

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM

By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।

अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।

निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि।

[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

धियं पूषा जिन्वतु विश्वमिन्वो रयिं सोमो रयिपतिर्दधातु। 

अवतु देव्यदितिरनर्वा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः

संसार को प्रसन्नता देने वाले पूषा हमारे कर्म से तृप्ति प्राप्त करें। धनपति सोम हमें धन प्रदान करें। द्युतिमती और शत्रु रहिता अदिति हमारी रक्षा करें। हम सुसंतति युक्त होकर यज्ञ में आपका यशोगान करें।[ऋग्वेद 2.40.6]

संसार को सुख प्रदान करने वाले पूषा हमारे कर्म से संतुष्ट हों। धन से सम्पन्न सोम हमको धन दें। तेजस्विनी, अदिति शत्रुओं से हमारी रक्षा करें। हम पुत्र और पौत्रों से युक्त, यज्ञ में अधिक श्लोक पाठ करेंगे।

Let Pusha who grant happiness-pleasure to the whole world be satisfied with our endeavours-deeds. Let-wealthy Som grant us riches. Let glorious-bright Aditi having no enemy, protect us. We should sing your glory blessed with sons and grandsons. 

अम्बितमे नदीतमे सरस्वति।

अप्रशस्ताइव स्मसि प्रशस्तिमम्ब नस्कृधि

हे मातृ गण में श्रेष्ठ, नदियों में श्रेष्ठ और देवों में श्रेष्ठ सरस्वती देवी! हम दरिद्र है, हमें धन से परिपूर्ण करें।[ऋग्वेद 2.41.16]

माताओं और सरिताओं में श्रेष्ठता प्राप्त सरस्वती हम निर्धनों को धनी बनायें।

Saraswati Devi is best amongest the mothers, the rivers and the goddesses. 

त्वे विश्वा सरस्वति श्रितायूंषि देव्याम्।

शुनहोत्रेषु मत्स्व प्रजां देवि दिदिड्डि नः

हे माता सरस्वती देवी! आप पावन करने वाले (इस) यज्ञ में प्रसन्न होकर उत्तम संतान प्रदत्त करें। आपका आश्रय प्राप्त होने पर ही हम अपने जीवन का सुख प्राप्त करेंगे।[ऋग्वेद 2.41.17]

हे सरस्वती! तुम कांतिमय हो। तुम्हारे आश्रय में अन्न का वास है। यज्ञ में सोम पीकर संतुष्ट होओ। हे सरस्वती! तुम हमको पुत्र रूप संतान प्रदान करो।

Hey Maa Saraswati Devi! You should be happy in purifying Yagy and grant us progeny. We will be able to make our lives happy under your patronage-asylum.

इमा ब्रह्म सरस्वति जुषस्व वाजिनीवति। 

या ते मन्म गृत्समदा ऋतावरि प्रिया देवेषु जुह्वति

हे अन्नवती और जलवती सरस्वती देवी! इस हव्य को स्वीकार करें। यह माननीय और देवों के लिए प्रिय हैं। गृत्समद लोग इसे आपको देते हैं।[ऋग्वेद 2.41.18]

अन्न और जल से परिपूर्ण महान देवी सरस्वती इस हवि को स्वीकृत करें। यह हवि रमणीय है, देवगण इसे चाहते हैं। गृत्समदवंशी इस हवि को तुम्हें प्रदान करते हैं।

Hey food and water granting Devi Maa Saraswati! Accept this offering. This is liked-loved by the honourable demigods-deities. Gratsamad  family offer this to you.ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (42) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- कपिंजल, इन्द्र, छन्द :- जगती, अशिक्वरी।

कनिक्रदज्जनुषं प्रब्रुवाण इयर्ति वाचमरितेव नावम्।

सुमङ्गलच शकुने भवासि त्वा का चिदभिभा विश्या विदत्

बारम्बार शब्दायमान और भविष्य वक्ता कपिञ्जल जैसे कर्णधार नौका को परिचालित करता है, वैसे ही वाक्य को प्रेरित करता है। हे शकुनि! आप कल्याण सूचक हो। किसी और किसी प्रकार की पराजय आपके पास न आवे।[ऋग्वेद 2.42.1]

बार-बार ध्वनि करने वाला भविष्य का निर्देश करने वाला कपिंजल जैसे नौका को चलाता है, वैसे ही वाणी को मार्ग दर्शन देता है। हे शकुनि (कौआ)! तुम मंगलप्रद होओ।किसी प्रकार की हार, कहीं से भी आकार तुमको ग्रहण न हो।

The way a boatman navigate the boat, fortune teller Kapinjal repeatedly pronounce-guide us. Hey Shakuni! You represent welfare. You should not face defeat in any way. 

Crying repeatedly, and foretelling what will come to pass, the Kapinjal gives due-suitable direction to through his voice, as a helmsman, guides a boat, be ominous, bird, of good fortune and may no calamity whatever befall you from any quarter.

कपिञ्जल :: Kapinjal, the Anukramanika has kanimatarupindro devata, francoline partridge.

मा त्वा श्येन उद्वधीन्मा सुपर्णो मा त्वा विददिषुमान्वीरो अस्ता।

पित्र्यामनु प्रदिशं कनिक्रदत्सुमङ्गलो भद्रवादी वदेह

हे शकुनि! आपको श्येन पक्षी न मारे गरुड़ पक्षी भी न मारे। वह बलवान, वीर और धनुर्धारी होकर आपको न प्राप्त करे। दक्षिण दिशा में बार-बार शब्द करके और सुमंगलशंसी होकर हमारे लिए प्रिय वादी बनें।[ऋग्वेद 2.42.2]

हे शकुनि! बाज पक्षी तुम्हारी हिंसा न करें। गरुड भी तुमको न मारे। वह वीर, बली हाथ में धनुष बाण लेकर भी तुम्हें प्राप्त न कर सके। तुम दक्षिण दिशा में लगातार शब्द करते हुए कल्याण सूचक हुए हमारे लिए प्रिय वचनों को बोलो।

Hey Shakuni! Let Shyen bird and Grud do not kill you. They should not kill you on being mighty, brave and bow-arrow wielding. Cry in the South repeatedly and become auspicious to us.   

अव क्रन्द दक्षिणतो गृहाणां सुमङ्गलो भद्रवादी शकुन्ते। 

मा नः स्तेन ईशत माघशंसो बृहद्वदेम विदथे सुवीराः

हे शकुनि! सुमंगल सूचक और प्रिय वादी होकर घर की दक्षिण दिशा में बोलो, जिससे चोर और दुष्ट व्यक्ति हमारे ऊपर प्रभुत्व न करे। पुत्र और पौत्र वाले होकर हम इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.42.3]

हे शकुनि! तुम घर की दक्षिणी दिशा में मृदुवाणी से कल्याण की खबर देने वाली ध्वनि उच्चारण करो। दुष्ट वञ्चक या असुर हमारे स्वामी एवं राजा न बन जायें। पुत्र-पौत्र से परिपूर्ण होकर हम उस अनुष्ठान में श्लोक का उच्चारण करेंगे।

Hey Shakuni! Be auspicious and spell lovely-pleasing words in the south direction of our homes, so that the thieves and the wicked do not over power us. We should have sons and grand sons and conduct out Yagy successfully. 

ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (43) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- कपिजल, इन्द्र, छन्द :- जगती, अशिक्वरी।

प्रदक्षिणिदभि गृणन्तिकारवो वयो वदन्त ऋतुथा शकुन्तयः।

उभे वाचौ वदति सामगाइव गायत्रं च त्रैष्टुभं चानु राजति

समय-समय पर अन्न की खोज करके स्तोताओं की तरह शकुनि गण प्रदक्षिण करके शब्द करें। जिस प्रकार से साम गायक लोग गायत्री और त्रिष्टुप् (दोनों साम) का उच्चारण करते हैं, उसी प्रकार कपिञ्जल भी दोनों वाक्य का उच्चारण करते हुए श्रोताओं को अनुरक्त करते हैं।[ऋग्वेद 2.43.1]

समय-समय पर अन्न की खोज करने वाले पक्षीगण वदंना करने वालों की तरह परिक्रमा करते हुए सुन्दर ध्वनि उच्चारण करें। सोम गायको द्वारा गायत्री छन्द और त्रिष्टुप छन्द उच्चारण करने के तुल्य, कपिंजल भी दोनों प्रकार की वाणी करता हुआ सुनने वालों को मोहित कर लेता है। 

Time & again the Shakuni Gan (Crows) should produce sound while searching food like the Stota. The Kapinjal should recite two stanzas-Strotr, Mantr, hymns, the first Gayatri and the second Trishtup, both from Sam Ved amusing the listeners. 

उद्गातेव शकुने साम गायसि ब्रह्मपुत्रइव सवनेषु शंससि। वृषेव वाजी शिशुमतीरपीत्या सर्वतो नः शकुने भद्रमा वद विश्वतो नः शकुने पुण्यमा वद

हे शकुनि! जैसे उद्गीता साम गान (ऊँचे स्वर में गाया हुआ) करते हैं, वैसे ही आप भी गावें। यज्ञ में ब्रह्म पुत्र ऋत्विक् की तरह आप शब्द करें। जैसे सेचन समर्थ अश्व अश्वी के पास जाकर शब्द करता है, वैसे ही आप भी करें। हे शकुनि! आप सर्वत्र हमारे लिए मंगल सूचक और पुण्य जनक शब्द का उच्चारण करें।[ऋग्वेद 2.43.2]

हे शकुनि! सोम के उद्गाता जैसे सोम ग्रहण करते हैं, वैसे ही तुम भी सुन्दर गान करो यज्ञ में ऋत्विग्गण जैसे शब्द करते हैं, वैसे ही तुम भी करो। तुम सभी ओर से हमारे लिए पुष्य बढ़ाने वाले कल्याण की सूचना प्राप्त करते हो।

Hey Shakuni! You should sing the hymns of Sam Ved just like the singers of Sam Ved in loud voice. Sing it the way the son of Brahm Ritvik does. You should follow the manner-method in which the horse produce sound-neighing in the company of she horse-mare, inducing her for mating. Hey Shakuni! Always pronounce the words representing auspiciousness, welfare and virtues.

आवदंस्त्वं शकुने भद्रमा वद तूष्णीमासीनः सुमतिं चिकिद्धि नः। 

यदुत्पतन्वदसि कर्करिर्यथा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः

हे शकुनि! जिस समय आप शब्द करते हैं, उस समय हमारे लिए मंगल सूचना करते है। जिस समय चुप रहकर आप बैठते हैं, उस समय हमारे प्रति सुप्रसन्न रहते हैं। उड़ने के समय आप कर्करि (एक बाजा) की तरह शब्द करते है। हम पुत्र और पौत्र वाले होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.43.3] 

जब तुम चुप होकर बैठ जाते हो तब ऐसा जान पड़ता है कि तुम हमारे से प्रसन्न नहीं हो। जब तुम उड़ते हो तब कर्करि के समान मृदु ध्वनि करते हो। हम पुत्र और पौत्रवान हुए इस अनुष्ठान में रचित हुई प्रार्थनाओं का गान करेंगे।

Hey Shakuni-crow! You always caw-produce sound indicating our welfare. When ever you sit silently we assume that you are unhappy with us. When you fly, you sound like the musical instrument called Karkari. We will accomplish a Yagy, when we are blessed with sons and grandsons. 

ऋग्वेद संहिता, तृतीय मण्डल सूक्त (4) :: ऋषि :- विश्वामित्र, गाथिन,देवता :- आप्रीसूक्त, छन्द :- त्रिष्टुप्।

समित्समित्सुमना बोध्यस्मे शुचाशुचा सुमतिं रासि वस्वः। 

आ देव देवान्यजथाय वक्षि सखा सखीन्त्सुमना यक्ष्यग्ने

हे समिद्ध अग्नि देव! अनुकूल मन से जागृत हों। आप अतीव गतिशील तेज से युक्त होकर हमारे ऊपर धन के लिये अनुग्रह करें। द्योतमान् अग्निदेव! देवों को आप यज्ञ में लावें। आप देवों के मित्र हैं। अनुकूल मन से मित्र देवों का यज्ञ करें।[ऋग्वेद 3.4.1] 

हे अग्नि देव! तुम समृद्धि को प्राप्त होओ। अनुकूल मन से चैतन्य प्राप्त करो। तुम द्रुतगति वाले हो। अपने तेज से हम पर धन-युक्त वृष्टि करो। देवगणों को इस यज्ञ में लाओ, क्योंकि तुम देवताओं के मित्र हो। उत्तम मन से अपने मित्र देवताओं का पूजन करो।

Hey prosperous Agni Dev! Awake favourably through your innerself. Grant us wealth associating yourself with high energy. You are a friend of the demigods-deities. Hey energetic Agni Dev! Bring the demigods-deities to our Yagy with favourable innerself. 

यं देवासस्त्रिरहन्नायजन्ते दिवेदिवे वरुणो मित्रो अग्निः। 

सेमं यज्ञं मधुमन्तं कृधी नस्तनूनपाद्धृतयोनिं विधन्तम्

वरुण, मित्र और अग्नि जिन तनूनपात नामक अग्नि का प्रतिदिन तीन बार करके यज्ञ करते हैं, वे ही हमारे इस जल कारण यज्ञ को वृष्टि आदि फल दें।[ऋग्वेद 3.4.2]

वरुण, मित्र और अग्नि जिनका प्रतिदिन तीनों समय यज्ञ करते हैं, वे तनूनपात अग्नि हमारे जल की कामना वाले यज्ञ का फल वर्षा रूप में दें।

Tanunpat Agni for whom Yagy is conducted thrice by Varun, Mitr and Agni, shall grant us the reward of the Yagy in the form of rains. 

प्र दीधितिर्विश्ववारा जिगाति होतारमिळः प्रथमं यजध्यै। 

अच्छा नमोभिर्वृषभं वन्दध्यै स देवान्यक्षदिषितो यजीयान्

देवों के आह्वानकारी अग्नि के पास सर्वजन प्रिय प्रार्थना गमन करें। इला, प्रसन्नता उत्पन्न करने के लिए, प्रधान, अतीव अभीष्टवर्षी और वन्दनीय अग्नि देव के पास जावें। यज्ञ कर्म में कुशल अग्नि देव हमारे द्वारा प्रेरित होकर यज्ञ करें।[ऋग्वेद 3.4.3]

देवताओं का आह्वान वाले की प्यारी हो। उत्पन्न के लिए इला अभिष्ट पूरक पूज्य अग्नि के समीप पहुँचे। यज्ञ कुशल अग्निदेव हमारे लिए पूजन करें।

Let all of us make prayers for Agni Dev, who invoke-invite the demigods-deities. Ila should go to the leader Agni Dev, who is the leader, grants accomplishments and deserve worship. Agni Dev, an expert in organising-conducting Yagy should be inspired to perform Yagy for us.

:: इन्हें अन्न की और पृथ्वी की अधिष्ठातृ देवी माना जाता है। वैदिक वाङमय में इला को मनु को मार्ग दिखलाने वाली एवं पृथ्वी  पर यज्ञ का विधिवत् नियमन करनेवाली कहा गया है। इला के नाम पर ही जंबूद्वीप के नवखंडों में एक खंड  को इलावृत वर्ष कहते हैं। महाभारत तथा पुराणों की परंपरा में इला को बुध की पत्नी एवं पुरूरवा की माता कहा गया है।

वैवस्वत मनु के दस पुत्र हुए। उनके एक पुत्री भी थी इला, जो बाद में पुरुष बन गई।

वैवस्वत मनु ने पुत्र की कामना से मित्रावरुण यज्ञ किया। उनको पुत्री की प्राप्ति हुई, जिसका नाम इला रखा गया। उन्होंने इला को अपने साथ चलने के लिए कहा किन्तु इला ने कहा कि क्योंकि उसका जन्म मित्रावरुण के अंश से हुआ था, अतः उन दोंनो की आज्ञा लेनी आवश्यक थी। इला की इस क्रिया से प्रसन्न होकर मित्रा-वरुण ने उसे अपने कुल की कन्या तथा मनु का पुत्र होने का वरदान दिया।

कन्या भाव में उसने चन्द्रमा के पुत्र बुध से विवाह करके पुरूरवा नामक पुत्र को जन्म दिया।

तदुपरान्त वह सुद्युम्न बन गयी और उसने अत्यन्त धर्मात्मा तीन पुत्रों से मनु के वंश की वृध्दि की जिनके नाम इस प्रकार हैं :- उत्कल, गय तथा विनताश्व।

ऊर्ध्वो वां गातुरध्वरे अकार्यूर्ध्वा शोचींषि प्रस्थिता रजांसि। 

दिवो वा नाभा न्यसादि होता स्तृणीमहि देवव्यचा वि बर्हिः

अग्नि और बर्हिरूप अग्नि के लिए यज्ञ में एक उन्नत मार्ग है। दीप्ति युक्त हव्य ऊपर जाता है। दीप्तिमान् यज्ञ घर के नाभिप्रदेश में होता उपविष्ट है। हम देवों के द्वारा व्याप्त कुश को बिछाये।[ऋग्वेद 3.4.4]

अनुष्ठान में अग्नि के लिए उन्नति का मार्ग निश्चित है। उज्जवल हवि ऊपर उठती है। ज्योतिवान यज्ञ के नाभि से होता स्थित है। हम देवों के लिए धरा पर कुश बिछा लेंगे।

There is an elevated path for Agni Dev & Barhirup Agni. Glowing-aurous offerings rise up (to heavens for the sake of demigods-deities). The aurous-brilliant Yagy is placed-organised at the nucleus-center of the house. Let us spread Kush (grass, mat for the demigods-deities).

सप्त होत्राणि मनसा वृणाना इन्वन्तो विश्वं प्रति यन्नृतेन। 

नृपेशसो विदथेषु प्र जाता अभी ३ मं यज्ञं वि चरन्त पूर्वीः

जल द्वारा संसार के प्रसन्नकर्ता देवता लोग सप्त यज्ञ में जाते हैं। वे अकपट चित्त से याचित होकर नररूपी यज्ञजात प्रत्यक्ष होकर हमारे इस यज्ञ में आवें।[ऋग्वेद 3.4.5]

संसार को खुश करने वाले देव जल द्वारा अनुष्ठान को ग्रहण हैं। वे कोमल हृदय विनती किये जाने पर अग्नि रूप द्वार से हमारे यज्ञ में पधारकर प्रकट हों।

The demigods-deities who are please the universe with water, goes to the Sapt Yagy. They should come to our Yagy in the form of humans, clear heatedly-free mind.

The demigods-deities who gratify the universe with rain are present at the seven offerings of the ministering priests, when solicited with sincerity of mind; may the many deities who are engendered in sensible shapes at sacrifices come to this our rite.

आ भन्दमाने उषसा उपाके उत स्मयेते तन्वा ३ विरूपे। 

यथा नो मित्रो वरुणो जुजोषदिन्द्रो मरुत्वाँ उत वा महोभिः

स्तूयमान अग्नि रूप रात और दिन, परस्पर आपस में संगत होकर या पृथक रूप से, सशरीर प्रकाशित होकर आयें। मित्र, वरुण या इन्द्र हमें जिस रूप से अनुगृहीत करते हैं, तेजस्वी होकर उसी रूप को धारित करें।[ऋग्वेद 3.4.6]

तेजस्वी :: शानदार, शोभायमान, अजीब, हक्का-बक्का करनेवाला, शोभायमान, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, उग्र, प्रज्वलित, तीक्ष्ण, उत्सुक, कलहप्रिय; majestic, stunning, rattling, fiery.

प्रकाशमान दिन और रात आपस में हँसते हुए विकसित हों। मित्र, वरुण और इन्द्र जिस रूप में हम पर दया करते हैं, वे तेजस्वी उसी रूप को हमारे लिए स्वीकार करें।

Let aurous Agni come-grow during the day & night. Adopt that majestic physical-embodiment form which Mitr, Varun or Indr Dev possess while showering bliss over us.

May the adored Day and Night, combined or separate, be manifest in bodily form, so that Mitr, Varun or Indr may rejoice us by their glories.

दैव्या होतारा प्रथमा न्यृञ्जे सप्त पृक्षासः स्वधया मदन्ति। 

ऋतं शंसन्त ऋतमित्त आहुरनु व्रतं व्रतपा दीध्यानाः

मैं दिव्य और प्रधान अग्नि रूप दोनों होताओं को प्रसन्न करता हूँ। यज्ञाभिलाषी, सप्त और अन्नवान् ऋत्विक् लोग हव्य द्वारा अग्नि को प्रमत्त करते हैं। व्रत के रक्षक और दीप्तिशाली ऋत्विक् लोग प्रत्येक व्रत में यज्ञ रूप अग्नि देव को यही बात कहते हैं।[ऋग्वेद 3.4.7]

दिव्य और मुख्य अग्नि रूप दोनों होताओं की मैं प्रार्थना करता हूँ। यज्ञ की कामना से अन्न चाहने वाले ऋत्विक यज्ञ रूप अग्निदेव की प्रशंसा करते हैं।

I pray-appease the divine and the main-real forms of Agni Dev as the hosts-Ritviz. The seven Ritviz desirous of conducting-holding Yagy, ignite the fire-Agni possessing the food grains & making offerings. The Ritviz possessing aura, protecting the Yagy, appreciate Agni Dev.

I propitiate the two chief divine invokers of the demigods-deities, the seven offerors of sacrificial food, expectant of water, gratify Agni with oblations, the illustrious observers of sacred rites have saluted him in every ceremony as identifiable, verily, with water.

आ भारती भारतीभिः सजोषा इळा देवैर्मनुष्येभिरग्निः। 

सरस्वती सारस्वतेभिरर्वाक् तिस्रो देवीर्बहिरेदं सदन्तु

भारती लोगों के साथ अग्नि-रूप भारती आयें, देवों और मनुष्यों के साथ इला आयें, अग्नि भी आयें। सारस्वत गणों के साथ सरस्वती भी आयें और ये तीनों देवियाँ आकर सम्मुखस्थ कुश पर बैठे।[ऋग्वेद 3.4.8]

सूर्य दीप्ती के साथ अग्नि रूप भारती ग्रहण हों। देवताओं के साथ मनुष्यों को इला ग्रहण हों। तेजस्वी विद्वानों के संग सरस्वती भी यहाँ पर पधारे। ये तीनों देवियाँ कुश के आसन पर विराजमान हों। 

Let Bharti in the form of Agni come, Ila should come, associated with the demigods-deities. Devi Saraswati should come with the enlightened. The three Goddesses should come and occupy the Kushasan.

May Bharati, associated with the Bhartis, Ila with the demigods-deities and men and Agni and Devi Saraswati with the Sarasvatas, may the three goddesses sit down upon the sacred grass-Kushasan strewn before them.

तन्नस्तुरीपमध पोषयित्नु देव त्वष्टर्वि रराणः स्यस्व। 

यतो वीरः कर्मण्यः सुदक्षो युक्तग्रावा जायते देवकामः

अग्नि रूप त्वष्टा देव, जिससे वीर, कर्म कुशल, बलशाली, सोमाभिषव के लिए प्रस्तर हस्त और देवाभिलाषी पुत्र उत्पन्न हो सके, सन्तुष्ट होकर आप हमें वैसा ही त्राण कुशल और पुष्टिकारी वीर्य प्रदान करें।[ऋग्वेद 3.4.9]

हे त्वष्टा! जिस वीर्य से कर्मवान, पराक्रमी सोम सिद्ध करने वाला, देवों का पूजक पुत्र रचित हो सके, तुम प्रसन्न होकर वैसा ही पुष्ट वीर्य हमको प्रदान करो।

Hey Twasta Dev, a form of Agni Dev! You should be pleased & satisfied with us to provide us with strong-powerful sperms and grant us such sons who are able, posses valour & can extract Somras. 

वनस्पतेऽव सृजोप देवानग्निर्हविः शमिता सूदयाति। 

सेदु होता सत्यतरो यजाति यथा देवानां जानिमानि वेद

हे अग्नि रूप वनस्पति! आप देवों को पास ले आयें। पशु के संस्कारक अग्नि देवों के लिए हव्य दें। वे ही यज्ञ-रूप देवता लोगों को बुलाने वाले अग्नि देव यज्ञ करें; क्योंकि वे ही देवों का जन्म जानते हैं।[ऋग्वेद 3.4.10]

हे वनस्पते! तुम देवों को यहाँ लाओ। प्राणी को संस्कारित करने वाले अग्निदेव आह्वान यज्ञ करें क्योंकि वे ही देवगणों के ज्ञाता हैं।

Hey vegetation, a form of Agni Dev! Bring-invoke demigods-deities here. Make offerings for the sake of Agni Dev who generate virtues in the living beings. Let Agni dev invite-invoke demigods-deities for the Yagy, since he has evolved them.

आ याह्यग्ने समिधानो अर्वाङिन्द्रेण देवैः सरथं तुरेभिः। 

बर्हिर्न आस्तामदितिः सुपुत्रा स्वाहा देवा अमृता मादयन्ताम्

हे अग्नि देव! आप दीप्ति-युक्त होकर इन्द्र और शीघ्रताकारी देवों के साथ एक रथ पर हमारे सम्मुख पधारें। सुपुत्र युक्ता अदिति माता हमारे कुश पर बैठें। नित्य देवगण अग्निरूप स्वाहाकार वाले तृप्ति प्राप्त करें।[ऋग्वेद 3.4.11]

हे अग्नि देव! तुम प्रकाशवान हुए इन्द्र आदि देवताओं के साथ अदिति हमारे कुश को आसन पर विराजमान हों। अग्नि रूप से स्वाहाकार युक्त हुए देवगण संतुष्ट हों।

Hey Agni Dev! You should quickly come to us, in the charoite acquiring aura. Devi Aditi along with her able sons, occupy the Kushasan. Let the demigods-deities be satisfied everyday while making offerings in holy fire-Agni.

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संतोष महादेव-धर्म विद्या सिद्ध व्यास पीठ

(बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा)

BRAHASPATI-BRAHMANSPATI DEV बृहस्पति-ब्रह्मण स्पति देव

BRAHASPATI-BRAHMANSPATI DEV

बृहस्पति-ब्रह्मण स्पति देव

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM

By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।

अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।

निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (190) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- बृहस्पति,  छन्द :- त्रिष्टुप्।

अनर्वाणं वृषभं मन्द्रजिह्वं बृहस्पतिं वर्धया नव्यमर्कैः। 

गाथान्यः सुरुचो यस्य देवा आशृण्वन्ति नवमानस्य मर्ताः

हे होता! अभीष्टवर्षी मधुर भाषी और स्तुति योग्य बृहस्पति को पूजा-साधक मंत्रों द्वारा वर्द्धित करें। वे स्तोता का परित्याग नहीं करते। दीप्ति युक्त और स्तूय मान बृहस्पति देव की गाथा का पाठ करने वाले पाठक, देवगण और मनुष्यगण स्तुति सुनाते हैं।[ऋग्वेद 1.190.1] 

परित्याग :: परित्यजन, आत्मसमर्पण, अधिकार त्याग, इंकार, अपदस्थ होना, उपेक्षा, अवहेलना;  abandonment, reject, discard, avoidance, preterition.

हे मनुष्यों द्वेष रहित पूजनीय बृहस्पति को श्लोकों द्वारा अर्चना करो। वे स्तोता से विमुक्त नहीं होते। देवताओं में पूज्य उनके वचनों को देवगण और प्राणी सभी सम्मान पूर्वक सुनते हैं। 

Hey humans, hosts, Ritviz! Pray-worship Brahaspati with the help of sacred hymns (Strotr, Mantr). He never abandon (discard, reject) the devotee. Brilliant-aurous Brahaspati Dev’s words-advises are respected (cared, responded) by the demigods-deities and humans.

The demons-giants too respect him and care for his words. 

तमृत्विया उप वाचः सचन्ते सर्गो न यो देवयतामसर्जि। 

बृहस्पतिः स ह्यञ्जो वरांसि विभ्वाभवत्समृते भातरिश्वा

वर्षा ऋतु सम्बन्धी स्तुतियाँ सृजन कर्तृरूप बृहस्पतिदेव के पास जाती हैं। वे देवाभिलाषियों को फल देते हैं। वे सम्पूर्ण संसार को व्यक्त करते हैं। वे स्वर्ग व्यापी मातरिश्वा की तरह वरणीय फल उत्पन्न करके यज्ञ के लिए सम्भूत हुए है।[ऋग्वेद 1.190.2]मातरिश्वा :: यह अग्नि तथा उसको उत्पन्न करने वाले देवता के लिये प्रयुक्त किया गया है (

ऋग्वेद 3.5.9)। मनु के लिये मातरिश्वा ने अग्नि को दूर से लाकर प्रदीप्त किया था। ऋग्वेद के एक प्रसिद्ध यज्ञकर्ता और गरुड़ के पुत्र का भी यही नाम है।

अंतरिक्ष में चलने वाला पवन (वायु, हवा), एक प्रकार की अग्नि; which moves through space-sky, a kind of fire.

वर्षा के समान प्रार्थनाएँ बृहस्पति को प्राप्त होती हैं। वे संसार को व्यक्त करने वाले हैं तथा मातरिश्वा के समान फल देने वाले हैं।

Prayers made for rains are answered by Brahaspati Dev. He support those who wish to reach the demigods-deities. He represents the whole universe. He rewards the devotees for the Yagy like air-Pawan Dev. 

As per astrology the rise of Brahaspati (knowledge, understanding) is essential for marriage. 

उपस्तुतिं नमस उद्यतिं च श्लोकं यंसत्सवितेव प्र बाहू। 

अस्य क्रत्वाहन्योयो अस्ति मृगो न भीमो अरक्षसस्तुविष्मान्

जिस प्रकार से सूर्य की किरणें प्रकाशित करने की चेष्टा करती है, उसी प्रकार से बृहस्पतिदेव यजमानों की स्तुति, अन्न, दान और मंत्रों को स्वीकार करने की चेष्टा करते हैं। राक्षसों और शत्रुओं से रहित बृहस्पतिदेव की शक्ति से दिवस कालीन सूर्य देव भयंकर जन्तुओं की तरह बलशाली होकर भ्रमण करते हैं।[ऋग्वेद 1.190.3]

सविता द्वारा दीप्ति और ताप प्रदान करने के तुल्य बृहस्पति तपस्वी को प्रार्थना और नमस्कार को ग्रहण करने के लिए सचेष्ट रहते हैं। इन हिंसा रहित बृहस्पति की शक्ति से ही सूर्य भयंकर वन पशु के तुल्य विचरण करते हैं।

The manner in which the Sun rays lit the universe, Brahaspati too accept the prayers of the devotees and offerings in the form of food grains, donations and recitation of Mantr to oblige them. Free from the enmity of any one and the demons Sun moves like a dangerous beast freely due to the strength of Brahaspati.

The Hindus observe fasting on Thursday to seek his blessings and make donations to the deserving and the desirous. 

अस्य श्लोको दिवीयते पृथिव्यामत्यो न यंसद्यक्षभृद्विचेताः। 

मृगाणां न हेतयो यन्ति चेमा बृहस्पतेरहिमायाँ अभि द्यून्

भूलोक और द्युलोक में बृहस्पति देव की कीर्ति व्याप्त है। ये सूर्य देव की तरह पूजित हव्य धारण करते हैं। वे प्राणियों में चैतन्यता देते हुए फल प्रदान करते हैं। इनका आयुध शिकारी पुरुषों के अस्त्रों की तरह है। उनका आयुध मायावियों व कपटी असुरों को मारता है।[ऋग्वेद 1.190.4]

मायावी :: करामाती, ज्ञानी, दाना, सिद्ध, मायावी, बाज़ीगर, मायावी, झूठा, धोखेबाज़, कपटी, ढोंगी, उठाईगीरा, जादूगर, मायावी, करामाती, ऐन्द्रजालिक; charlatan, sorcerer, magician.

आकाश और धरती पर बृहस्पति का ऐश्वर्य फैला हुआ है। वे सूर्य के समान हवि धारण करने वाले हैं। उनका शस्त्र माया मुर्गों के पीछे सदा भागता है।

His glory is spreaded over the earth and the heavens.  He is worshiped like the Sun and accept the offerings made by the devotees. His weapons are like the arms of the hunters and kill those who under take elusive tactics in the war.

The demons are expert in elusive tactics in war. 

ये त्वा देवोस्त्रिकं मन्यमानाः पापा भद्रमुपजीवन्ति पज्राः। 

न दूढ्येअनु ददासि वामं बृहस्पते चयस इत्पियारुम्

हे बृहस्पति देव! जो पापी लोग कल्याणकारी बृहस्पतिदेव को वृद्ध बैल जानते हैं, उन्हें आप वरण करने योग्य धन न देना। हे बृहस्पति देव! जो सोम यज्ञ करता है, उस पर आप निःसन्देह कृपा करते हैं।[ऋग्वेद 1.190.5]

हे बृहस्पते! जो धन के घमण्ड से युक्त हुए अपराधी, तुम्हे वृद्ध बैल मानकर अपने गर्व से जीवित हैं, उन्हें उन सुखों के वरणीय धन नहीं देते। तुम उन अपराधियों से दूर रहा करते हो।

Hey  Brahaspati Dev! You do not oblige those sinners who consider you like an old bull. Do not grant them riches. You undoubtedly oblige the person who conducts Som Yagy.

सुप्रैतुः सूयवसो न पन्था दुर्नियन्तुः परिप्रीतो न मित्रः। 

अनर्वाणो अभि ये चक्षते नोऽपीवृता अपोर्णुवन्तो अस्थुः

हे बृहस्पति देव! आप सुखगामी और सुखाद्य विशिष्ट यजमान के मार्ग रूप और दुष्टहन्ता राजा के मित्र हैं। जो हमारी निन्दा करते हैं, उनके सुरक्षित होने पर भी आप उन्हें (अपनी) रक्षा से हीन करें।[ऋग्वेद 1.190.6] हे बृहस्पते! तुम सुमार्ग पर चलने वाले व्यक्तियों के लिए मार्ग रूप और दुष्टों पर राज्य करने वाले के सखा के तुल्य हो जो हमारे द्वेष करते हैं वे क्लेशों से घिरे रहें। Hey Brahaspati Dev! You are a friend of the king who kills the wicked-viceful and the Ritviz-Yajman; granting them comforts, pleasure and nourishing food. Do not protect a person who criticise, torture, deprave us. 

सं यं स्तुभोऽवनयो न यन्ति समुद्रं न स्रवतो रोधचक्राः। 

स विद्वाँ उभयं चष्टे अन्तबृहस्पतिस्तर आपश्च गृध्रः

जिस प्रकार से मनुष्य राजा से मिलता है, तटद्वय वर्त्तिनी नदी जैसे समुद्र में मिलती है, उसी प्रकार से समस्त स्तुतियाँ बृहस्पति देव में मिलती हैं। वे विद्वान् है। आकाशचारी पक्षी की तरह बृहस्पति रूप से जल और तट दोनों को देखते हैं अथवा वृष्टिकामी अभिज्ञ बृहस्पति देव मध्य में स्थित होकर तट और जल दोनों को उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 1.190.7]

भंवर परिपूर्ण गंभीर जल वाली प्रव नदियाँ जैसे समुद्र को ग्रहण होती हैं, वैसे हमारी प्रार्थनाएँ बृहस्पति को ग्रहण होती है। वे किनारे और जल दोनों के तुल्य हमारे कार्यक्रमों को सिद्ध दृष्टि से देखते हैं।

The way a needy meets the king, rivers meet the ocean, all prayers-worship reach-merge Brahaspati Dev. Brahaspati Dev watches-observes the river banks like a bird flying in the sky. 

Brahaspati Dev grants learning, knowledge, enlightenment and Maa Saraswati grants education and Ganesh Maharaj grants intelligence & prudence. 

एवा महस्तुविजातस्तुविष्मान्बृहस्पतिर्वृषभो धायि देवः। 

स नः स्तुतो वीरवद्धातु गोमद्विद्यामेषं वृजनं जीरदानुम्

इसी रूप से बृहस्पतिदेव महान्, बलवान्, आशय के अनुकूल वर्षा करने वाले, दीप्तिमान् होकर और बहुतों के उपकार के लिए उत्पन्न हुए हैं। उनका स्तवन करने पर वे हमें वीर संतान प्रदान करें, जिससे हम अन्न, बल और दीर्घायु को प्राप्त कर सकें।[ऋग्वेद 1.190.8] 

बलवान, श्रेष्ठ, पूजनीय, बृहस्पति अनेक के परोपकार के लिए प्रकट होते हैं। ये हमारी वंदना से प्रसन्न होकर हमको बीर संतान तथा गाय आदि धन प्रदान करें। हम

अन्न, शक्ति, और उत्तम स्वाभाव वाले हों। 

Brahaspati has evolved to grant the wishes of many, is great, powerful, strong and rain causing-generating, as per need and glowing. 

ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (23) :: ऋषि :-  गुत्समद,  भार्गवः,  देवता :- 

बृहस्पति, ब्रह्मणस्पति, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।

गणानां त्वा गणपतिं हवामहे कविं कवीनामुपमश्रवस्त मम्।

ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीद सादनम्

हे ब्रह्मण स्पति! आप देवों में गणपति और कवियों में कवि हैं। आपको अन्न सर्वोच्च और उपमानभूत है। आप प्रशंसनीय लोगों में राजा और मंत्रों के स्वामी हैं। हम आपका आह्वान करते है। आप हमारी स्तुति सुनकर आश्रय प्रदान करने के लिए यज्ञगृह में पधारें।[ऋग्वेद 2.23.1]

हे ब्रह्मण स्पते! तुम देवों में अद्भुत और कवियों में महान हो। तुम्हारा अन्न सबसे श्रेष्ठ है। तुम प्रशंसा किये हुओं में महान एवं श्लोकों के स्वामी हो। तुम हमारी वंदना से शरण देने हेतु अनुष्ठान स्थान में विराजो। हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।

Hey Brahman Spate! You are amazing like Ganpati amongest the demigods-deities and excellent amongest the poets. You are king and the Lord of Mantr amongest the revered-honoured. We invite you. Come to grant us shelter-protection responding to our prayers at the site of the Yagy. 

देवाश्चित्ते असुर्य प्रचेतसो बृहस्पते यज्ञियं भागमानशुः।

उस्राइव सूर्यो ज्योतिषा महो विश्वेषाम्मिज्जनिता ब्रह्मणामसि

हे असुर हन्ता और प्रकृष्ट ज्ञानी बृहस्पति देव! देवों ने आपका यज्ञीय भाग प्राप्त किया। जिस प्रकार ज्योति द्वारा पूजनीय सूर्य देव किरण उत्पन्न करते हैं, उसी प्रकार आप सब मंत्र उत्पन्न करें।[ऋग्वेद 2.23.2]

हे राक्षसों का वध करने वाले, ज्ञानवान ब्रह्मणस्पते! देवताओं ने तुम्हारा यज्ञ भाग प्राप्त किया। जैसे सूर्य अपनी ज्योति से किरणें उत्पन्न करते हैं, वैसे ही तुम स्तोत्र उत्पन्न करो।

Hey slayer-killer of demons and enlightened Brahaspati Dev-Brahman Spatye! The demigods received their share in the Yagy, offered by you. The way revered-honourable Sun produces the rays of light, you should also produce all Mantr.  

आ विबाध्या परिरापस्तमांसि च ज्योतिष्मन्तं रथमृतस्य तिष्ठसि। 

बृहस्पते भीमममित्रदम्भनं रक्षोहणं गोत्रभिदं स्वर्विदम्

हे बृहस्पति देव! चारों ओर से निन्दकों और अन्धकारों को दूर करके, आप ज्योतिर्मान् यज्ञ प्रापक, भयानक, शत्रु हिंसक, राक्षस नाशक, मेघ भेदक और स्वर्ग प्रदायक रथ में आरूढ होवें।[ऋग्वेद 2.23.3]

प्रापक :: प्राप्ति संबंधी, प्राप्त होनेवाला; recipient.

निन्दक :: अपमानकारी, अपवादी, उपहासात्मक, निन्दक, मुँहफट, बुराई करने वाला; cynic, slanderer, satirical. 

SLANDARD :: बदनाम, झूठी निंदा करना, कलंक लगाना, अपयश फैलाना;  denigrate, asperse, stain, traduce, slur, calumniate.

हे ब्रह्मण स्पते! सब ओर से निंदकों और अंधकार को मिटाकर तुम दमकते हुए विकराल, शत्रुनाशक मेघों को छिन्न-भिन्न करने वाले दिव्य रथ पर आरूढ़ हुए हो।

Hey Brahman Spatye-Brahaspati! Ride the charoite which grants heaven, pierce through the clouds, slays-kills the demons, violent people, fearsome, leading to receipt of the Yagy, brilliant, surrounded by the wicked, cynic, slanderer, satirical. 

सुनीतिभिर्नयसि त्रायसे जनं यस्तुभ्यं दाशान्न तमंहो अश्नवत्। 

ब्रह्मद्विषस्तपनो मन्युमीरसि बृहस्पते महि तत्ते महित्वनम्

हे बृहस्पति देव! जो आपको हव्य देता है, उसे आप सन्मार्ग में ले जाते हैं। उसे बचाते है। उसे पाप नहीं लगता। आपका ऐसा माहात्म्य है कि आप मंत्र द्वेषियों को सन्ताप देते हुए क्रोध से उनकी हिंसा करते हैं।[ऋग्वेद 2.23.4]

हे ब्रह्मण स्पते! तुम हविदाता को महान मार्ग पर ले जाने वाले हो, उसकी पाप से सुरक्षा करते हो। तुम अपनी महिमा से वंदना न करने वालों को कष्ट देते और आवेशों का पतन करते हो।

Hey Brahaspati Dev! You direct-take one to the righteous, virtuous, pious path who make offerings to you. You protect him from committing sins. Its your greatness that you punish those who are envious to Mantr. 

न तमंहो न दुरितं कुतश्चन नारातयस्तितिरुर्न द्वयाविनः। 

विश्वा इदस्माद्द्वरसो वि बाधसे यं सुगोपा रक्षसि ब्रह्मणस्पते

हे सुरक्षक ब्रह्मणस्पति देव! जिसकी आप रक्षा करते हैं, उसे कोई दुःख व कष्ट नहीं दे सकता, पाप उसे कष्ट नहीं दे सकता। शत्रु लोग उसे किसी तरह मार नहीं सकते, ठग उसे सता नहीं सकते। उसके लिए आप सारे हिंसकों को दूर कर दें।[ऋग्वेद 2.23.5]

हे ब्रह्मणस्पते! तुम जिसकी रक्षा करते हो, उसे कोई दुःख नहीं होता। उसके पाप नहीं व्यापते! उसे शत्रु नहीं मार सकते। तुम उसके लिए सभी हिंसा करने वालों को दूर भगा दो।

Hey protector Brahaspati-Brahman Spatye! One under your protection is not troubled by pains-sorrow, tortures and sins. The thugs can not tease or kill him. You repel those who wish to trouble-torture, kill him. 

त्वं नो गोपाः पथिकृद्विचक्षणस्तव व्रताय मतिभिर्जरामहे। 

बृहस्पते यो नो अभि ह्वरो दधे स्वा तं मर्मर्तु दुच्छुना हरस्वती

हे बृहस्पति देव! आप हमारे रक्षक, सन्मार्ग दाता और विलक्षण हैं। आपके यज्ञ के लिए स्तोत्र द्वारा हम स्तुति करते हैं। जो हमारे कुटिल आचरण करता है, उसकी दुर्बुद्धि वेगवती होकर उसे शीघ्र विनष्ट करे।[ऋग्वेद 2.23.6] 

हे ब्रह्मण स्पते! तुम दिव्य कर्म वाले उत्तम मार्ग पर चलकर हमारी सुरक्षा करते हो। तुम्हारे प्रति अनुष्ठान करते हुए हम मंत्र पाठ द्वारा वंदना करते हैं। हमारे प्रति कुटिलता पूर्वक कार्य करने वाले की बुद्धि बिगड़ जाये और उसे शीघ्र ही समाप्त कर दें।

Hey Brahaspati Dev! You are our protector, unique and amazing. You make prayers for your Yagy with the help of Strotr-hymns.  One who behave with us in a wicked manner you quickly destroy his indecent thinking-thoughts. 

उत वा यो नो मर्चयादनागसोऽरातीवा मर्तः सानुको वृकः। 

बृहस्पते अप तं वर्तया पथः सुगं नो अस्यै देववीतये कृधि

हे बृहस्पति देव! शत्रु तुल्य आचरण करने वाले और भेड़िये के सदृश हिंसा करने वाले मनुष्य यदि हमें पीड़ित या कष्ट प्रदान करें तो आप उन्हें हमारे रास्ते से हटा लें। देवत्व की प्राप्ति के लिए हमारे मार्ग को अपराध रहित बनाते हुए उसे सरल बनायें।[ऋग्वेद 2.23.7] 

हे ब्रह्मण स्पते! जो अभिमानी हमारे समीप आकार हमको मारना चाहे, उसे श्रेष्ठ मार्ग से हटाकर यज्ञ के लिए हमारा मार्ग सफल करो।

Hey Brahaspati Dev! Remove those from our path, who trouble-torture us, act like an enemy and behave with us like wolf. Help us attain demigodhood-demigod ship clearing our sins-crimes and making our efforts easy. 

त्रातारं त्वा तनूनां हवामहेऽवस्पर्तरधिवक्तारमस्मयुम्। 

बृहस्पते देवनिदो नि बर्हय मा दुरेवा उत्तरं सुम्रमुन्नशन्

हे बृहस्पति देव! आप सबको उपद्रव से बचाकर हमारे पौत्रादि का पालन करें। हमारे लिए मीठे वचन बोलें और हमारे प्रति प्रसन्न होवें। हम आपका आवाहन करते हैं। आप देवताओं की निन्दा करने वालों का विनाश करते हुए ऐसे दुर्बुद्धि लोगों को उत्कृष्ट सुख न दें।[ऋग्वेद 2.23.8]

हे ब्रह्मण स्पते! हमको मुसीबतों से सुरक्षित करो। हमारी संतान का पालन करो। हम पर खुश होकर मीठे वचन बोलो, देवताओं के निन्दकों को नष्ट कर दो, जिससे मूर्ख प्राणी सुखी न रहें। हम तुम्हारा आह्वान करते हैं।

Hey Brahaspati Dev! Protect-save us from all sorts of troubles, tensions and nourish-nurture our grandsons etc. Speak auspicious words-blessings for us and be happy with us. We invite you. Do not grant-sanction comfort, luxuries to those wicked, vicious, ignorant who reproach, damn demigods-deities. 

त्वया वयं सुवृधा ब्रह्मणस्पते स्पार्हा वसु मनुष्या ददीमहि। 

या नो दूरे तळितो या अरातयोऽभि सन्ति जम्भये थे अननसः

हे ब्रह्मण स्पति! आपके द्वारा वर्द्धित होने पर मनुष्यों के पास से हम स्पृहणीय धन प्राप्त करें। दूर या पास हमारे जो शत्रु हमें पराजित करते हैं, उन यज्ञहीन शत्रुओं को विनष्ट करें।[ऋग्वेद 2.23.9]

 स्पृहणीय :: admirable. 

हे ब्रह्मण स्पते! तुम्हारी वृद्धि होने पर हम धन के भागीदार बने । जो पास या दूर शत्रु हम पर विजय पाना चाहते हैं, उन अनुष्ठान विहीन शत्रुओं का पतन करो।

Hey Brahmn Spatye! On being protected and nurtured by you, we should attain admirable wealth, amenities. You defeat our enemies who are either close or far-away from us. Destroy those who do not conduct Yagy, have no faith in demigods-deities are atheist. 

त्वया वयमुत्तमं धीमहे वयो बृहस्पते पप्रिणा सस्निना युजा। 

मा नो दुःशंसो अभिदिप्सुरीशत प्र सुशंसा मतिभिस्तारिषीमहि

हे बृहस्पति देव! आप मनोरथ को पूर्ण करने वाले और पवित्र है। आपकी सहायता पाकर (हम) उत्कृष्ट अन्न प्राप्त करेंगे। जो दुष्ट हमें पराजित करना चाहते हैं, वह हमारे अधिपति न हो। हम उत्कृष्ट स्तुति द्वारा पुण्यवान् होकर उन्नति करें।[ऋग्वेद 2.23.10]

हे ब्रह्मण स्पते! तुम पवित्र हो, अभिष्ट पूर्ण करने वाले हो। तुम्हारी सहायता से हम महान अन्न प्राप्त करें। हमको पराजित करने की अभिलाषा करने वाले दुष्ट शत्रु न हमारे स्वामी न बन जायें। हम महान श्लोक द्वारा पुनीत हुए अपने को उन्नतिशील बनायें। 

Hey Brahaspati Dev! You are pious-virtuous and accomplish our desires.  We will get-have excellent food grains-stuff with your blessings. We wish to defeat the enemy and wish you to ensure he never become our lord. Let us become virtuous and progress by the recitation of excellent hymns.

अनानुदो वृषभो जग्मिराहवं निष्टप्ता शत्रुं पृतनासु सासहिः। 

असि सत्य ॠणया ब्रह्मणस्पत उग्रस्य चिद्दमिता वीळुहर्षिणः

हे ब्रह्मण स्पति! आपके दान की उपमा नहीं है। आप अभीष्ट वर्षी है। युद्ध में जाकर आप शत्रुओं को सन्ताप देते और उन्हें विनष्ट करते हैं। आपका पराक्रम सत्य है। आप ऋण से मुक्त करते हैं। आप उग्र हैं और मदोन्मत्त व्यक्तियों का दमन करते हैं।[ऋग्वेद 2.23.11] 

हे ब्रह्मणस्पते! तुम्हारा दान अनोखा है। युद्ध में शत्रुओं को दुःख पहुँचाते हो। तुम दृढ़ बल वाले उग्र एवं अभिमानियों को दबाते हो।

Hey Brahman Spate! There is no parallel of the donations-charity done by you. You accomplish our desires. You trouble the enemy in the war and destroy them. Your valour is established. You relieve us from debt. You are furious and repress-destroy the sot.

अदेवेन मनसा यो रिषण्यति शासामुग्रो मन्यमानो जिघांसति। 

बृहस्पते मा प्रणक्तस्य नो वधो नि कर्म मन्युं दुरेवस्य शर्धतः

हे बृहस्पति देव! जो व्यक्ति देव शून्य मन से हमारी हिंसा करता है और जो उग्र आत्माभिमानी हमारा वध करने की इच्छा करता है, उसका आयुध हमें न स्पर्श न कर सके। हम भी ऐसे बलवान् और दुष्ट शत्रुओं का क्रोध नाश करने में समर्थ हो।[ऋग्वेद 2.23.12]

हे ब्रह्मण स्पते! जो देवता से रहित मन वाला अभिमानी हमें चाहे, उसका शस्त्र हमें छू न सके।

Hey Brahaspati Dev! Do not let the weapons of the egoistic, atheist, furious who wish to kill us, touch us. We should be capable of killing such strong and wicked-sinners.

भरेषु हव्यो नमसोपसद्यो गन्ता वाजेषु सनिता धनंधनम्। 

विश्वा इदर्यो अभिदिप्स्वो ३ मृधो बृहस्पतिर्वि ववर्हा रथाँइव

युद्ध काल में बृहस्पति आह्वान योग्य और नमस्कार पूर्वक उपासना, योग्य हैं। वे युद्ध में जाते हैं। सभी प्रकार का धन देते हैं। सबके स्वामी बृहस्पति विजिगीषा वाली सारी हिंसक सेनाओं को रथ की तरह निहत और विध्वस्त करते हैं।[ऋग्वेद 2.23.13]

विजिगीषा :: जिसे विजय पाने की इच्छा हो; warriors desirous of victory in the war, the conquering king, desirous of victory, wishing to conquer, emulous, ambitious, a warrior, a hero.

VITAL :: लोकप्रिय, अत्याधिक, अत्यावश्यक, जिन्दादिल, जीवित, प्राणाधार, महत्वपूर्ण, मार्मिक, संबंधी, मर्मस्थान, जीवनी का, जीवनीक, जीवन का, जीवन-मरण का, ज़िंदगी का। 

जो ब्रह्मणस्पति संग्राम काल में नमस्कार पूर्वक पुकारे जाने के योग्य हैं, वे संग्राम करते तथा सब प्रकार की समृद्धि प्रदान करते हैं, वे सभी के स्वामी, हिंसक, रिपु को सेना के रथ ध्वस्त करने के समान तोडते हैं।

Brahaspati is vital during the war, deserve prayers-worship. He goes to the war. He grants all sorts of riches. Lord of all, Brahaspati destroy the chariots and other related things of the violent enemy for the sake of devotee warriors.

तेजिष्ठया तपनी रक्षसस्तप ये त्वा निदे दधिरे दृष्टवीर्यम्। 

आविस्तत्कृष्व यदसत्त उक्थ्यं बृहस्पते वि परिरायो अर्दय

हे बृहस्पति देव! अतीव तीक्ष्ण और सन्तापक हेति आयुध से राक्षसों को सन्तप्त करें। इन्हीं राक्षसों ने आपके पराक्रम के प्रभूत होने पर भी आपकी निन्दा की। पूर्वकाल में आपका जो प्रशंसनीय वीर्य था, इस समय उसका आविष्कार करें और उसके द्वारा निन्दकों का विनाश करें।[ऋग्वेद 2.23.14]

हे ब्रह्मण स्पते! कष्ट देने वाले तीव्र शस्त्र से असुरों को दुख दो। इन्होंने तुम्हारे महाबली होने पर तुम्हारी रक्षा की थी। तुम अपने उसी प्राचीन पराक्रम को प्रकट कर निन्दकों को समाप्त कर दो।

Hey Brahaspati Dev! Trouble the demons with your sharp weapons. These demons  slandered you in the past. You should reveal your previous valour and destroy them. 

बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद्द्युमद्विभाति क्रआपज्जनेषु। 

यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं घेहि चित्रम्

हे यज्ञजात बृहस्पति देव! जिस धन की आर्य लोग पूजा करते हैं, जो दीप्ति और यज्ञ वाला धन लोगों में शोभा पाता है, जो धन अपने तेज से दीप्ति वाला है, वही विचित्र धन या ब्रह्मचर्य तेज हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.23.15]

हे यज्ञ में उत्पन्न ब्रह्मण स्पते! आर्यों द्वारा पूजित देदीप्यमान यज्ञ वाला धन शोभायमान होता है, उसी तेज युक्त धन को हमें प्रदान करो। 

Hey Brahaspati, born due-out of he Yagy! Grant us the wealth which is energetic-bright and prayed by the Ary. 

मा नः स्तेनेभ्यो ये अभि द्रुहस्पदे निरामिणो रिपवोऽन्नेषु जागृधुः। 

आ देवानामोहते वि व्रयो हृदि बृहस्पते न परः साम्नो विदुः॥

हे बृहस्पति देव! जो चोर द्रोह करने में प्रसन्न होते हैं, जो शत्रु हैं, जो दूसरे का धन चाहते हैं, जो अपने मन से सर्वाशतः देवों का बहिष्कार करने की इच्छा करते हैं और जो राक्षस नाशक साम स्तुति नहीं जानते, उनके हाथ में हमें न देना।[ऋग्वेद 2.23.16]

हे ब्रह्मण स्पति देव! विद्रोही, शत्रु, परधन कांक्षी, देवों से पृथक सोम गान से पृथक, असुरों के लिए हमको न सौंप देना।

Hey Brahaspati Dev! Do not hand over us to those who are thieves, enemy, want others wealth, whish to boycott the demigods-deities and are unaware of the Stuti-prayers, hymns meant for the killing of demons. 

विश्वेभ्यो हि त्वा भुवनेभ्यस्परि त्वष्टाजनत्साम्नः साम्नः कविः। 

स ऋणचिदृणया ब्रह्मणस्पतिर्द्रुहो हन्ता मह ऋतस्य धर्तरि

हे बृहस्पति देव! त्वष्टा ने आपको सर्वश्रेष्ठ उत्पन्न किया; इसलिए आप सभी सामों के उच्चारण कर्ता है। यज्ञ आरम्भ करने पर ब्रह्मण स्पति उसका सभी ऋण स्वीकार करते और ऋण का परिशोध करते हैं। वे विद्रोह कारियों का विनाश करते हैं।[ऋग्वेद 2.23.17]

 हे ब्रह्मण स्पति देव! तुम महान को त्वष्टा ने रचित किया है। अत: तुम समस्त सोमों का उच्चारण करने वाले हो। यज्ञ कार्य द्वारा तुम ऋण का परिशोध और विद्रोही का नाश करते हो।

Hey Brahaspati Dev! Twasta created you first of all and hence you spell all Sams (hymns quoted in Sam Ved). Having started the Yagy Brahman Spati clears all debts. He destroy all the rebels. 

तव श्रिये व्यजिहीत पर्वतो गवां गोत्रमुदसृजो यदाङ्गिरः। 

इन्द्रेण युजा तमसा परीवृतं बृहस्पते निरपामौब्जो अर्णवम् 

हे अङ्गिरा वंशीय बृहस्पति देव! पर्वतों ने गायों को छिपाया। आपकी सम्पद् के लिए जिस समय वह उद्घाटित हुआ और आपने गायों को बाहर किया, उस समय इन्द्र देव को सहायक पाकर आपने वृत्रासुर द्वारा आक्रान्त जलाधारभूत जलराशि को नीचे कर दिया।[ऋग्वेद 2.23.18]

हे अंगिरावंशी, हे ब्राह्मणस्पति देव! पर्वतों ने धेनुओं को छिपा लिया। जब यह भेद खुला तब तुमने गौओं को निकाला और इन्द्र की सहायता से वृत्र द्वारा रोकी हुई जल राशि को गिराया। 

Hey icon (descendent) of Angira, Brahaspati Dev! The mountains concealed-hide the cows. You released the cows when it was revealed-disclosed. You released the waters held by Vrata Sur, with the help of Indr Dev.

ब्रह्मणस्पते त्वमस्य यन्ता सूक्तस्य बोधि तनयं च जिन्व। 

विश्व तद्भद्रं यदवन्ति देवा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः

हे ब्रह्मण स्पति आप इस संसार के नियामक है। इस सूक्त को जानें। हमारी सन्ततियों को प्रसन्न करें। देवता लोग जिसकी रक्षा करते हैं, वह भली-भाँति कल्याणवाहक है। हम पुत्र और पौत्रवाले होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करेंगे।[ऋग्वेद 2.23.19] 

हे ब्रह्मण स्पते! हमको सुखी बनाओ। देवगण जिसकी सुरक्षा करते हैं, वही कल्याण को वहन करने वाला होता है। हम पुत्र-पौत्र से परिपूर्ण हुए इस अनुष्ठान में श्लोक बोलेंगे।

Hey Brahman Spati Dev! You are the regulator of the world-universe. Let this Sukt be understood. Make our progeny happy. One who is protected by the  demigods-deities is able to discharge his duties efficiently, leading to welfare. We will recite this Sukt in the Yagy, blessed with sons and grand sons. 

ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (24) :: ऋषि :-  गुत्समद,  भार्गवः,  देवता :- 

बृहस्पति, ब्रह्मणस्पति, छन्द :- जगती, त्रिष्टुप्।

सेमामदिड्ढि प्रभृतिं य ईशिषेऽया विधेम नवया महा गिरा। 

यथा नो मीढ्वान्त्स्तवते सखा तव बृहस्पते सीषधः सोत नो मतिम्

हे ब्रह्मण स्पति! आप सम्पूर्ण संसार के स्वामी हैं। हमारे द्वारा भली-भाँति की गई स्तुति को ग्रहण करें। हम आपकी इस नवीन और बृहत् स्तुति के द्वारा सेवा करते हैं। हमें अभिमत फल प्रदान करें; क्योंकि हम आपके मित्र हैं। हम स्तोता आपकी स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 2.24.1]

हे ब्रह्मणस्पति देव! तुम संसार के अधीश्वर हो। हमारी वंदना को स्वीकार करो। हम इस नवीन श्लोक द्वारा तुम्हारी अर्चना करते हैं। हम तुम्हारे मित्र हैं। हमको इच्छित फल प्रदान करो। यह वंदनाकारी तुम्हारी पूजा करते हैं।

Hey Brahman Spati Dev! You are the lord of the whole universe. Accept our prayer-worship. We serve you with the new detailed prayer. Grant us the desired boons, since we are your friend. We the devotees pray to you. 

यो नन्त्वान्यनमन्न्योजसोतादर्दर्मन्युना शम्बराणि वि। 

प्राच्यावयदच्युता ब्रह्मणस्पतिरा चाविशद्वसुमन्तं वि पर्वतम्

हे बृहस्पति देव! अपनी सामर्थ्य से आपने तिरस्करणीयों का तिरस्कार किया, क्रोध परवश होकर शम्बरासुर को विदीर्ण किया, निश्चल जल को चालित किया और गोधन पूर्ण पर्वत में प्रवेश किया।[ऋग्वेद 2.24.2]

तिरस्कार :: अपमान, अनादर, अवज्ञा; disdain, reproach, insult, taunt, spurn, sneer, slight, shame, scorn, repudiation, opprobrium, neglect, mock, affront, indignity, disrespect, disparagement, dishonour, disesteem, disdain, contumely, contempt, condemnation.

हे ब्रह्मण स्पति देव! तिरस्कार योग्य प्राणी को तुमने अपनी महत्ता से तिरस्कृत किया। शम्बर को मार डाला। रुके हुए जल को चलाया और जहाँ गायें छिपी थीं, उस पर्वत में घुस गये।

Hey Brahaspati Dev! You disdained those who deserved it, killed Shambrasur and released the blocked water, entered the mountain in which cows were hidden. 

तद्देवानां देवतमाय कर्त्वमपश्रथ्न न्दृळ्हाव्रदन्त वीळिता। 

उद्गा आजदभिनद्ब्रह्मणा वहमगूहत्तमो व्यचक्षयत्स्वः

देवश्रेष्ठ देव बृहस्पति के कार्य से सुदृढ़ पर्वत शिथिल हुआ और स्थिर वृक्ष भग्न हुआ। उन्होंने गाँवों का उद्धार किया। मंत्र द्वारा बलासुर को छिन्न-भिन्न किया। अन्धकार को अदृश्य कर आदित्य को प्रकट किया।[ऋग्वेद 2.24.3]

देवों में महान ब्रह्मण स्पति की वीरता से पर्वत दृढ़ हो गया तथा स्थिर पेड़ टूट गया। उन्होंने गाओं को मुक्त कराया और श्लोक से शक्ति नामक असुर को हटा दिया। सूर्य को प्रकट कर अंधकार को समाप्त किया।

The rigid-strong mountain became loose and the stationary tree was broken down due to the might of Dev Guru Brahaspati who is revered-honoured by all. He uplifted the villages. Killed-tore into pieces, Balasur with the Mantr Shakti. Removed the darkness to let Sun shine. 

अश्मास्यमवतं ब्रह्मणस्पतिर्मधुधारमभि यमोजसातृणत्। 

तमेव विश्वे पपिरे स्वर्दृशो बहु साकं सिसिचुरुत्समुद्रिणम्

बृहस्पति देव ने पत्थर की तरह दृढ़ मुख वाले मधुर जल से पूर्ण और निम्न अवनत जिस मेघ का बल प्रयोग द्वारा वध किया, उसका आदित्य किरणों ने जलपान किया और उन्होंने ही जलधारामय वृष्टि का सिंचन किया।[ऋग्वेद 2.24.4]

पाषाण के समान अटल और मधुर जलों से युक्त जिस मेघ का बृहस्पति ने भेदन किया, सूर्य की रश्मियों ने उससे रसपान कर जल की वर्षा की और मिट्टी (धरती) को सींचा।

The rays of Adity-Sun absorbed the sweet water released when Brahaspati Dev killed the Megh who had a rigid mouth like stone & was full of sweet water, with might. This water turned into rain and irrigated the soil. 

सना ता का चिद्भुवना भवीत्वा माद्भिः शरद्भिर्दुरो वरन्त वः। 

अयतन्ता चरतो अन्यदन्यदिद्या चकार वयुना ब्रह्मणस्पतिः

हे ऋत्विको! आपके ही लिए बृहस्पति के सनातन और विचित्र प्रज्ञान ने महीने-महीने और साल साल होने वाली वर्षा का द्वार उद्घाटित किया। इस प्रकार द्यावा पृथ्वी दोनों परस्पर जल का उपभोग करते हैं।[ऋग्वेद 2.24.5]

हे मनुष्यों! ब्रह्मण स्पति ने तुम्हारे लिए ही सनातन और दिव्य वृष्टि कर दरवाजा खोला और उन्होंने मंत्रों को अद्भुतता प्रदान की और अम्बर, धरा को सुख वृद्धि करने वाला बनाया।

Hey humans-Ritviz! This is how Brahaspati used his ancient and amazing knowledge to release water available to the earth and the sky throughout the year. 

अभिनक्षन्तो अभि ये तमानशुर्निधिं पणीनां परमं गुहा हितम्। 

ते विद्वांसः प्रतिचक्ष्यानृता पुनर्यत उ आयन्तदुदीयुराविशम्

विज्ञ अङ्गिरा लोगों ने चारों ओर खोजते हुए पणियों के दुर्ग में छिपाये हुए परमधन को प्राप्त किया। माया का दर्शन करके वे जिस स्थान से गये, फिर वहीं आ गये।[ऋग्वेद 2.24.6]

विद्वान अंगिराओं ने खोलकर पणियों  के दुर्ग में छिपाये धन को प्राप्त किया। फिर माया को देख पूर्व स्थान को प्राप्त हुए। 

The enlightened Angiras searched-traced the wealth-treasure hidden in the fort of Panis and came back to the same spot from where they had started-begun, having seen the spell (cast-Maya, illusion, enchantment).  

ऋतावानः प्रतिचक्ष्यानृता पुनरात आ तस्थुः करेंयो महस्पथः। 

ते बाहुभ्यां धमितमग्निमश्मनि नकिः षो अस्त्यरणो जहुर्हि तम्

सत्यवादी और सर्वज्ञाता अङ्गिरा लोग माया का दर्शन करके पुनः प्रधान मार्ग से उसी ओर गये। उन्होंने हाथों से जलाये अग्नि को पर्वत पर फेंका। पर्वतों को जलाने वाला अग्नि वहाँ इससे पूर्व नहीं था।[ऋग्वेद 2.24.7]

फिर अंगिराओं ने माया को देखकर उसी ओर गमन किया। उन्होंने अग्नि को जलाकर पहाड़ पर फेंका। पहाड़ों को जलाने वाले अग्निदेव वहाँ पर पहले नहीं थे।

Truthful, enlightened Angiras witnessed spell-enchantment and moved again through the same route. They threw Agni with their hands over the mountains. This was the first Agni which could burn the mountains. Prior to this it did not exist. 

Dev Guru Brahaspati is Agni. He is the priest of the demigods-deities.

ऋतज्येन क्षिप्रेण ब्रह्मणस्पतिर्यत्र वष्टि प्र तदश्नोति धन्वना। 

तस्य साध्वीरिषवो याभिरस्यति नृचक्षसो दृशये कर्णयोनयः

बृहस्पति बाण क्षेपक और सत्य रूप ज्यावाले हैं। वे जो चाहते हैं, धनुष के द्वारा प्राप्त कर लेते हैं। जिस बाण को वे फेंकते हैं, वह कार्य साधन में कुशल है। वे बाण दर्शनार्थ उत्पन्न हुए हैं। कर्ण ही उनका उत्पत्ति-स्थान है।[ऋग्वेद 2.24.8]

ब्रह्मणस्पति देव बाण फेंकने में निपुण हैं। वह अपना इच्छित अभिष्ट धनुष द्वारा ग्रहण कर लेते हैं। उनके द्वारा चलाया हुआ बाण कार्य को सिद्ध होते हैं।

Brahaspati is an expert in throwing-shooting the arrow. What ever he want-need he achieve with the help of bow & arrow. The abode-origin of the arrow is ear.

Whatever Brahman Spati aims at with the truth-strung quick-darting bow, that (mark-aim) he surely attains; holy are its arrows with which he shoots (intended) for the eyes of men and having their abode-origin in the ear.

स संनयः स विनयः पुरोहितः स सुष्टुतः स युधि ब्रह्मणस्पतिः। 

चाक्ष्मो यद्वाजं भरते मती धनादित्सूर्यस्तपति तप्यतुर्वृथा

ब्रह्मण स्पति पुरोहित हैं। वे समस्त पदार्थों को पृथक् और एकत्र करते हैं। सब उनकी स्तुति करते हैं। वे युद्ध में निपुण होते हैं। सर्वदर्शी बृहस्पति जिस समय अन्न और धन धारण करते हैं, उस समय सूर्य स्वाभाविक रूप से उदित हो जाते हैं।[ऋग्वेद 2.24.9]

बाण स्पति पुरोहित रूप हैं। वे समस्त वस्तुओं को अलग करते और मिलाते हैं। सभी उनकी वंदना करते हैं। तभी सूर्योदय होता है।

Brahman Spati is a priest. He accumulate all goods separately. Everyone prayers-worship him. When enlightened Brahaspati bears-accumulate the food grains and wealth, the Sun rises.

विभु प्रभु प्रथमं मेहनावतो बृहस्पतेः सुविदत्राणि राध्या। 

इमा सातानि वेन्यस्य वाजिनो येन जना उभये भुञ्जते विशः

वृष्टिदाता बृहस्पति देव का धन चारों ओर व्याप्त, प्रापणीय, प्रभूत और उत्तम है। कमनीय और अन्नवान् बृहस्पति देव ने यह सम्पूर्ण धन दान किया। दोनों प्रकार के मनुष्य (यजमान और ने स्तोता) ध्यानावस्थित चित्त से इस धन का उपभोग करते हैं।[ऋग्वेद 2.24.10]

प्रभूत :: जो हुआ हो,  निकला हुआ, उत्पन्न, उद्गत, बहुत अधिक, प्रचुर,  पूर्ण, पूरा, पक्व, पका हुआ, उन्नत, उद्‌गम; excellent, outstanding, regeneratory, ample, sufficient, abundant.

बृहस्पति देव वृष्टि देने वाले हैं। उनका धन सर्वश्रेष्ठ है। उन्होंने अन्न युक्त सम्पूर्ण धन दिया है। यजमान और स्तोता दोनों ही इस धन को तपस्यारत रहते हुए भोग करते हैं। 

The wealth granted by the rain causing Brahaspati Dev is pervading in a all directions, acceptable, excellent and abundant. Attractive and food grain possessing Brahaspati dev has donated this wealth. Both the host-Ritviz and the Priests enjoy this wealth in a state of meditation-concentrating in God.

Dev Guru Brahaspati is associated with learning, knowledge, enlightenment, meditation, concentration, understanding; which is considered as the greatest wealth one can possess. it s never lost and can not be snatched-stolen by any one. It grants cultural values, ethics, adaptability etc.

Please refer to ::  HINDU PHILOSOPHY (5) हिंदु दर्शन :: VIRTUES सद्गुण धर्माचरण COMMANDMENTS :: HINDU PHILOSOPHY (14) हिंदु दर्शन santoshkipathshala.blogspot.com

योऽवरे वृजने विश्वथा विभुर्महामु रण्वः शवसा ववक्षिथ। 

स देवो देवान्प्रति पप्रथे पृथु विश्वेदु ता परिभूर्ब्रह्मणस्पतिः

चारों ओर व्याप्त और स्तवनीय ब्रह्मण स्पति अतीव और महान् बली दोनों प्रकार के स्तोताओं की अपने शक्ति से रक्षा करते हैं। दानादि गुण वाले बृहस्पति देवों के प्रतिनिधि रूप से सर्वत्र अत्यन्त विख्यात है। इसीलिए वे सभी प्राणियों के स्वामी भी हुए हैं।[ऋग्वेद 2.24.11]

समस्त ओर बसे हुए वंदना योग्य, ब्रह्मण स्पति अपनी शक्ति से विद्वान और बलशाली दोनों प्रकार के मनुष्यों की सुरक्षा करते हैं। वे दानशील स्वभाव वाले देवों के नेता रूप से विख्यात हैं और वे समस्त प्राणधारियों के स्वामी हैं।

All pervading esteemed Brahman Spati protects both types of devotees with his power-might. He is famous for the donations-charity done by him. Hence, he is a Lord of the organism. 

विश्वं सत्यं मघवाना युवोरिदापश्चन प्र मिनन्ति व्रतं वाम्। 

अच्छेन्द्राब्रह्मणस्पती हविर्नोऽन्नं युजेव वाजिना जिगातम्

हे इन्द्र और ब्रह्मण स्पति आप धनवान् है। सभी सत्य आपको ही है। आपके व्रत को जल नहीं मार सकता। जिस प्रकार से रथ में जुते हुए घोड़े खाद्य के सामने दौड़ते हैं, उसी प्रकार आप भी हमारे हविष्यान् को ग्रहण करने के लिए पधारें।[ऋग्वेद 2.24.12]

हे इन्द्र देव! हे ब्रह्मण स्पति देव! तुम दोनों ऐश्वर्यवान हो। समस्त धन तुम्हारा है। तुम्हारे उद्देश्य को कोई नहीं रोक सकता। रथ में जुते घोड़ों के अन्न के प्रति दौड़ने के समान तुम भी हमारी हवियों के प्रति दौड़ते हुए आओ।

Hey Indr Dev & Brahman Spati! You are rich & opulent. All wealth is possessed by you. Your decisions can not be altered-changed by water (Vratr & other demons who intend to block rains, water). The way the horses deployed in the charoite rush towards the eatables, you too should run to accept our offerings. 

उताशिष्ठा अनु शृण्वन्ति वह्नयः सभेयो विप्रो भरते मती धना। 

वीळुद्वेषा अनु वश ऋणमाददिः स ह वाजी समिथे ब्रह्मणस्पतिः

युद्ध में बलवान् ब्रह्मणस्पति देव सभ्य ज्ञानी जनों के उत्तम धन को ही स्वीकार करते हैं और बलवान् शत्रुओं से द्वेष करते हैं। द्रुत गति से उड़ने वाले अश्व स्तुति को श्रवण करते हैं। वे ऋण से उऋण करते हैं।[ऋग्वेद 2.24.13]

द्वेष :: राग का विरोधी भाव, वैमनस्यता, विरोध, शत्रुता, वैर; malice, hatred, enmity.

ब्रह्मणस्पति देव के घोड़े हमारी प्रार्थना सुना करते हैं। विद्वान अध्वर्यु सुन्दर श्लोक परिपूर्ण हवि प्रदान करते हैं।

Brahman Spati Dev accept help from the cultured and has malice-hatred for the wicked-sinners. Fast moving listen listen to the prayers and clear our debts.

The very swift horses of Brahman Spati listen to our invocation; the priest of the assembly offers with praise the sacrificial wealth; may Brahman Spati, the hater of the oppressor, accept the payment of the debt, agreeably to his plural Asure (anti demigods-deities, demons-giants); may he be the accepter of the sacrificial food presented at this ceremony.

ब्रह्मणस्पतेरभवद्यथावशं सत्यो मन्युर्महि कर्मा करिष्यतः। 

यो गा उदाजत्स दिवे वि चाभजन्महीव रीतिः शवसासरत्पृथक्

जिस समय ब्रह्मण स्पति किसी महान् कर्म में प्रवृत्त होते हैं, उस समय उनका मंत्र उनकी अभिलाषा के अनुसार सफल होता है। जिन्होंने गौवों को बाहर निकाल कर विजय प्राप्त की। सतत् प्रवाहित नदियों की भाँति ये गौवें स्वतंत्र रूप से चली गई।[ऋग्वेद 2.24.14]

 ब्रह्मण स्पति हमारे पास पधारकर मंत्र स्वीकृत करो। ब्रह्मण स्पति के किसी कार्य में लगने पर उनका मंत्र फलदायक होता है। उन्होंने धेनु को निकाला, सूर्य लोक के लिए उसका हिस्सा किया। वे धेनु महान श्लोक के अपनी शक्ति से गतिवती हुई है।

When Brahman Spati Dev begin some job-endeavour (accomplishment) his Mantr grant the reward-accomplishment, success as per his wish. He released the cows from the captivity and attained victory. The cows moved like the continuous flow of the rivers.

ब्रह्मणस्पते सुयमस्य विश्वहा रायः स्याम रथ्योवयस्वतः। 

वीरेषु वीराँ उप पृङ्धि नस्त्वं यदीशानो ब्रह्मणा वेषि मे हवम्

हे ब्रह्मण स्पति! हम सभी व्रतों के पालक और अन्न युक्त धन के सदैव स्वामी रहें। आप सभी के नियन्ता है, इसलिए ज्ञानपूर्वक की गई हमारी स्तुतियों को ग्रहण करके हमें पराक्रमी संतान प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.24.15]

हे ब्रह्मणस्पति देव! हम श्रेष्ठ नियम वाले अन्न व धन तुल्य अलग-अलग के स्वामी बने। तुम हमारे योद्धा पुत्र को संताप न दो। तुम सबके दाता हमारी वंदना और अन्न रूपी हवि की कामना करते हैं।

Hey Brahman Spati! Let us remain the followers-conducting all fasts, vows & the owner of food grains along with wealth. You are the controller-regulator of all. Listen-respond to our prayers and grant us progeny with strength, power & might.

ब्रह्मणस्पते त्वमस्य यन्ता सूक्तस्य बोधि तनयं च जिन्व। 

विश्वं तद्भद्रं यदवन्ति देवा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः

हे ब्रह्मण स्पति! आप इस संसार के नियामक है। आप इस सूक्त को जाने। आप हमारी सन्ततियों को प्रसन्न करें। देवता लोग जिसकी रक्षा करते हैं, उसका हर प्रकार से कल्याण होता है। पुत्र और पौत्र वाले होकर हम इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति कर सकें।[ऋग्वेद 2.24.16] 

हे ब्रह्मण स्पति! तुम संसार के नियामक हो। हमारे श्लोक को जानते हुए हमारी संतानों को सुखी बनाओ। देवगण जिसकी सुरक्षा करते हैं, वही कल्याण को वहन करने वाला होता है। पुत्र-पौत्र से परिपूर्ण हुए हम इस अनुष्ठान में श्लोक बोलेंगे। 

Hey Brahman Spati! You are the regulator of this universe. Know-understand, recognise this Shlok-Sukt. Grant pleasure-comforts to our progeny. One who is protected by the demigods-deities achieves all round growth-development, welfare. On being blessed with sons & grand sons, let us make excellent prayers.

ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (25) :: ऋषि :-  गुत्समद,  भार्गवः,  देवता :- 

ब्रह्मणस्पति, छन्द :- जगती।

इन्धा नो अग्निं वनवद्वनुष्यतः कृतब्रह्मा शूशुवद्रातहव्य इत्। 

जातन जातमति स प्र सर्सृते यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः॥

अग्नि को प्रज्वलित करके यजमान शत्रुओं को पराजित कर सके। स्तोत्र पढ़ते और हव्य दान करते हुए यजमान समृद्धि प्राप्त कर सके। जिस यजमान को मित्र कहकर ब्रह्मणस्पति अंगीकार करते हैं, वह पुत्र के पुत्र से भी अधिक जीवित रहता है।[ऋग्वेद 2.25.1]

अग्नि को प्रज्वलित करने वाला यजमान शत्रु में समर्थ हो। वंदना और हविधान द्वारा समद्ध हो।

Let the friend-host, Ritviz be able to ignite fire (invoke Brahaspati Dev) and defeat the enemy. Let him gain riches while reciting Strotr addressed to Brahaspati Dev making offerings. The devotee whom Brahaspati address as friend, gain longevity more than his grandson.

INVOKE :: लागू, आह्वान करना, विनती करना, अभिमंत्रित करना; implement, bless, entreat, pray, sue, urge.

वीरेभिर्वीरान्वनवद्वनुष्यतो गोभी रयिं पप्रथद्बोधति त्मना। 

तोकं च तस्य तनयं च वर्धते यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः

जिस यजमान को ब्रह्मण स्पति अपने मित्र रूप में स्वीकार कर लेते हैं, वह अपने बलशाली पुत्रों के द्वारा हिंसा करने वाले शत्रुओं के वीर पुत्रों का वध करता है। वह गोधन से समृद्ध होता हुआ ज्ञानी बनता है। ब्रह्मण स्पति उसे पुत्र-पौत्रों से समृद्ध बनाते हैं।[ऋग्वेद 2.25.2]

जिस यजमान से ब्रह्मणस्पति देव मित्र भाव रखते हैं, वह पौत्र से भी अधिक समय तक जीवित रहता है। यजमान अपने वीर पुत्रों द्वारा दुश्मनों के पुत्रों पर विजय प्राप्त कराएँ। वह गौ धन युक्त, पौत्र प्रसद्धि एवं सर्वज्ञाता है। जिसे ब्रह्मणस्पति सूखी मानते हैं, उसके पुत्र-पौत्र भी समृद्ध होते हैं। 

The host (Ritviz, devotee) who is accepted-adopted as a friend by the Brahman Spati Dev, kills the mighty sons of he enemy with the help of his strong-powerful sons. He gains-attains cows as wealth and become enlightened. Brahman Spati bless him with sons and grand sons.

सिन्धुर्न क्षोदः शिमीवाँ ऋघायतो वृषेण वध्रीँरभि वष्ट्योजसा। 

अग्निरिव प्रसितिर्नाह वर्तवे यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः

जिस प्रकार से नदी तट को तोड़ती है, साँड़ जैसे बैलों को पराजित करता है, उसी प्रकार बृहस्पति देव की सेवा करने वाला यजमान अपनी शक्ति से शत्रुओं को पराजित करता है। जिस प्रकार अग्नि शिखा का निवारण नहीं किया जाता, उसी प्रकार ब्रह्मण स्पति जिस यजमान को मित्र कहकर ग्रहण करते हैं, उसका भी निवारण नहीं किया जा सकता।[ऋग्वेद 2.25.3]

नदी के प्रवाह से कछार टूटते हैं, सांड ऋषभों को पराजित करता है, उसी प्रकार ब्रह्मणस्पति देव का सेवक अपनी शक्ति से शत्रुओं की शक्ति को ध्वस्त करता पराजित करता है। अग्नि की शिखा को जैसे कोई नहीं रोक सकता वैसे ही ब्रह्मणस्पति देव से मित्र भाव पाये हुए यजमान को कोई नहीं रोक सकता।

The way a river breaks-destroys its banks, the bull defeat the oxen. The host serving Brahaspati Dev defeat his enemy with his power-might. The way the tip of the flame can not be blocked, the hosts adopted as friend, can not be blocked-stopped. 

तस्माअर्षन्तिदिव्या असश्चतः स सत्वभिः प्रथमो गोषु गच्छति। 

अनिभृष्टत विर्हिन्त्योजसा यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः

जिस यजमान को बृहस्पति मित्र कहकर ग्रहण करते हैं, उसके पास अप्रतिहत निर्झरिणी होकर स्वर्गीय जल आता है। परिचर्याकारियों में भी वही सबसे पहले गोधन प्राप्त करता है। उसका बल अनिवार्य है। वह बल द्वारा शत्रुओं का विनाश करता है।[ऋग्वेद 2.25.4]

ब्रह्मण स्पति की सेवा करने वाला यजमान सर्वप्रथम तो गौ रूपी धन पाता है। अपने पराक्रम से शत्रुओं को मारता है। जिसे वे मंत्री रूप में स्वीकार करते हैं। वे मैत्री भाव से देखते हैं कि उसी ओर सभी रस प्रवाहित होते हैं।

One adopted as a friend by Brahaspati Dev gets the water from heavens continuously. He gets maximum cows, amongest those service him. He becomes strong and kills-destroys the enemy.

तस्मा इद्विश्वे धुनयन्त सिन्धवोऽच्छिद्रा शर्म दधिरे पुरूणि। 

देवानां सुम्ने सुभगः स एधते यंयं युजं कृणुते ब्रह्मणस्पतिः

जिस यजमान को मित्र रूप से ब्रह्मण स्पति ग्रहण करते हैं, उसकी ओर समस्त नदियाँ प्रवाहित होती हैं। वह सदा नानाविध सुख का उपभोग करता है। वह सौभाग्यशाली होता है और वह देवताओं द्वारा प्रदत्त सुख तथा समृद्धि को प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 2.25.5]

वे विविध अलौकिक रसपान करने में सक्षम होते हैं। जिस यजमान को ब्रह्मण स्पति देव मित्र भाव से देखते हैं उसी तरफ समस्त रस प्रवाहमान होते हैं। वह विविध सुखों का उपभोग करने वाला महान भाग्य से परिपूर्ण समृद्धि ग्रहण करता है।

One who is accepted as  friend by Braham Spati Dev sees the flow of all rivers-amenities towards him. He continue enjoying all sorts of comforts-luxuries and is lucky. He is blessed with all amenities from the demigods-deities. and progress in life.

ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (26) :: ऋषि :-  गुत्समद,  भार्गव,  देवता :- 

ब्रह्मणस्पति, छन्द :- जगती।

ऋजुरिच्छंसो वनवद्वनुष्यतो देवयन्निददेवयन्तमभ्यसत्। 

सुप्रावीरिद्वनवत्पृत्सु दुष्टरं यज्वेदयज्योर्वि भजाति भोजनम्

ब्रह्मण स्पति का सरल स्तोता शत्रुओं का विनाश कर डालें। देवाकांक्षी अदेवाकांक्षी को पराभूत कर डाले। जो बृहस्पति देव को अच्छी तरह तृप्त करता है, वह युद्ध में दुर्धर्ष शत्रुओं का विनाश करता है। यज्ञ परायण अयाज्ञिक के धन का उपभोग करता है।[ऋग्वेद 2.26.1]

 ब्रह्मणस्पति की वंदना करने वाला शत्रुओं को समाप्त करें। देवताओं का आराधक देव-विहीनों को पराजित करे। ब्रह्मणस्पति देव को संतुष्ट करने वाला संग्राम में भयंकर शत्रुओं का नाश करता है। याज्ञिक यज्ञ द्वेषियों का धन ग्रहण करता है।

Let one who sing Strotr in the honour of Brahman Spati Dev, be able to destroy the enemies. Those who wish to have rapport with the demigods-deities, be able to kill demons-those who are against the demigods-deities. One who thoroughly satisfy-pray to Brahaspati Dev destroy the enemy in the battle field. One who resort to Yagy is capable of utilising the wealth of those who abstain from Yagy.

यजस्व वीर प्र विहि मनायतो भद्रं मनः कृणुष्व वृत्रतूर्ये। 

हविष्कृणुष्व सुभगो यथाससि ब्रह्मणस्पतेरव आ वृणीमहे

हे वीर! आप ब्रह्मण स्पति की स्तुति करें। अभिमानी शत्रुओं के विरुद्ध यात्रा करें। शत्रुओं के साथ संग्राम में मन को दृढ़ करें। ब्रह्मण स्पति के लिए हव्य तैयार करें। वैसा करने पर आप उत्तम धन पायेंगे। हम ब्रह्मण स्पति से रक्षा की कामना करते हैं।[ऋग्वेद 2.26.2]

ब्रह्मण स्पति देव की वंदना करो। अहंकारी पर आक्रमण करो । संयम में अटल हों। ब्रह्मण स्पति देव के लिए हवि तैयार करने पर उत्तम धन प्राप्त करोगे। हम उनकी रक्षा चाहते हैं।

Hey mighty! Pray to Brahman Spati. Raid-attack the arrogant enemies. Have a firm determination for  war with the enemies. Prepare-ready offerings for Brahman Spati. On doing this, one will get best riches-wealth. We pray to Brahman Spati for our protection.  

स इज्जनेन स विशा स जन्मना स पुत्रैर्वाजं भरते धना नृभिः। 

देवानां यः पितरमाविवासति श्रद्धामना हविषा ब्रह्मणस्पतिम्

जो यजमान श्रद्धावान् होकर देवों के पिता ब्रह्मण स्पति की हव्य द्वारा सेवा करता है, वह अपने मनुष्य और आत्मीय, अपने पुत्र और अन्यान्य परिचारकों के साथ अन्न और धन प्राप्त करता है।[ऋग्वेद 2.26.3]

देवगणों के पिता ब्रह्मण स्पति देव की जो यजमान विनय पूर्वक सेवा करता है वह अपने संवर्धन एवं संतान से युक्त हुआ अन्न और धन पाता है।

The faithful-devotee who serve Brahman Spati with offerings, get food grain and money for his dependents, relatives, sons, slaves and servants 

यो अस्मै हव्यैर्घृतवद्भिरविधत्प्र तं प्राचा नयति ब्रह्मणस्पतिः। 

उरुष्यतीमंहसो रक्षती रिर्षो 3 होश्चिदस्मा उरुचक्रिरद्भुतः॥

जो ब्रह्मण स्पति की सेवा घृत युक्त हव्य से करता है, उसे ब्रह्मण स्पति प्राचीन सरल मार्ग से ले जाते हैं। उसे वे पाप, शत्रु और दरिद्रता से बचाते हैं। आश्चर्यजनक रूप से ब्रह्मण स्पति उसका महान् उपकार करते हैं।[ऋग्वेद 2.26.4]

जो यजमान घृत परिपूर्ण हवि से ब्रह्मण स्पति देव को सेवा करता है उस वे आसान मार्ग पर चलाते हैं एवं पाप, निर्धनता और शत्रु से बचाते हैं। वे उसके कार्य सिद्ध करते हैं।

The host-Ritviz who serve Brahman Spati with offerings mixed with Ghee, is taken away by a simple route. He protect him from sins, enemies and poverty. Brahman Spati help him in amazing manner. 

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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा

अन्न FOOD STUFF-GRAINS

अन्न FOOD STUFF-GRAINS
CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नमः।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (187) ::  ऋषि :- अगस्त्य, देवता :- अन्न,  छन्द :- अनुष्टुप, बृहती, गायत्री।

पितुं नु स्तोषं महो धर्माणं तविषीम्। 

यस्य त्रितो व्योजसा वृत्रं विपर्वमर्दयत्

मैं क्षिप्रकारी होकर विशाल, सबके धारक और बलात्मक पितु (अन्न) की स्तुति करता हूँ। उनकी ही शक्ति से इन्द्रदेव ने वृत्रासुर के अंगों को काटकर उसका वध किया।[ऋग्वेद 1.187.1]

अब मैं शक्तिशाली अन्न का पूजन करता हूँ, जिसकी शक्ति से “त्रित” ने वृत्र के जोड़ को तोड़कर समाप्त कर डाला।

I quickly pray to food grain-food stuff, which supports all, give strength. With the strength of which Dev Raj Indr chopped the organs of Vrata Sur. 

स्वादो पितो मधो पितो वयं त्वा ववृमहे। अस्माकमविता भव

हे स्वादु पितु, हे मधुर पितु! हम आपकी सेवा करते हैं। आप हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.187.2]

हे सुस्वादु अन्न! तू मधुर है, हमने तेरा वरण किया है, तू हमारा रक्षक हो।

Hey tasty, sweet food! We serve-worship you. Protect us. 

उप नः पितवा चर शिवः शिवाभिरूतिभिः। 

मयोभुरद्विषेण्यः सखा सुशेवो अद्वयाः

हे पितु आप मंगलमय है। कल्याणवाही आश्रयदान द्वारा हमारे पास आकर हमें सुख प्रदान करें। हमारे लिए आपका रस अप्रिय न हो। आप हमारे लिए मित्र और अद्वितीय सुखकर बने।[ऋग्वेद 1.187.3]

हे अन्न! तू कल्याण स्वरूप है। अपनी सुरक्षाओं से युक्त हमारी तरफ आ। तू स्वास्थ्य दाता हमको हानिकारक न हो और अद्वितीय सखा के समान सुखकर रहो।

Hey food, you are auspicious! Being our benefactor, come and provide us pleasure. Hey protector of our health! You should be like a friend to us & we should not be harmed. 

BENEFACTOR :: दान देने-करनेवाला; grantor, presenter, conducive, helpful, accommodating, promoter, instrumental.

तव त्ये पितो रसा रजांस्यनु विष्ठिताः। दिवि वाताइव श्रिताः

हे पितु! जिस प्रकार से वायु देवता अन्तरिक्ष का आश्रय प्राप्त किये हुए हैं, उसी प्रकार ही आपका रस समस्त संसार के अनुकूल व्याप्त है।[ऋग्वेद 1.187.4] 

हे अन्न! पवन के अंतरिक्ष में आश्रय लेने के समान तेरा इस संसार में फैला है।

Hey food! The way in which the air is dependent over the sky, your sap is favourable to the whole universe.

तव त्ये पितो ददतस्तव स्वादिष्ठ ते पितो। 

प्र स्वाद्मानो रसानां तुविग्रीवाइवेरते

हे स्वादुतम पितु! जो लोग आपकी प्रार्थना करते हैं, वे भोक्ता हैं। आपकी कृपा से वे आपको दान देते हैं। आपके रस का आस्वादन करने वालों की गर्दन ऊँची होती है।[ऋग्वेद 1.187.5] 

हे पालक और सुस्वादु अन्न! तुम्हारा दान करने वाले तुम्हारी दया चाहते हैं। तुम्हारे सेवन कर्त्ता तुम्हारी अर्चना करते हैं। तुम्हारी प्रार्थना रस आस्वाद न करने वालों की ग्रीवा को उन्नत और अटल करता है।

Hey tastiest food grain! Those who donate you, desire your blessings. Its your mercy that they donate you. Those who taste your sap, keep their neck high and determined-firm.

त्वे पितो महानां देवानां मनो हितम्। 

अकारि चारु केतुना तवाहिमवसावधीत्

हे पितु! महान् देवों ने आप में ही अपने मन को निहित किया है। आपको तीव्र बुद्धि और आश्रय द्वारा ही अहि का वध किया गया।[ऋग्वेद 1.187.6]

हे अन्न! श्रेष्ठ देवों का हृदय तुझमें ही रखा है। तुम्हारी शरण में सुन्दर कार्य किये जाते हैं। तुम्हारी सुरक्षा से ही इन्द्रदेव ने वृत्र को समाप्त किया था।

Hey food grain! Great demigods-deities concentrated their innerself in you. Its your sharp intellect and protection that Ahi was killed. 

यददो पितो अजगन्विवस्व पर्वतानाम्। 

अत्रा चिन्नो मधो पितोऽरं भक्षाय गम्याः

जिस समय मेघ प्रसिद्ध जल को लाते हैं, उस समय हे मधुर पितु हमारे सम्पूर्ण भोजन के लिए हमारे पास पधारें।[ऋग्वेद 1.187.7]

हे अन्न! बादलों में जो विख्यात जल रूप धन है, उसके द्वारा मधुर हुए हमारे सेवन के लिए ग्रहण हो।

Hey sweet food grain! Let all sorts of food grains come to us for food (lunch & dinner), when the clouds bring water.

यदपामोषधीनां परिंशमारिशामहे। वातापे पीव इद्भव

हम यथेष्ट जल और जौ आदि औषधियों को खाते हैं, इसलिए हे शरीर! आप स्थूल बनें।[ऋग्वेद 1.187.8]

हे अन्न! हम जलों और दवाइयों का कम अंश सेवन करते हैं। तू वृद्धि को प्राप्त हो।

Hey body! We consume sufficient barley and water to keep fit, healthy, handsome. 

यत्ते सोम गवाशिरो यवाशिरो भजामहे। वातापे पीव इद्भव

हे सोम देव! आपके जौ आदि और दुग्ध आदि से मिश्रित अंश का हम भक्षण करते हैं। इसलिए हे शरीर! आप स्थूल बनें।[ऋग्वेद 1.187.9] 

हे सोम! हम तुम्हारे दूध से मिश्रित खिचड़ी रूपी अन्न का सेवन करते हैं। अतः तू वृद्धि को प्राप्त हो।

Hey Som Dev-Moon! We consume barley and milk to keep our fit & fine. 

करम्भ ओषधे भव पीवो वृक उदारथिः। वातापे पीव इद्भव

हे करम्भ औषधि! आप स्थूलता सम्पादक, रोगनिवारक और इन्द्रियोद्दीपक बनें। हे शरीर! आप स्थूल बनें।[ऋग्वेद 1.187.10] 

करम्भ ::  दही चावल या जौ को मिलाकर बनाया गया भोज्य पदार्थ,रम्भा का भाई, महिसासुर का पिता, कलिंग की राजकुमारी-देवातिथि की माता जिसका विवाह पुरुवंश में हुआ, शकुनि का पुत्र-देवरथ का पिता, एक औषधि का नाम; a preparation of curd mixed with rice or barley-meal. हे औषधि रूप अन्न! तू शरीर उत्पत्ति के अनुकूल, पुष्टिप्रद, व्याधि नाशक और उद्दीपन करने वाला है। तू वृद्धि को प्राप्त हो।

Hey Karambh-a medicine! You grant us a strong body, remove diseases and energise the sense organs. Hey body! You should become strong-healthy.

तं त्वा वयं पितो वचोभिर्गावो न हव्या सुषूदिम। 

देवेभ्यस्त्वा सधमादमस्मभ्यं त्वा सधमादम्

हे पितु! गौवों के पास जिस प्रकार हव्य गृहीत होता है, उसी प्रकार से ही आपके पास स्तुति द्वारा हम रस ग्रहण करते हैं। यह रस देवों को ही नहीं, हमें भी बलवान् बनाता है।[ऋग्वेद 1.187.11] 

हे अन्न! धेनु जैसे सेवनीय दुग्ध को बहाती है वैसे ही तुमसे वंदना द्वारा हम रस प्राप्त करते हैं। तू देवों को हर्षित करने वाला हमको भी संतुष्ट करता है।

Hey grains! The way the cow give us milk, you give us sap-extract which we obtain by worshiping you. This extract should make strong like the demigods-deities. 

A Hindu farmer worship the crops. The first lot is worshipped as soon it arrives home. Sugar cane too, is worshipped. 

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रति (ऋग्वेद संहिता)

‎रति

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नमः।

अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।

गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (179) :: ऋषि :- लोपामुद्रा, अगस्त्य, देवता :- रति, छन्द :- त्रिष्टुप्, बृहती।

पूर्वीरहं शरदः शश्रमाणा दोषा वस्तोरुषसो जरयन्तीः।
मिनाति श्रियं जरिमा तनूनामप्यू नु पत्नीर्वृषणो जगम्युः॥

लोपामुद्रा कहती हैं :- हे अगस्त्य! अनेक वर्षों से मैं दिन-रात बुढ़ापा लाने वाली उषाओं में आपकी सेवा करके श्रान्त हुई हूँ। बुढ़ापा शरीर के सौन्दर्य व क्षमताओं का नाश कर देता है; इसलिए उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए सामर्थवान् पुरुष ही पत्नियों के पास जायें।[ऋग्वेद 1.179.1]
श्रान्त :: श्रम के कारण शिथिल होना; exhausted, a weary, fatigued, tired, description.
लोपामुद्रा महर्षि अगस्त्य की पत्नी थीं। इनको वरप्रदा और कौशीतकी भी कहते हैं। इनका पालन-पोषण विदर्भराज निमि या क्रथपुत्र भीम ने किया, इसलिए इन्हें वैदर्भी भी कहते थे। महर्षि अगस्त्य से विवाह हो जाने पर राजवस्त्र और आभूषण का परित्याग कर, इन्होंने पति के अनुरूप वल्कल एवं मृगचर्म धारण किया। महर्षि अगस्त्य द्वारा प्रहलाद के वंशज इत्वल से पर्याप्त धन ऐश्वर्य प्राप्त होने पर दोनों में समागम हुआ, जिससे दृढस्यु’ नामक पराक्रमी पुत्र की उत्पत्ति हुई। भगवान् श्री राम अपने वनवास में लोपामुद्रा तथा अगस्त्य से मिलने उनके आश्रम गए थे। वहाँ ऋषि ने उन्हें उपहार स्वरूप धनुष, अक्षय तूणीर तथा खड्ग दिए थे। लोपामुद्रा ने माता सीता को साड़ी भेंट की जो कभी मैली नहीं होती थी।
लोपामुद्रा :- मैं वर्षों से दिन-रात जरा की सन्देश वाहिका उषाओं में तुम्हारी सेवा करती हूँ। वृद्धावस्था शरीर सौन्दर्य को समाप्त करती है। इसलिए यौवन काल में ही पति-पत्नी गृहस्थ धर्म का पालन करके उसके उद्देश्य को पूर्ण करें।
Lopa Mudra, wife of August Rishi told him that she was fatigued by serving him day & night. Old age looses the beauty-charm of the body. Hence, a woman should make endeavours to carry out the duties of Grahasthashram-house hold, family life i.e., reproduction. She said that the male should mate with his wife only when he is sexually fit & fine i.e., potent.

ये चिद्धि पूर्व ऋतसाप आसन्त्साकं देवेभिरवदन्नृतानि ते।
चिदवासुर्नह्यन्तमापु: समू नु पत्नीर्वृषभिर्जगम्युः॥

हे अगस्त्य! जो प्राचीन और सत्य रक्षक लोग देवताओं के साथ रहते थे, उन्होंने भी संतान उत्पत्ति के कार्य का निर्वाहन किया और अन्त तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन नहीं किया। काम में समर्थ ऐसे पुरुषों को उन्हीं के अनुकूल पत्नियाँ प्राप्त हुई।[ऋग्वेद 1.179.2]
धर्म पालन पुरातन ऋषि-देवताओं से सच बोला करते थे। वे क्षीण हो गये तथा जीवन के परम फल को प्राप्त नहीं हुए, इसलिए पति-पत्नी को संयमशील विद्या के अध्ययन में रत विद्वान को भी उपयुक्त दशा में काम भाव प्राप्त होता है और वह अनुकूल पत्नी को प्राप्त कर संतान उत्पादन का कार्य करता है।
Hey August! The ancient truthful people who accompanied the demigods, too followed the procedure & dictates, pertaining to reproduction and avoided chastity till end. Such people who were potent got the wives who too were like them.

न मृषा श्रान्तं यदवन्ति देवा विश्वा इत्स्पृधो अभ्यश्नवाव।
जयावेदत्र शतनीथमाजिं यत्सम्यचा मिथुनावभ्यजाव॥

अगस्त्य ऋषि कहते हैं :- हमारी साधना व्यर्थ नहीं गई, क्योंकि देवता लोग रक्षा करते है। हम सारे भोगों का उपभोग कर सकते हैं। यदि हम दोनों चाहें तो इस संसार में हम सैकड़ों भोगों के साधन प्राप्त कर सकते हैं।[ऋग्वेद 1.179.3]
अगस्त्य :- हमने व्यर्थ में परिश्रम नहीं किया। देवगण हमारे रक्षक हैं। हम स्पर्द्धा करने वालों को वश में करते और सैकड़ों साधनों का उपभोग करते हैं।
August said that their labour was noted since the demigods protected them. They were capable of enjoying all sorts of comforts & luxuries.

नदस्य मा रुधतः काम आगन्त्रित आजातो अमुतः कुतश्चित्।
लोपामुद्रा वृषणं नी रिणाति धीरमधीरा धयति श्वसन्तम्॥

यद्यपि मैं जय और संयम में नियुक्त हूँ तथापि इसी कारण या किसी भी कारण, मुझ में काम का समावेश हो गया है। सेचन करने वाली लोपामुद्रा पति के साथ संगत है। घास पर संयम रखने वाले धीर पुरुष ही काम वेग पर नियन्त्रण कर पाते है।[ऋग्वेद 1.179.4]
नर-नारी संयुक्त रूप से गृहस्थ सेवन के लिए मुझे ग्रहण हों, धैर्यवान व्यक्ति को मैं धारण करूँ।
Though I am engaged in controlling self, yet due to this or some other reason the sensuality-sexuality is troubling me. Lopa Mudra who is determined and controls her self, is with her husband.

इमं नु सोममन्तितो हृत्सु पीतमुप ब्रुवे।
यत्सीमागश्चकृमा तत्सु मृळतु पुलुकामो हि मर्त्यः॥

सोमरस के समीप जाकर उसका पान करता हुआ शिष्य कहता है कि मनुष्य तो अनेक इच्छाओं का दास है। अगर इस इच्छा के कारण मेरे मन में कोई विकार उत्पन्न हुआ हो तो यह सोमरस अपने प्रभाव से उसे शुद्ध कर दे।[ऋग्वेद 1.179.5]
शिष्य :- मैं मन से पान किये हुए इस सोम की प्रार्थना करता हूँ। यदि हमसे कोई भूल हुई हो तो उसे वे माफ करें क्योंकि प्राणी अनेक इच्छाओं से युक्त होता है।
The disciple-student (follower) sips Somras and says that a humans being is slave of desires-wishes, wants. If some sort of defect has creped into his mind, it should be removed by the Somras due to its impact-effect.

अगस्त्यः खनमानः खनित्रैः प्रजामपत्यं बलमिच्छमानः।
उभौ वर्णावृषिरुग्रः पुपोष सत्या देवेष्वाशिषो जगाम॥

उग्र ऋषि अगस्त्य ने अनेक उपायों का उद्भावन करके, बहुत पुत्रों और बल की इच्छा करके काम और तप दोनों वरणीय वस्तुओं का पालन किया और देवताओं से यथार्थ आशीर्वाद को प्राप्त किया।[ऋग्वेद 1.179.6]
विभिन्न साधनाओं से अगस्त्य ऋषि ने अनेक संतान और बल की कामना से दोनों वरणीय वस्तुओं को पुष्ट किया और देवताओं से सच्चे आशीर्वाद को प्राप्त किया।
August Rishi used various ways & means, desired many sons and strength, accomplished-attained both sex and ascetics, having blessings of the demigods.

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अश्व

अश्व-THE DIVINE HORSE

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM

By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।

अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।

निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (162) :: ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अश्व, छन्द :- त्रिष्टुप्।
मा नो मित्रो वरुणो अर्यमायुरिन्द्र ऋभुक्षा मरुतः परि ख्यन्।

यद्वाजिनो देवजातस्य सप्तेः प्रवक्ष्यामो विदथे वीर्याणि॥

चूँकि हम यज्ञ में देवजात और द्रुत गति अश्व के वीर कर्म का भजन करते हैं, इसलिए मित्र, वरुण, अर्यमा, आयु, इन्द्र, ऋभुक्षा और वायु आदि सभी देवता सदैव हमारे अनुकूल रहें और हमसे अलग न हो।[ऋग्वेद 1.162.1]

सखा, वरुण, अर्यमा, वायु, इन्द्र और मरुद्गण हमसे नियुक्त न हों। हम देवों के अत्यन्त वेगवान, अश्व के वीरता पूर्ण कर्मों का अनुष्ठान में वर्णन करते हैं।Since, we recite prayers devoted to Dev Jat and the fast moving horses, Mitr, Varun, Aryma, Ayu, Indr, Ribhuksha and Vayu etc. demigods-deities should remain in favour our favour and never move away-depart from us.

यन्निर्णिजा रेक्णसा प्रावृतस्य रातिं गृभीतां मुखतो नयन्ति। 

सुप्राङजो मेम्यद्विश्वरूप इन्द्रापूष्णोः प्रियमप्येति पाथः॥

सुन्दर स्वर्णाभरण से विभूषित अश्व के सामने ऋत्विक् लोग उत्सर्ग के लिए अज अर्थात् बकरे को पकड़कर ले जाते हैं। विविध वर्ण के अज शब्द करते हुए सामने जाते हैं और वह इन्द्र और पूषा के प्रिय हव्य को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.162.2]

उत्सर्ग :: त्यागना, बलिदान; ejecta, egestion, dedication, devotion, effusion, emission, excreta, excretion, sacrifice.

हम दमकते हुए वस्त्रों और स्वर्ण सहित आभूषणों से अश्व सुसज्जित आगे विभिन्न रंग वाली सामग्री ले जाते हैं। वह इन्द्र और पूषा के लिए प्रिय हो। 

The Ritviz take the goat for sacrifice in front of the horse decorated with golden ornaments. Several species of the goats come forward making sound and become favourite offerings for Indr & Pusha.

एष छागः पुरो अश्वेन वाजिना पूष्णो भागो नीयते विश्वदेव्यः। 

अभिप्रियं यत्पुरोळाशमर्वता त्वष्टेदेनं सौश्रवसाय जिन्वति॥

बलवान् अश्वों के आगे जब यह अज (बकरा) लाया जाता है, तब यजमान इस अश्व के साथ अज को प्रिय लगने वाले पुरोडाष आदि का भाग प्रदान कर यशस्वी होते हैं।[ऋग्वेद 1.162.3]

सब देवगण योग्य पूषा का भाग ले जाते हैं, जिसे त्वष्टा अत्यन्त पुष्टिप्रद बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।

When this goat is brought in front of the powerful-strong horses, the Ritviz make offerings liked by the horses & the goat. 

यद्धविष्यमृतुशो देवयानं त्रिर्मानुषाः पर्यश्वं नयन्ति। 

अत्रा पूष्णः प्रथमो भाग एति यज्ञं देवेभ्यः प्रतिवेदयन्नजः॥

जब ऋत्विक् लोग देवों के लिए प्राप्त करने योग्य अश्व को समय-समय पर तीन बार अग्नि के पास ले जाते हैं, तब पूषा के प्रथम भाग का अज देवों के यज्ञ की बात का प्रचार करके आगे आते हैं।[ऋग्वेद 1.162.4]

जहाँ प्राणी नियत काल में देवताओं के प्राप्त कराने योग्य घोड़े को घुमाते हैं, वहाँ पूषा का भाग देवगणों के यज्ञ को विख्यात करता हुआ चलता है।

When the Ritviz-Brahmans (Priests) bring the horse meant for the demigods-deities, thrice near the fire, they declare the offerings meant for Pusha (his share of offerings in the form of goat) to appreciate-honour the Yagy. It does not mention animal sacrifices. 

होताध्वर्युरावया अग्निमिन्धो ग्रावग्राभ उत शंस्ता सुविप्रः। 

तेन यज्ञेन स्वरंकृतेन स्विष्टेन वक्षणा आ पृणध्वम्॥

होता (देवों को बुलाने वाले), अध्वर्यु (यज्ञ नेता), आवया (हव्य दाता), अग्नि सिद्ध (अग्नि प्रज्वलन कर्त्ता), ग्राव प्राभ (प्रस्तर-द्वारा सोमरस निकालने वाले), शंस्ता (नियमानुसार कर्म का अनुष्ठान करने वाले) और ब्रह्मा (सब यज्ञ कार्यों के प्रधान सम्पादक) प्रसिद्ध, अलंकृत और सुन्दर यज्ञ द्वारा नदियों को (जल से) पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.162.5]

अनुष्ठान :: संस्कार, धार्मिक क्रिया, उत्सव-संस्कार, पद्धति, शास्र विधि, आचार, आतिथ्य सत्कार; rituals, rites, ceremonies.समारोह, संस्कार, अनुष्ठान, विधि, रसम, धर्म क्रिया होता, अध्वर्यु, प्रस्थाता, अग्नीत, ग्राव, स्तुत, प्रशस्ता वे सभी अत्यन्त शोभित हुए हमारी हवियों वाले सस्वर यज्ञ को परिपूर्ण करें। यूप काटने वाले, यूप ढोने वाले, यूप के लिए चषाल को गाढने वाले और अनुष्ठान के लिए अनिवार्य पात्र तैयार करने वाले, सभी का प्रयास हमको उत्साहजनक हो। 

Let the hosts, chief priest, those making offerings, igniting fire, extracting Somras, systematic conducting of rituals, rites, ceremonies; chief organisers fill the rivers with water in a beautifully organised and decorated Yagy. 

यूपव्रस्का उत ये यूपवाहाश्चषालं ये अश्वयूपाय तक्षति। 

ये चार्वते पचनं संभरन्त्युतो तेषामभिगूर्तिर्न इन्वतु॥

जो यूप के योग्य वृक्ष काटते हैं, जो यूप वृक्ष ढोते हैं, जो अश्व को बाँधने के यूप के लिए काष्ठ मण्डप आदि तैयार करते हैं, जो अश्व के लिए पाक पात्र का संग्रह करते हैं, इन सबके द्वारा हमारे लिए हितकारी कार्य हों।[ऋग्वेद 1.162.6]

यूप :: यज्ञ में वह खंभा जिसमें बलि का पशु बाँधा जाता है; toggle.  

यूप काटने वाले, यूप ढोने वाले, यूप के लिए चषाल को गढ़ने वाले और अनुष्ठान के लिए अनिवार्य पात्र तैयार करने वाले, सभी का प्रयास हमको उत्साह जनक हो।

Let the efforts of those who cut the tree and make the Yup-pole (toggle) to tie animals in a Yagy, carriers of Yup, boundary to hold the horse etc. be beneficial to us.

उप प्रागात्सुमन्मेऽधायि मन्म देवानामाशा उप वीतपृष्ठः। 

अन्वेनं विप्रा ऋषयो मदन्ति देवानां पुष्टे चकृमा सुबन्धुम्॥ 

हे मनोहर पृष्ठ विशिष्ट अश्व! देवों की आशा पूर्ति के लिए पधारें। देवों की पुष्टि के लिए हम उसे अच्छी तरह बाँधेंगे। मेधावी ऋत्विक् लोग आनन्दित हों। हमारा मनोरथ स्वयं सिद्ध हों।[ऋग्वेद 1.162.7]

उज्जवल पीठ वाला घोड़ा देवगण की तरफ मुख करके खड़ा है। मेरा श्लोक रुचिकर है। मेधावी ऋषि इसका समर्थन करते हैं। देवगण को संतुष्ट करने के लिए हमने यह उत्तम श्लोक तैयार किया है।

Hey horse with strong back! Come to fulfil the desires of the demigods-deities. We will tie him properly for the satisfaction of the demigods-deities. Let the brilliant Ritviz be happy. Let our purpose be accomplished automatically. 

य द्वाजिनो दाम संदानमर्वतो या शीर्षण्या रशना रज्जुरस्य। 

यद्वा घास्य प्रभृतमास्येतृणं सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु॥

जिस रस्सी से घोड़े की गर्दन बाँधी जाती है, जिससे उसके पैर बाँधे जाते हैं, जिस रस्सी से उसका सिर बाँधा जाता है, वे सब रस्सियाँ और अश्व के मुख में डाली जाने वाली घासें देवों के पास आयें।[ऋग्वेद 1.162.8]

गतिवान घोड़े की रास और मुँह में डाली हुई घास आदि या घोड़े की जो वस्तुएँ हों, वे सभी देवगणों की हों।

Let the cord with which the neck, legs and the head of the horse are tied and grass to be offered to the horse (put in its mouth) come to the demigods-deities.

यदश्वस्य क्रविषो मक्षिकाश यद्वा स्वरौ स्वधितौ रिप्तमस्ति। 

यद्धस्तयोः शमितुर्यन्नखेषु सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु॥

अश्व का जो कच्चा माँस ही मक्खी खाती हैं, काटने या साफ करने के समय हथियार में जो लग जाता है और छेदक के हाथों और नाखूनों में जो लग जाता है, वह सब देवों के पास जावें।[ऋग्वेद 1.162.9]

जो कच्चा भाग मक्खियाँ खाती हैं, जो भाग तापदायक कर्मों में लग जाता है तथा जो कार्यरत नरों के हाथ में लग जाता है, वे सभी देवताओं यज्ञ को परिपूर्ण करें।Let raw meat eaten by the flies, remains over the cutters & cleaners and that which remains in the hands & the nails of the cutter, reach the demigods-deities. 

यदूवध्यमुदरस्यापवाति य आमस्य क्रविषो गन्धो अस्ति। 

सुकृता तच्छमितारः कृण्वन्तूत मेधं शृतपाकं पचन्तु॥

उदर अर्थात् पेट का जो अजीर्ण अंश बाहर हो जाता है और अपक्व माँस का जो लेशमात्र बचा रहता है, उसे छेदक निर्दोष अर्थात् पवित्र करके उस माँस को देवों के लिए पकावें।[ऋग्वेद 1.162.10]

थोड़े पके अन्न और गंध परिपूर्ण भक्षण सामग्री को सिद्ध करने वाले श्रेष्ठ प्रकार से शुद्ध करके प्रस्तुत करें।

The undigestible segment of the stomach and the uncooked meat should be purified and prepared for the demigods-deities.

यत्ते गात्रादग्निना पच्यमानादभि शूलं निहतस्यावधावति। 

मा तद्भूम्यामा श्रिषन्मा तृणेषु देवेभ्यस्तदुशद्भ्यो रातमस्तु॥

हे अश्व! आग में पकाते समय आपके शरीर से जो रस निकलता और जो अंग शूल से आबद्ध रहता है, वह मिट्टी में गिरकर तिनकों में न मिल जाय। यज्ञ भाग चाहने वाले देवों का वह आहार बनें।[ऋग्वेद 1.162.11]

हे अश्व! क्रोधाग्नि द्वारा जलते हुए तेरे शरीर से जो अत्यन्त स्वेद-रूप रस टपके वह भूमि सात न हो जाये, बल्कि उससे देव गण का उत्साह वर्द्धन हो।

Hey horse! While cooking the juice-liquid that comes off of your body; should not be mixed with the straw, when it falls over the ground. It should become the food of those demigods-deities who desire the offerings of the Yagy. 

ये वाजिनं परिपश्यन्ति पक्कं य ईमाहुः सुरभिर्निर्हरति। 

ये चार्वतो मांसभिक्षामुपासत उतो तेषामभिगूर्तिर्न इन्वतु॥

जो लोग चारों ओर से अश्व का पकना देखते हैं, जो कहते हैं कि गन्ध मनोहर है, देवों को दें और जो माँस-भिक्षा की आशा करते हैं, उनका संकल्प हमारा ही है।[ऋग्वेद 1.162.12]

घोड़े को अत्यन्त आक्रोशित देखते हैं। वे उनके सम्मुख से हट जाने को कहते हैं। तब उसके महान दिखाई देने के कारण समस्त पराक्रमी उसे ग्रहण की विनती करते हैं, इससे भी अश्वों, स्वामी और पराक्रमी का उत्साह वर्द्धन होता है।

Those who see the horse being cooked from all sides say that the smell is good. Give it to the demigods-deities. They expect some meat as begging. Their determination-idea (desire) matches us.

Meat eating is taboo in Hinduism. If the demigods-deities desire meat, they must have been meat eaters in their earlier births. Bhavishy Puran says that at least two viceroys (Christians) of British empire and Akbar (a Muslim) had attained heaven. Heaven is a place to satisfy sensualities, sexuality, passions, lasciviousness. There one can not make efforts for Moksh-emancipation. Ultimately such souls return to earth. There are references in scriptures that the sacrificial horse was converted into camphor by using Mantr Shakti.

यन्नीक्षणं मांस्पचन्या उखाया या पात्राणि यूष्ण आसेचनानि।  ऊष्मण्यापिधाना चरूणामङ्काः सूनाः परि भूषन्त्यश्वम्॥

माँस पाचन की परीक्षा के लिए जो काष्ठाभानु लगाया जाता है, जिन पात्रों में रस रक्षित होता है, जिन आच्छादनों से गर्मी रहती है, जिस वेतस शाखा से अश्व का अवयव पहले चिह्नित किया जाता है और जिस क्षुरिका से चिह्नानुसार अवयव काटे जाते हैं, वो सब अश्व का माँस प्रस्तुत करते हैं।[ऋग्वेद 1.162.13]

मन को अच्छे लगने वाले, परिपाक करने वाले, सिंचन योग्य जो पात्र हैं, इनसे अश्व को सुभूषित करते हैं।

The wooden staff used for examining meat, the pots in which meat is saved are kept warm. The branch of the Vetas tree (Cane) is used to identify the organ of the horse which has to be cut to extract meat.

निक्रमणं निषदनं विवर्तनं यच्च पड्वीशमर्वतः। 

यच्च पयौ यच्च घासिं जघास सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु॥

जहाँ अश्व गये थे, जहाँ बैठा था, जहाँ लेटा था, जिससे उसके पैर बाँधे गये थे, जो उसने पिया था तथा जो घास उसने खाई थी, वो सब देवों के पास जावें।[ऋग्वेद 1.162.14]

अश्व का भागना बैठना, लेटना, जल पीना, खाना जो कुछ कर्म हैं, वे सभी देवगणों के आधीन हैं। 

Let every thing like the places visited by the horse, where it laid to rest, where its feet were tied, the water drunk by it and the grass consumed by it should go to the demigods-deities.

मा त्वाग्निर्ध्वनयीद्भूमगन्धिर्मोखा भ्राजन्त्यभि विक्त जघ्रिः। 

इष्टं वीतमभिगूर्तं वषट्कृतं तं देवासः प्रति गृभ्णन्त्यश्वम्॥

हे अश्वगण! आपका निकलना, आनन्दित होना, पलटना, पीना-खाना आदि समस्त क्रियाएँ देवताओं के संरक्षण में हो।[ऋग्वेद 1.162.15]

हे अश्व! तुझे अग्नि का आँखों में घुस जाने वाला धुँआ कभी पीड़ित न करे। तुम सुन्दर अश्व को देवता स्वीकार करो।

Hey (sacrificial) horse! All of your activities-actions like movement, happiness, turning, eating & drinking etc. must be under the supervision of the deities-demigods.

यदश्वाय वास उपस्तृणन्त्यधीवासं या हिरण्यान्यस्मै। 

संदानमर्वन्तं पड्वीशं प्रिया देवेष्वा यामयन्ति॥

जिस आच्छादन योग्य वस्त्र से अश्व को आच्छादित किया जाता है, उसको जो सोने के गहने दिये जाते हैं, जिससे उसका सिर और पैर बाँधे जाते हैं, वो समस्त देवों के लिए प्रिय है। ऋत्विक लोग देवताओं को यह सब प्रदान करते है।[ऋग्वेद 1.162.16]

जो अश्वों को वस्त्राभूषणों से सुसज्जित करते हैं, वे देवगण को हर्षित करते हैं।The cloth used for covering the horse, fixing the ornaments used to decorate it, for covering its head and tying its legs; are liked by the demigods-deities. The Ritviz make all these offerings to the demigods-deities.

यत्ते सादे महसा शूकृतस्य पाष्ण्र्यावा कशया वा तुतोद। 

स्रुचेव ता हविषो अध्वरेषु सर्वा ता ते ब्रह्मणा सूदयामि॥

हे अश्व! जोर से नाक से ध्वनि करते हुए गमन करने पर चाबुक के आघात से जो कष्ट उत्पन्न हुआ है, वो सब कष्ट मैं उसी प्रकार मंत्र द्वारा आहुति में देता हूँ, जिस प्रकार से स्रुक द्वारा हव्य दिया जाता है।[ऋग्वेद 1.162.17]

हे अश्व! तेरे हाँफने से या थम जाने पर तुझे जो दुःख हुआ है, उसे मैं मंत्र द्वारा निवृत करता हूँ। 

Hey horse! I relieve you of the pain which was caused to you by striking you with the whip, with the help of Mantr.

चतुस्त्रिंशद्वाजिनो देवबन्धोवङ्क्रीरश्वस्य स्वधितिः समेति। 

अच्छिद्रा गात्रा वयुना कृणोत परुष्परुरनुघुष्या वि शस्त॥

हे ऋषियों! देवों के मित्र इस अश्व के चौतीस अंगों को अच्छी प्रकार प्राप्त करने वाले आप, इनके प्रत्येक अंग को स्वस्थ बनाकर समस्त त्रुटियों को दूर कर दें।[ऋग्वेद 1.162.18]

हे पराक्रमियों! वेगवान घोड़े की पीठ की पसलियों पर अस्त्र पहुँच सकता है। इसलिए उसके शरीर का निवारण न करो। उसे अभ्यास द्वारा पूर्ण शिक्षित बनाओ।

Hey sages! Make the 34 organs of this horse healthy-perfect to make it acceptable to the demigods-deities.

एकस्त्वष्टुरश्वस्या विशस्ता द्वा यन्तारा भवतस्तथ ऋतुः। 

या ते गात्राणामृतुथा कृणोमि ताता पिण्डानां प्र जुहोम्यग्नौ॥

सूर्य रूपी अश्व को सम्वत्सर विभाजित करता है। इसके दो विभाग उसके नियन्ता होते हैं अर्थात् उत्तरायण और दक्षिणायन। वह दो मासों की ऋतुओं में विभाजित होता है। यज्ञ में शरीर के अलग-अलग अंगों की पुष्टि के उद्देश्य से ऋतु सम्बन्धी अनुकूल पदार्थों की आहुतियाँ प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.162.19]

संवत्सर :: Samvatsar  is a Sanskrat term for a solar year. In the medieval era literature, a Samvatsar refers to the Jovian year, that is a year based on the relative position of the planet Jupiter, while the solar year is called Varsh. A Jovian year is not equal to a solar year based on the relative position of Earth and Sun. A Jovian year is defined in Indian calendars as the time Brahaspati (Jupiter) takes to transit from one constellation to the next relative to its mean motion.

हे अश्व! चालाक नर तुम पर निमंत्रण रखते हैं। तेरे अंगों को मैं कुशल नियन्ता के अधिकार में करूँ।

Horse in the form of path of the Sun is divided by the solar year into two parts the Northern Hemisphere and the Southern Hemisphere. These two are further sub divided into seasons. While conducting the Yagy offerings are made as per the season to make the body organs strong.

मा त्वा तपत्प्रिय आत्मापियन्तं मा स्वधितिस्तन्वआ तिष्ठिपत्ते। 

मा ते गृध्नुरविशस्तातिहाय छिद्रा गात्राण्यसिना मिथू कः॥

हे अश्व! आप जिस समय देवों के पास जाते हो, उस समय आपको प्रिय देह आपको कष्ट प्रदान न करें। आपके शरीर को खड्ग अधिक क्षति ग्रस्त न करे। माँस-लोलुप और अकुशल व्यक्ति भी आपके पापों के अतिरिक्त आपके (अन्य) अंगों पर खड्ग का प्रहार न सके।[ऋग्वेद 1.162.20]

हे घोड़े! चलते समय तुम्हें कोई दुःख न दे। तेरे हृदय में शस्त्र प्रवेश न करें। कोई मूर्ख प्राणी लोभ वश तेरे तन पर आघात न करे।

Hey horse! None should harm you, when you visit the demigods-deities. Your body should remain unaffected by the attack of sword etc. weapons. Those desirous of your meat and the unskilled people should not be able to strike your organs. 

न वा उ एतन्प्रियसे न रिष्यसि देवाँ इदेषि पथिभिः सुगेभिः। 

हरी ते युञ्जा पृषती अभूतामुपास्थाद्वाजी धुरि रासभस्य॥

हे अश्व! आप न तो मरते हो और न संसार आपकी हिंसा करता है। आप उत्तम मार्ग से देवों के पास जाते हैं। इन्द्रदेव के हरि नाम के दोनों घोड़े और मरुतों के पृषती नाम के दोनों वाहन आपके रथ में नियोजित किये गये हैं। अश्वनी कुमारों के वाहन रासभ के स्थान पर आपके रथ में कोई शीघ्रगामी रथ नियोजित किया जायगा।[ऋग्वेद 1.162.21]

हे अश्व! तेरे सखा रहेंगे। अग्नि देवों के रथ में रास की जगह पर भी कोई अश्व जोता जायेगा।

Hey horse! Neither you die nor the world harm-kill you. You move to the demigods-deities through excellent means-path (ways). The horses named Hari and the chariots named Prashti of Marud Gan have been deployed in your chariot. Some other vehicle will be deployed in your chariot instead of the vehicle named Rasabh of the Ashwani Kumars.  

सुगव्यं नो वाजी स्वश्र्व्यं पुंसः पुत्राँ उत विश्वापुषं रयिम्। अनागास्त्वं नो अदितिः कृणोतु क्षत्रं नो अश्वो वनतां हविष्मान्॥

यह अश्व हमें गौ और अश्व से युक्त तथा संसार रक्षक, धन प्रदान करते हुए हमें पुत्र प्रदान करे। तेजस्वी अश्व हमें पाप कर्मों से बचावें। हविर्भूत अश्व हमें शारीरिक बल प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.162.22]

तेजस्वी :: शानदार, शोभायमान, अजीब, हक्का-बक्का करने वाला, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, उग्र, प्रज्वलित, तीक्ष्ण, उत्सुक, कलह प्रिय; majestic, full of aura-brightness, stunning, rattling, fiery.

वह अश्व सुन्दर गवादि परिपूर्ण धनो से एवं पुत्रादि से परिपूर्ण करने वाला हो। अदिति हमारे पापों को दूर करें। यह अन्न परिपूर्ण धन हमको शक्ति प्रदान करे।

Let this horse grant us cows & horses, protect the world, give us money and son. The majestic (stunning, rattling, fiery) should protect us from sins and grant us might, strength & power.

In this Strotr, its felt that the translation to Hindi is improper-incorrect.

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (163) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अश्व, छन्द :- त्रिष्टुप्।

This Strotr is devoted to Ashw (Horse) a demigod-deity.

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यदक्रन्दः प्रथमं जायमान उद्यन्त्समुद्रादुत वा पुरीषात्।

श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहू उपस्तुत्यं महि जातं ते अर्वन्॥

हे अश्व! आपका महान् जन्म सबकी स्तुति योग्य है। अन्तरिक्ष या जल से पहले उत्पन्न होकर यजमान के अनुग्रह के लिए महान शब्द करते हो। श्येन पक्षी के पंखों की तरह आपके पंख है और हिरण के पैरों की तरह आपके भी पैर हैं।[ऋग्वेद 1.163.1]

हे अश्व! तुम्हारा जन्म भी कथन योग्य है। तुम अंतरिक्ष या जल से निकलकर अत्यन्त ध्वनि करते हो। तुम्हारे बाज के तुल्य पंख और हिरण के तुल्य पाँव हैं।
Hey Ashw! Your birth-appearance, deserve prayer. You make loud sound for the sake of the host-Ritviz prior to the appearance of the space and the water. Your feather is like Shyen-a bird and your feet are like that of the deer. 

यमेन दत्तं त्रित एनमायुनगिन्द्र एणं प्रथमो अध्यतिष्ठत्। 

गन्धर्वो अस्य रशनामगृभ्णात्सूरादश्वं वसवो निरष्ट॥

यम या अग्नि ने अश्व दिये, त्रित या वायु ने उसे रथ में नियोजित किया। रथ पर पहले इन्द्र चढ़े और गन्धर्वों या सोमों ने उसकी लगाम को धारण किया। वसुओं द्वारा सूर्यमण्डल से निकाले जाने वाले इस अश्व की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.163.2]

यम द्वारा दिये गये इस घोड़े को त्रित ने जोड़ा। इन्द्रदेव ने इस पर प्रथम बार सवारी की। गन्धर्व ने उसकी लगाम पकड़ी।

The horses were granted by Yam & Agni Dev, Trit or Vayu deployed them in the chariote. Indr rode the chariote first and the Gandharvs & Soms held the reins. We pray to this chariote drawn by the Vasus through the Sury Mandal (Solar System).

असि यमो अस्यादित्यो अर्वन्नसि त्रितो गुह्येन व्रतेन।

असि सोमेन समया विपृक्त आहुस्ते त्रीणि दिवि बन्धनानि॥

हे अश्व! आप यम, आदित्य और गोपनीय व्रतधारी त्रित है। आप सोम के साथ संयुक्त हैं। पुरोहित लोग कहते हैं कि द्युलोक में आपके तीन बन्धन स्थान हैं।[ऋग्वेद 1.163.3]

Hey Ashw! You are Yam, Adity and the Trit-trio, holding-conducting the Vrat secretly. You are associated with Som. The Purohit-priests says that you are available at three places in the heavens.

त्रित :: एक ऋषि का नाम जो ब्रह्मा जी के मानस पुत्र माने जाते हैं, गौतम मुनि के तीन पुत्रों में से एक जो अपने दोनों भइयों से अधिक तेजस्वी और विद्वान् थे। एक देवता, जिन्होंने सोम बनाया था।

त्रित मुनि का यज्ञ :: भरतश्रेष्ठ! जैसे पापी मनुष्य अपने-आपको नरक में डूबा हुआ देखता है, उसी प्रकार तृण, वीरुध और लताओं से व्याप्त हुए उस कुँए में अपने आपको गिरा देख मृत्यु से डरे और सोमपान से वंचित हुए विद्वान त्रित अपनी बुद्धि से सोचने लगे कि मैं इस कुँए में रहकर कैसे सोमरस का पान कर सकता हूँ। इस प्रकार विचार करते-करते महातपस्वी त्रित ने उस कुँए में एक लता देखी, जो दैव योग से वहाँ फैली हुई थी। मुनि ने उस बालू भरे कूप में जल की भावना करके उसी में संकल्प द्वारा अग्नि की स्थापना की और होता आदि के स्थान पर अपने आपको ही प्रतिष्ठित किया। तत्पश्चात् उन महातपस्वी त्रित ने उस फैली हुई लता में सोम की भावना करके मन ही मन ऋग, यजु और साम का चिन्तन किया। नरेश्वर! इसके बाद कंकड़ या बालू-कणों में सिल और लोढ़े की भावना करके उस पर पीस कर लता से सोमरस निकाला। फिर जल में घी का संकल्प करके उन्होंने देवताओं के भाग नियत किये और सोमरस तैयार करके उसकी आहुति देते हुए वेद-मन्त्रों की गम्भीर ध्वनि की। राजन! ब्रह्म वादियों ने जैसा बताया है, उसके अनुसार ही उस यज्ञ का सम्पादन करके की हुई त्रित की वह वेदध्वनि स्वर्ग लोक तक गूँज उठी। महात्मा त्रित का वह महान यज्ञ जब चालू हुआ, उस समय सारा स्वर्ग लोक उद्विग्न हो उठा, परन्तु किसी को उसका कोई कारण नहीं जान पड़ा। तब देव गुरु बृहस्पति ने वेद मन्त्रों के उस तुमुलनाद को सुनकर देवताओं से कहा, “देवगण! त्रित मुनि का यज्ञ हो रहा है, वहाँ हम लोगों को चलना चाहिये”।वे महान तपस्वी हैं। यदि हम नहीं चलेंगे तो वे कुपित होकर दूसरे देवताओं की सृष्टि कर लेंगे। बृहस्पति जी का यह वचन सुनकर सब देवता एक साथ हो उस स्थान पर गये, जहाँ त्रित मुनि का यज्ञ हो रहा था। वहाँ पहुँच कर देवताओं ने उस कूप को देखा, जिसमें त्रित मौजूद थे। साथ ही उन्होंने यज्ञ में दीक्षित हुए महात्मा त्रित मुनि का भी दर्शन किया। वे बड़े तेजस्वी दिखायी दे रहे थे। उन महाभाग मुनि का दर्शन करके देवताओं ने उनसे कहा, “हम लोग यज्ञ में अपना भाग लेने के लिये आये हैं”। उस समय महर्षि ने उनसे कहा, “देवताओं! देखो, में किस दशा में पड़ा हूँ। इस भयानक कूप में गिरकर अपनी सुधबुध खो बैठा हूँ”। महाराज! तदनन्तर त्रित ने देवताओं को विधिपूर्वक मन्त्रोच्चारण करते हुए उनके भाग समर्पित किये। इससे वे उस समय बड़े प्रसन्न हुए। विधि पूर्वक प्राप्त हुए उन भागों को ग्रहण करके प्रसन्न चित्त हुए देवताओं ने उन्हें मनोवान्छित वर प्रदान किया। मुनि ने देवताओं से वर माँगते हुए कहा, “मुझे इस कूप से आप लोग बचावें तथा जो मनुष्य इसमें आचमन करे, उसे यज्ञ में सोमपान करने वालों की गति प्राप्त हो”। राजन! मुनि के इतना कहते ही कुँए में तरंगमालाओं से सुशोभित सरस्वती लहरा उठी। उसने अपने जल के वेग से मुनि को ऊपर उठा दिया और वे बाहर निकल आये। फिर उन्होंने देवताओं का पूजन किया।[महाभारत शल्य पर्व 36.20-55]

हे देवों! तुमने इसे सूर्य से ग्रहण किया। हे अश्व! तू यम रूप है, सूर्य रूप है और गोपनीय नियम वाला त्रित है। तू सोम से युक्त है आसमान में तेरे बंधन को तीन स्थान बताए गए हैं। 

त्रीणि त आहुर्दिवि बन्धनानि त्रीण्यप्सु त्रीण्यन्तः समुद्रे। 

उतवे मे वरुण्श्छन्त्स्यर्वन्यत्रा त आहुः परमं जनित्रम्॥

हे अश्व! द्युलोक में आपके तीन बन्धन (वसुगण, सूर्य और द्युस्थान) है। जल या पृथ्वी में आपके तीन बन्धन (अन्न, स्थान और बीज) हैं। अन्तरिक्ष में आपके तीन बन्धन (मेघ, विद्युत् और स्तनित) है। आप ही वरुण हैं। पुरातत्वविदों ने जिन सब स्थानों में आपके परम जन्म का निर्देश किया है, वह आप हमें बताते हैं।[ऋग्वेद 1.163.4]

स्तनित :: बादल की गरज, मेघ गर्जन, बिजली की कड़क, ताली बजाने का शब्द, करतल ध्वनि, गरजता हुआ, गर्जित, आवाज़ या ध्वनि करता हुआ,  ध्वनित, शब्दायमान; rattling sound of the clouds.हे अश्व! नभ जल और अंतरिक्ष में तेरे तीन तीन बंधन स्थान बताए गए हैं। तू ही वरुण और जहाँ पर तेरा जन्म स्थान है, उसे बताते हैं।

Hey Ashw! You are tied to Vasu Gan, Sury-Sun and the horizon in space. Over the earth & the water you are present in food grains, place-site & the seeds. In the space you are tied to clouds, electricity and the rattling sound of he clouds. You are a form of Varun Dev. The historians-scriptures tells us the places of your origin.

इमा ते वाजिन्नवमार्जनानीमा शफानां सनितुर्निधाना। 

अत्रा ते भद्रा रशना अपश्यमृतस्य या अभिरक्षन्ति गोपाः॥

हे अश्व! मैंने देखा है, ये सब स्थान आपके अंगशोधक हैं। जिस समय आप यज्ञांश का भोजन करते हैं, उस समय आपके पैरों के चिह्न यहाँ पड़ते है। आपकी जो फलप्रद लगाम सत्यभूत यज्ञ की रक्षा करती है, उसे भी यहाँ देखा है।[ऋग्वेद 1.163.5]

हे अश्व! ये तुमको शुद्ध करने वाली जगह है। ये तुम्हारे पद-चिह्नों वाले स्थान हैं। यहाँ तुम्हारी कल्याणकारी रस्सियाँ रखी हैं। यज्ञ पोषक इनकी सुरक्षा करते देखे जाते हैं।

Hey Ashw (horse)! All these places (items, things) cleanse your body. I have seen the spots-places (points) where hoofs fall, when you eat the offerings in the Yagy and your reins protecting the truthful Yagy.

आत्मानं ते मनसारादजानामवो दिवा पतयन्तं पतङ्गम्। 

शिरो अपश्यं पथिभिः सुगेभिररेणुभिर्जेहमानं पतत्रि॥

हे अश्व! दूर से ही मन द्वारा मैंने आपके शरीर को पहचाना। आप नीचे से अन्तरिक्ष मार्ग में सूर्य मण्डल में जाते हैं। मैंने देखा आपका सिर धूलि शून्य, सुखकर मार्ग से शीघ्र गति से क्रमश: ऊपर उठता है।[ऋग्वेद 1.163.6]

हे अश्व! मैंने तुम्हारे शरीर को अपने मन से ही पहचान लिया है। तुमको आसमान में उड़ते हुए देखा है। तुम धूल से रहित राह से जाने का प्रयत्न करते हो। तुम द्रुत वेग से चलते हुए सिर को ऊंचा उठाते हो।

Hey Ashw! I have recognised your body though a distance with the help of my mind (insight, innerself, consciousness).You move to the Sury Mandal (core-inside of the Sun, where life forms are present) from the lower space. I saw-found your clean head without dust, rising-moving upwards comfortably with fast-high speed.

अत्रा ते रूपमुत्तममपश्यं जिगीषमाणमिष आ पदे गोः। 

यदा ते मर्तो अनु भोगमानळाद्विसिष्ठ ओषधीरजीगः॥

मैं देखता हूँ, आपका उत्कृष्ट रूप पृथ्वी पर चारों ओर अन्न के लिए आगमन करता है। हे अश्व! जिस समय मनुष्य भोग लेकर आपके पास जाता है, उस समय आप ग्रास योग्य तृण आदि का भक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 1.163.7]

हे अश्व! तुम्हारा महान शरीर धरा पर अन्नो को जीतने के लिए विचरण करता है। जब मनुष्य तुम्हारे भक्षणार्थ तृणादि लाता है, तब तुम उसे खुशी-खुशी भक्षण करते हो।

Hey Ashw! I see your excellent body coming over to the earth for food grains-stuff. Hey Ashw! When humans comes to you with offerings, you eat suitable mouthful straw (single bite).  

अनु त्वा रथो अनु मर्यो अर्वन्ननु गावोऽनु भगः कनीनाम्। 

अनु व्रातासस्तव सख्यमीयुरनु देवा ममिरे वीर्यं ते॥

हे अश्व! आपके पीछे-पीछे अश्व जाता है, मनुष्य आपके पीछे जाते हैं, स्त्रियों का सौभाग्य आपके पीछे जाता है। दूसरे अश्वों ने आपको अनुगमन करके मित्रता प्राप्त की है। देवगण आपके वीरकर्म की प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 1.163.8]

अश्व! तुम्हारे पीछे रथ चलते हैं। मनुष्य, गौ आदि भी तुम्हारे पीछे ही चलते हैं। स्त्रियों का सौभाग्य तुम्हारे पीछे चलता है। अन्य घोड़े तुम्हारे संग चलते हुए सखा भाव रखते हैं।

Hey Ashw! Other Ashw-horse, humans, fortune-good luck of women follows you. Other horses followed you and became friendly with you. The demigods-deities praise your valour.

VALOUR :: निर्भयता, साहस, शूर-वीरता, हिम्मत; दिलेरी, निर्भयता, पराक्रम,  बहादुरी,  वीरता,  शूरता,  साहस, वीरत्व; bravery, hardihood, heroine, pluck, stoutness, valiance, chivalry, gallantry, metal, grit, stout-heart, courageousness, daring, effrontery, intrepidity, courage, fearlessness, courageousness, braveness, intrepidity, pluck, pluckiness, nerve, backbone, spine, heroism, stout-heartedness, manliness, audacity, boldness, spirit, fortitude, mettle, dauntlessness.

हिरण्यशृङ्गोऽयो अस्य पादा मनोजवा अवर इन्द्र आसीत्। 

देवा इदस्य हविरद्यमायन्यो अर्वन्तं प्रथमो अध्यतिष्ठत्॥

अश्व का सिर सोने का है और उसके पैर लोहे के तथा वेगशाली हैं। वेग के सम्बन्ध में तो इन्द्रदेव भी लघु है। देवगण अश्व के हव्य भक्षण के लिए यहाँ पधारते हैं, किन्तु इन्द्रदेव पहले से ही यहाँ उपस्थित रहते हैं।[ऋग्वेद 1.163.9]

देवगण तुम्हारे पीछे वीर्य, कार्य के प्रशंसक हैं। इस घोड़े का सिर स्वर्ण से सजा हुआ है। इसके पैरों में लोहे का आवरण चढ़ा है। देवता भी इससे आकर्षित होते हैं। इन्द्र इस अश्व पर सबसे पहले सवार हुए थे। 

The head of the fast running horse-Ashw is golden and its feet are made of iron. Its faster than Dev Raj is respect of speed. The demigods-deities present themselves here to ensure that the horse eats-accepts the offerings, while Dev Raj Indr is already present.

ईर्मान्तासः सिलिकमध्यमासः सं शूरणासो दिव्यासो अत्याः। 

हंसाइव श्रेणिशो यतन्ते यदाक्षिषुर्दिव्यमज्ममश्वाः॥

सूर्य देव के रथ को खींचने वाले और सदैव चलने वाले पुष्ट जंघाओं और वक्ष वाले अश्व पंक्ति बद्ध होकर हंसों के तुल्य चलते हैं, तब वे स्वर्ग मार्ग में दिव्यता को प्राप्त होते हैं।[ऋग्वेद 1.163.10]

जब यह अश्व भव्य मार्ग में चलता है तब उसके साथी घोड़ों के साथ चलती हुई पंक्ति हंसों को पंक्ति जैसी लगती है।When the horses pulling the chariote of Bhagwan Sury Narayan having strong thighs and strong chest, moving in a que like swans attain divinity through the heavens. 

तव शरीरं पतयिष्णवर्वन्तव चित्तं वातइव ध्रजीमान्। 

तव शृङ्गाणि विष्ठिता पुरुत्रारण्येषु जर्भुराणा चरन्ति॥

हे अश्व! आपका शरीर शीघ्रगामी है, आपका चित्त भी वायु भी की तरह शीघ्रगन्ता है। आपकी विशेष प्रकार से स्थित दीप्तियाँ जंगलों में दावानल के रूप में विद्यमान है।[ऋग्वेद 1.163.11]

हे अश्व! तू उड़ने में समर्थवान है। तू पवन वेग से चलता है। तू विविध स्थानों में भ्रमणशील है।

Hey fast moving, horse-Ashw! Your are fast moving like wind and capable of flying. You travel through various places like forests-jungles. You are present in the forests like the fire which engulfs the jungles.

उप प्रागाच्छसनं वाज्यर्वा देवद्रीचा मनसा दीध्यान:।  

अजः पुरो नीयते नाभिरस्यानु पश्चात्करेंयो यन्ति रेभाः॥

वह द्रुतगामी अश्व आसक्त चित्त से देवों का ध्यान करते हुए वध स्थान में जाता है। उसके मित्र अज उसके आगे-आगे ले जाया जाता है। स्तोता पीछे-पीछे पाठ करते हुए चलते हैं।[ऋग्वेद 1.163.12]

कुशल घोड़ा युद्ध क्षेत्र की तरफ जाता हुआ वंदना के योग्य होता है। अन्य अश्व जो उसके संग जन्म लेते हुए भी इसका बंधु रूप है, संग चलता है। मेधावी जन उसके संग आगे चलते हैं।

That fast moving horse moves to the site of sacrifice-slaughter remembering the demigods-deities. Its friend goat moves ahead of him. The devotees follows him chanting Shloks. 

उप प्रागात्परमं यत्सवस्थमवां अच्छा पितरं मातरं च ।

देवातमी हि गम्या अथा शास्ते दाशुषे वार्याणि॥

द्रुतगामी अश्व पिता और माता को प्राप्त करने के लिए उत्कृष्ट और एक निवास योग्य स्थान पर गमन करता है। हे याजक! आप भी अच्छे गुणों से युक्त होकर देवत्व को प्राप्त करते हुए देवताओं से अपार वैभव प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.163.13]

ऐसा परम श्रेष्ठ स्थान को प्राप्त हुआ वीर देवगणों के समीप पहुँचता है। उसे प्रदान करने वाला घोड़ा का मालिक यजमान वरणीय धन प्राप्त करता है।

The fast moving horse-Ashw moves to the excellent place for living, with his parents. Hey Yagy performers, you too should have righteous-virtuous qualities to attain demigodhood and all sorts of amenities like the demigods-deities.

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RUDR रुद्र

रुद्र RUDR

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।

अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।

निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (114) :: ऋषि :- कुत्स आंगिरस, देवता :- रुद्र  छंद :- जगती, त्रिष्टुप्।

इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्र भरामहे मतीः। 

यथा शमसद्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्तिन्ननातुरम्॥

महान् कपर्दी या जटाधारी और दुष्टों के विनाश स्थान रुद्र को हम यह मननीय स्तुति अर्पण करते हैं, ताकि द्विपद और चतुष्पद सुस्थ रहें और हमारे इस ग्राम में सब लोग पुष्ट और रोग शून्य रहें।[ऋग्वेद 1.114.1]

पराक्रमियों के स्वामी, जटिल रुद्र के लिए वंदनाएँ करते हैं। दुपाये, चौपाये सुखी हों। इस ग्राम के निवासा समस्त प्राणधारी निरोगी रहते हुए पुष्ट हों।

We offer this great poem (verse, Strotr, Stuti, prayer) to Rudr-Bhagwan Shiv, who has matted hair and who is the slayer of the wicked-sinner & keeps  the living being moving over two or four legs remain healthy, happy and to keep all the residents of our locality healthy-free from diseases. 

मृळा नो रुद्रोत नो मयस्कृधि क्षयद्वीराय नमसा विधेम ते। 

यच्छं च योश्च मनुरायेजे पिता तदश्याम तव रुद्र प्रणीतिषु॥

हे रुद्रदेव! आप सुखी हों; हमें सुखी करें। आप दुष्टों के विनाशक हैं। हम नमस्कार के साथ आपकी प्रार्थना करते हैं। पिता या उत्पादक मनु ने जिन रोगों से उपशम और जिन भयों से उद्धार पाया था; हे रुद्रदेव आपके उपदेश से हम भी वह प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.114.2]

हे रुद्र! दया दृष्टि करो। सुख प्रदान करो। तुम वीरों के स्वामी को हम नमस्कार करें। जिस प्रकार से अनुष्ठान द्वारा मनु ने प्राप्त किया था, उसे हम तुमसे ग्रहण करें।

Hey Rudr Dev! You should be happy and keep us happy-comfortable. You are the destroyer-slayer of the wicked. We prostrate before and sing prayers devoted to you. Let us be granted those means with which Manu over powered the diseases-ailments and the fears, by you.

अश्याम ते सुमतिं देवयज्यया क्षयद्वीरस्य तव रुद्र मीढ्वः। 

सुम्नायन्निद्विशो अस्माकमा चरारिष्टवीरा जुहवाम ते हविः॥

हे अभीष्टदाता रुद्रदेव! आप दुष्टों के क्षयकारी अथवा ऐश्वर्यशाली मरुतों से युक्त हैं। हम देवयज्ञ द्वारा आपका अनुग्रह प्राप्त करें। हमारी सन्तानों के सुख की कामना करके उनके पास पधारें। हम भी प्रजा का हित देखकर आपको हव्य प्रदान करेंगे।[ऋग्वेद 1.114.3]

हे रुद्र हम तुम्हारे उपासक देव की अर्चना द्वारा तुम वीरों के दाता की दया दृष्टि प्राप्त करें। तुम हमारी संतान को सुख प्रदान करो। हर्षित वीरों से युक्त हम तुमको हवि भेंट करें।

Hey desire fulfilling-granting Rudr Dev! You are the protector of the brave and slayer of the wicked. You are an associate of the Maruts. We should get your blessings through Dev Yagy. Please come to bless our progeny. We make offering to you to seek the welfare of the general public-populace.

त्वेषं वयं रुद्रं यज्ञसाधं वङ्कुं कविमवसे नि ह्वयामहे।

आरे अस्मद्दैव्यं हेळो अस्यतु सुमतिमिद्वयमस्या वृणीमहे॥

रक्षण के लिए हम दीप्तिमान्, यज्ञ साधक, कुटिल गति और मेधावी रुद्र का आह्वान करते है। वह हमारे पास से अपना क्रोध दूर करें। हम उनका अनुग्रह चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.114.4]

हे रुद्र हम तुम्हारे उपासक देव की अर्चना द्वारा तुम वीरों के दाता की दया दृष्टि प्राप्त करें। तुम हमारी संतान को सुख प्रदान करो। हर्षित वीरों से युक्त हम तुमको हवि भेंट करें। हम क्षितिज के समान घोर रूप वाले, लाल रंग वाले जटाधारी तथा श्रेष्ठतम रुद्र का नमस्कारपूर्वक आह्वान करते हैं। 

We invite intelligent & brilliant Rudr, who move with typical-devious speed. He should not be angry with us. We desire his blessings.

दिवो वराहमरुषं कपर्दिनं त्वेषं रूपं नमसा नि ह्वयामहे।

हस्ते बिभ्रद्धेषजा वार्याणि शर्म वर्म च्छर्दिरस्मभ्यं यंसत्॥

हम उन स्वर्गीय उत्कृष्ट वराह की तरह दृढाङ्ग, अरुणवर्ण, कपर्दी, दीप्तिमान् और उज्ज्वल रूप धर रुद्र को नमस्कार करके बुलाते हैं। हाथ में वरणीय भेषज धारण करके वे हमें सुख, वर्म और गृह प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.114.5]

दीप्त, यज्ञ सिद्ध करने वाले, तिरछी गति वाले मेधावी रुद्र का रक्षा हेतु हम आह्वान करते हैं। देवगणों के क्रोध को शांत करें। हम उनका अनुग्रह चाहते हैं। वे वरणीय औषधियों को हाथ में धारण कर हमको सुखी बनाने तथा अपने सुरक्षा साधनों द्वारा निर्भय बनायें। 

We salute Rudr Dev who is fair coloured, with long hair, as strong as the Varah (an incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu). Let him possess medicines for us and grant us comforts-pleasures, protective shield and house-home.

वर्म :: कवच, जिरह बख्तर; hauberk, protective shield. 

इदं पित्रे मरुतामुच्यते वचः स्वादोः स्वादीयो रुद्राय वर्धनम्।

रास्वा च नो अमृत मर्तभोजनं त्मने तोकाय तनयाय मृळ॥

मधु से भी अधिक मधुर यह स्तुति वाक्य मरुतों के पिता रुद्र के उद्देश्य से उच्चारित किया जाता है। इससे स्तोता की वृद्धि होती है। हे मरण रहित रुद्रदेव! मनुष्यों का भोजन रूप अन्न  हमें प्रदान करें। मुझको व मेरे पुत्र को तथा पौत्र को सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.114.6]

मरुद्गणों के जनक रुद्र के लिए इस आह्वान करते हैं। मरुद्गणों के जनक रुद्र के लिए इस मधुर श्लोक का हम उच्चारण करते हैं। हे अविनाशी रुद्र! हमको सेवनीय पदार्थ प्रदान करो। हम पर और हमारी संतान पर कृपा करो।

This verse as sweet as honey is meant for the father of the Maruts. It helps (leads to the progress of those) those who recite it. Hey immortal Rudr! kindly grant food to the humans. Grant pleasure to me, my son and grand son. 

मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम्।

मा नो वधिः पितरं मोत मातरं मा नः प्रियास्तन्वो रुद्र रीरिषः॥

हे रुद्रदेव! हममें से वृद्धों को मत मारना, बच्चों को न मारना, सन्तानोत्पादक युवक को न मारना तथा गर्भस्थ शिशु को भी न मारना। हमारे पिता का वध न करना, माता की हिंसा न करना तथा हमारे प्रिय शरीर में आघात मत करना।[ऋग्वेद 1.114.7]

हे रुद्रदेव! हमारे वृद्ध, बालक, युवा, सब वृद्धि को ग्रहण हों, पुत्र युवावस्था वालों को मृत न करो। हमारे शरीरों को संताप न देना। 

Hey Rudr Dev! Please do not kill our elders, children, the youth capable of producing children and the children in the womb. Please do not kill our father & mother and do not harm our bodies.

मा नस्तोके तनये मा न आयौ मा नो गोषु मा नो अश्वेषु रीरिषः।

वीरान्मा नो रुद्र भामितो वधीर्हविष्मन्तः सदमित्त्वा हवामहे॥

हे रुद्रदेव! हमारे पुत्र, पौत्र, मनुष्य, गौ और अश्व को मत मारना। आप क्रोधित होकर वीरों की हिंसा मत करना, क्योंकि हव्य प्रदान कर हम सदैव आपका ही आवाहन करते हैं।[ऋग्वेद 1.114.8]

हे रुद्रदेव! हमारे पराक्रमियों के पतन के लिए आक्रोश न करो। हम हमेशा ही हवि प्रदान करते हुए तुम्हारा आह्वान करते हैं।

Hey Rudr Dev! Please do not kill our son, grandson, humans and the horses. Kindly, do not kill our brave warriors on being angry, since we continue to make offerings to you and always invite-remember you.

उप ते स्तोमान्पशुपाइवाकरं रास्वा पितर्मरुतां सुम्नमस्मे।

भद्रा हि ते सुमतिर्मृळयत्तमाथा वयमव इत्ते वृणीमहे॥

जिस प्रकार से चरवाहे सायंकाल अपने स्वामी के पास पशुओं को लौटा देते हैं, हे रुद्रदेव! इसी प्रकार मैं आपके स्तोत्र आपको अर्पित करता हूँ। आप मरुतों के पिता है, हमें सुख प्रदान करें। आपका अनुग्रह अत्यन्त सुखकर और कल्याणकारी है। हम आपका रक्षण चाहते हैं।[ऋग्वेद 1.114.9]

हे मरुतों के पिता रुद्रदेव! पशु रक्षक अपने पशुओं के दाता को भेंट करता है, वैसे ही मैंने तुम्हारे लिए श्लोक भेंट किये हैं। तुम हमको सुख दो। तुम्हारी बुद्धि कल्याण करने वाली है। हम तमसे रक्षा की प्रार्थना करते हैं।

The way the herds men bring back their cattle back to their master in the evening, Hey Rudr Dev! similarly, I make offerings to you in the form of recitation of the Strotr (Shloks, Mantr, holy verses). Hey the father of the Maruts! Grant us comforts-pleasures. Your blessings are pleasing leading to our welfare. We seek protection, shelter, asylum under you.

आरे ते गोघ्नमुत पूरुषघ्नं क्षयद्वीर सुप्रमस्मे ते अस्तु। 

मृळा च नो अधि च ब्रूहि देवाधा च नः शर्म यच्छ द्विवर्हाः॥

हे दुष्टों के विनाशक रुद्रदेव! आपका गौहनन साधन और मनुष्य हनन साधन अस्त्र दूर रहे। हम आपका दिया सुख प्राप्त करें। हे दप्तिमान् रुद्रदेव! हमारे पक्ष में रहना। आप पृथ्वी और अन्तरिक्ष के अधिपति हैं, हमें सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.114.10]

हे पराक्रमियों के स्वामी रूद्र देव! तुम्हारा पशु और मनुष्यों को समाप्त करने वाला अस्त्र दूर पहुँचे। हम पर तुम्हारी कृपा दृष्टि रहे। तुम हम पर दया दृष्टि रखो और हमारा समर्थन प्राप्त करते हुए शरण प्रदान करो। रक्षा की अभिलाषा में “रुद्र को प्रणाम” ऐसा प्रण हमने उच्चारण किया है।

Hey the slayer of the wicked! Please keep the Astr (the weapons which target the enemy just by the recitation of Mantr-coaded verses). We should be able to attain-enjoy the comforts-pleasures granted by you.  Hey shinning Rudr Dev! You should always be on our side-in our favour. You are the master of the earth and the space-sky. We salute you with the desire of protection.

अवोचाम नमो अस्मा अवस्यवः शृणोतु न हवं रुद्रो मरुत्वान्।

 तन्नो मित्रो वरुणी मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥

हमने रक्षा की कामना करके कहा है। उन रूद्र देव को नमस्कार है। मरुतों के साथ हमारा आह्वान श्रवण करें। मित्र, वरुण, अदिति, सिन्धु, पृथ्वी और आकाश हमारी इस प्रार्थना  स्वीकार करें।[ऋग्वेद 1.114.11]

वे रुद्र, मरुद्गण के साथ हमारे आह्वान को सुनें। सखा, वरुण, अदिति, समुद्र, धरती और आसमान हमारी इस विनती को अनुमोदित करें।

We recited this Shlok-Mantr with the desire of protection, shelter, asylum under you. We salute you. Please listen to our prayers along with the Maruts. Let Mitr, Varun, Aditi, Sindhu, Prathvi-earth and the Akash-sky accept our prayer-worship.

भगवान् का विकराल रूप ही रुद्र है। रुद्र ही शिव-शंकर हैं।Rudr is the furious form of Bhagwan Shiv. He perform Tandav when angry. He is Mahesh, the destroyer.

ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (33) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- रुद्र, छन्द :- त्रिष्टुप्।

आ ते पितर्मरुतां सुम्नमेतु मा नः सूर्यस्य संदृशो युयोथाः।

अभि नो वीरो अर्वति क्षमेत प्र जायेमहि रुद्र प्रजाभिः

हे मरुतों के पिता रुद्र! आपका दिया हुआ सुख हमारे पास आवे। सूर्य दर्शन से हमें पृथक् न करें। हमारे वीर पुत्र शत्रुओं को पराजित करें। हे रुद्र देव! हम पुत्र और पौत्रों से युक्त हों।[ऋग्वेद 2.33.1] 

हे मरुद्गण के जन्मदाता इन्द्रदेव! तुम्हारा सुख दान हमें ग्रहण हो। हम सूर्य के दर्शन से कदापि वंचित न रहें। हमारे पराक्रमी पुत्र शत्रुओं से हमेशा विजयी रहें। हम असंख्य पुत्र-पौत्र वाले बनें।

Hey  Rudr, the father of Marud Gan! The pleasure granted by you should prevail with us. Do not isolate us from the Sun rise. Let our brave sons defeat the enemy. Hey Rudr Dev! Let us be blessed with sons & grand sons.

त्वादत्तेभी रुद्र शंतमेभिः शतं हिमा अशीय भेषजेभिः।

व्यस्मद्द्द्वेषो वितरं व्यंहो व्यमीवाश्चातयस्वा विषूचीः

हे रुद्र देव! हम आपकी दी हुई सुखकारी औषधि के द्वारा सौ वर्ष जीवित रहें। हमारे शत्रुओं का विनाश करें, हमारा पाप सर्वांशतः दूर करें। शरीर में होने वाली समस्त व्याधियों को दूर करें।[ऋग्वेद 2.33.2]

हे रुद्र! हम तुम्हारे द्वारा प्रदत्त सुख देने वाली औषधि से सौ वर्ष की आयु ग्रहण करें। तुम हमारे शत्रुओं को समाप्त करो। हमारे पाप को बिल्कुल समाप्त कर दो। शरीर में विद्यमान समस्त व्याधियों को हमसे दूर रखो।

Hey Rudr Dev! Let us survive-live for hundred years by virtue of the beneficial medicine, given by you. Destroy our enemies. Remove our sins completely. Keep off all ailments-diseases from us.

श्रेष्ठो जातस्य रुद्र श्रियासि तवस्तमस्तवसां वज्रबाहो।

पर्षि णः पारमंहसः स्वस्ति विश्वा अभीती रपसो युयोधि

हे वज्रबाहु रुद्र देव! ऐश्वर्य में आप सबसे श्रेष्ठ है। प्रवृद्धों में आप अतीव प्रवृद्ध हैं। हमें में पाप के उस पार ले चलें, जिससे हमारे पास पाप न आ पावें।[ऋग्वेद 2.33.3]

प्रवृद्ध :: अतिशय वृद्धि को प्राप्त, प्रौढ़; बहुत अधिक बढ़ा हुआ, खूब पक्का, फैला हुआ, विस्तृत। अयोध्या के राजा रघु का एक पुत्र जो गुरु के शाप से 12 वर्षों के लिए राक्षस हो गया था। तलवार चलाने के 32 ढंगों या हाथों में से एक जिसे प्रसृत भी कहते हैं; aged. हे रुद्र! तुम ऐश्वर्यवानों में उत्तम हो। तुम्हारी भुजा में वज्र रहता है। तुम अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त होओ। तुम हमें पाप से मुक्त कराओ।

Hey Rudr Dev, possessing strong arms like Vajr! You are best-excellent in grandeur. You should attain extreme growth. Remove our all sins. Protect us from sins.

मा त्वा रुद्र चुक्रुधामा नमोभिर्मा दुष्टुती वृषभ मा सहूती।

उन्नो वीराँ अर्पय भेषजेभिर्भिषक्तमं त्वा भिषजां शृणोमि

हे अभीष्ट वर्षी रुद्र देव! वैद्यों से भी उत्तम वैद्य के रूप में आप जानें जाते हैं अर्थात् आप वैद्यों में सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए औषधियों के द्वारा हमारी संतान को बलवान् बनावें। हम झूठी और निन्दित स्तुतियों के द्वारा आपको क्रोधित न करें। साधारण लोगों के समान बुलाकर भी हम आपको क्रोधित न करें।[ऋग्वेद 2.33.4]

तुम अभिष्ट की वर्षा करने वाले हो। हम नियम-विरुद्ध प्रणाम एवं भ्रम युक्त वंदना तथा सहयोग का आह्वान कर तुम्हें रुष्ट न करें। तुम श्रेष्ठ भिषक हो। अतः औषधि से हमारी संतान को शक्तिशाली बनाओ।

Hey desire accomplishing Rudr Dev! You are best amongest the Vaedy-doctors. Make our progeny strong with medicines. We should not make you angry with false prayers-worship, flattery like a common man.

हवीमभिर्हवते यो हविर्भिरव स्तोमेभी रुद्रं दिषीय।

ऋदूदरः सुहवो मा नो अस्यै बभ्रु सुशिप्रो रीरधन्मनायै

जो रुद्र देव हव्य के साथ आह्वान द्वारा आहूत होते हैं, उनका स्तोत्र द्वारा मैं क्रोध दूर करूँगा। कोमलोदर, शोभन आह्वान वाले, वभ्रु (पीत) वर्ण और सुनासिक रुद्र देव हमारा वध न करें।[ऋग्वेद 2.33.5]

मैं हवि परिपूर्ण आह्वान से पुकारे जाने वाले रुद्र का आक्रोश वंदना द्वारा निवारण करूँगा। कोमल उदर, पीतरंग और सुन्दर नाक वाले शोभायमान रुद्र हमारी हिंसा न करें।

I will pray to Rudr Dev with the Strotr which will remove his anger. Soft belly, yellow coloured, possessing beautiful nose, Rudr should not kill us.

उन्मा ममन्द वृषभो मरुत्वान्त्वक्षीयसा वयसा नाधमानम्।

घृणीव च्छायामरपा अशीया विवासेयं रुद्रस्य सुम्नम्

मैं प्रार्थना करता हूँ कि अभीष्टवर्षी और मरुत वाले रुद्र देव मुझे दीप्त अन्न द्वारा तृप्त करें। जिस प्रकार धूप से पिड़ित मनुष्य छाया को आश्रित करता है, उसी प्रकार से मैं भी पाप शून्य होकर रुद्र प्रदत्त सुख प्राप्त कर रुद्रदेव की सेवा करूँगा।[ऋग्वेद 2.33.6]

मरुद्जनक अभिष्टवर्षी हैं। उत्तम अन्न प्रदान करने की उनसे विनती करता हूँ। धूप से व्यथित मनुष्य छाया की शरण प्राप्त करने के तुल्य मैं भी पाप प्रथक हुआ रुद्र का प्रदान किया हुआ सुख प्राप्त करुँगा। मैं उनकी सेवा करुँगा।

I pray to the accomplishment fulfilling-granting Rudr, the progenitor of Marud Gan, to satisfy me, with best food grains. I will serve Rudr Dev like the person facing Sun who find solace under shadow, having become sinless and attaining the pleasure granted by him.

क्वस्य ते रुद्र मृळयाकुर्हस्तो यो अस्ति भेषजो जलाषः।

अपभर्तारपसो दैव्यस्याभी नु मा वृषभ चक्षमीथाः

हे रुद्र देव! आपका वह सुखदाता हाथ कहाँ है, जिससे आप दवा तैयार करके सबको सुखी करते हैं। हे अभीष्ट वर्षी रुद्र देव! दैव पाप के विघातक होकर आप मुझे शीघ्र क्षमा करें।[ऋग्वेद 2.33.7]

हे रुद्र! तुम्हारा सुख का दान करने वाली बाहु कहाँ हैं? उसके द्वारा औषधि देते हुए सबको सुखी बनाओ। तुम अभिष्ट वर्षण में सक्षम हों। 

Hey Rudr Dev! Where is your arm with which you prepare comforting medicines. Hey desires-accomplishment granting Rudr Dev! Excuse me, sufferings from the sins, committed towards demigods-deities. 

प्र बभ्रुवे वृषभाय श्वितीचे महो महीं सुष्टुतिमीरयामि।

नमस्या कल्मलीकिनं नमोभिर्गृणीमसि त्वेषं रुद्रस्य नाम

हे वभ्रु वर्ण! अभीष्ट वर्षी और श्वेत आभा वाले रुद्र देव को लक्ष्य करके अतीव महती स्तुति का हम उच्चारण करते हैं। हे स्तोता! नमस्कार द्वारा तेजस्वी रुद्र की पूजा करें। हम उनके उज्ज्वल नाम का संकीर्तन करते हैं।[ऋग्वेद 2.33.8]

अभीष्ट वर्षा करने वाले पीत वर्ण और श्वेत आभायुक्त रुद्र के प्रति हम महत्वपूर्ण वाणी से वंदना करते हैं। हे स्तोता! तेजवान रुद्र को प्रणाम द्वारा पूजो। हम उनका गुणगान करते हैं। 

We pray-worship Rudr Dev with significant Stuti (prayers, hymns) who possess-has yellowish colour & aura and accomplish our desires. Hey Stota-worshiper! Let us worship-honour Rudr Dev with salutations. We sing his names.

स्थिरेभिरङ्गैः पुरुरूप उग्रो बभ्रुः शुक्रेभिः पिपिशे हिरण्यैः।

ईशानादस्य भुवनस्य भूरेर्न वा उ योषद्रुद्रादसुर्यम्

दृढांग बहुरूप, उम्र और वधु वर्ण रुद्र देव दीप्त और स्वर्ण के अलंकारों से सुशोभित होते हैं। रुद्र देव समस्त भुवनों के अधिपति और भर्ता है। उनका बल क्षीण नहीं होता।[ऋग्वेद 2.33.9]

अनेक रूप वाले दृढ़ शरीर वाले, विकराल, पीतवर्ण युक्त उज्ज्वल तेज से प्रकाशमान हैं। वे सभी भुवनों के स्वामी और पालन-पोषण करने वाले हैं। वे पराक्रम युक्त हैं।

Rudr Dev possess strong organs, appears in vivid-various shapes-forms, furious, has bright yellow aura. He supports all abodes (Heavens, earth and the nether world). His power-might never decays.

अर्हन्बिभर्षि सायकानि धन्वआर्हन्निष्कं यजतं विश्वरूपम्।

अर्हन्निदं दयसे विश्वमभ्वं न वा ओजीयो रुद्र त्वदस्ति

हे पूजा योग्य रुद्र देव! आप धनुर्वाण धारी हैं। हे पूजार्ह! आप नाना रूपों वाले हैं और आपने पूजनीय निष्क को धारण किये हुए हैं। आप समस्त संसार की रक्षा करते हैं। आपकी अपेक्षा अधिक बलवान् कोई नहीं है।[ऋग्वेद 2.33.10]

निष्क शब्द का प्रयोग गले के हार के लिये किया गया है। भगवान् शिव के गले का हार नागराज वासुकि हैं।निष्क एक  सोने का सिक्का जिसकी तौल 1 कर्ष या 16 माशा।

1 निष्क = 16 द्रम्य, 1 द्रम्य = 16 पण, 1 पण = 4 काकिणी, 1 काकिणी = 20 कौड़ी बतायी हैं। 1 निष्क = 20,480 कौड़ियाँ तथा 1 निष्क = 256 पण।[भास्कराचार्य-लीलावती]

पहले कौड़ियाँ सबसे छोटे सिक्के की तरह प्रयुक्त होती थीं।हे वसुधारी अर्चनीय रुद्र! तुम अनेक रूप में विद्यमान होकर सुरक्षा करते हो। तुम्हारे तुल्य बलिष्ठ अन्य कोई नहीं है।

Hey Rudr Dev! You deserve worship. You hold bow & arrow. You acquire different-varied shapes & sizes. You are holding Nag Raj Vasuki as your Necklace. You are protecting the whole world. None is mightier than you.

स्तुहि श्रुतं गर्तसदं युवानं मृगं न भीममुपहत्नुमुग्रम्

मृळा जरित्रे रुद्र स्तवानोऽन्यं ते अस्मन्नि वपन्तु सेनाः

हे स्तोता! विख्यात रथ पर आरूढ़, युवा, पशु की तरह भयंकर और शत्रुओं के विनाशक तथा उग्र रुद्र देव की स्तुति करें। हे रुद्र देव! स्तुति करने पर आप हमें सुख प्रदान करते हैं। आपकी सेना शत्रुओं का विनाश करती है।[ऋग्वेद 2.33.11]

हे प्रार्थनाकारी! प्रसिद्ध, रथ पर सवार हुए, विकराल रूप वाले, शत्रु संहारक जवान रुद्र का पूजन करो। हे रुद्र! तुम वंदना करने पर सुख प्रदान करने वाले हो। तुम्हारी सेना हमारे शत्रु का नाश करें। 

Hey devotees! Worship-pray to Rudr Dev, who is the destroyer (of the evil), riding a famous-glorious charoite, young, furious-dangerous like a beast. Hey Rudr Dev! You grant us pleasure on being worshiped. Let your army destroy the enemy. 

कुमारश्चित्पितरं वन्दमानं प्रति नानाम रुद्रोपयन्तम्।

भूरेर्दातारं सत्पतिं गृणीषे स्तुतस्त्वं भेषजा रास्यस्मे॥

जिस प्रकार आशीर्वाद देते समय पिता को पुत्र नमस्कार करता है, उसी प्रकार ही हे रुद्र देव! आपके आने के समय हम आपको नमस्कार करते हैं। आप बहुधन दाता और साधुओं के पालक हैं। स्तुति करने पर आप हमें औषधि प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 2.33.12]

जिस प्रकार पिता द्वारा आशीर्वाद देने पर पुत्र, प्रणाम करें, उसी प्रकार हे रुद्र! तुम्हारे आने पर हम तम्हें प्रणाम करते हैं। तुम विभिन्न धन को देने वाले सज्जनों के पालनहार हो।

Hey Rudr Dev! The manner in which a son salutes his father when he blesses him; in the same way we salute you when you come. You provide various kinds of riches and support the saintly people. You give us medicine, when we pray to you.

या वो भेषजा मरुतः शुचीनि या शंतमा वृषणो या मयोभु।

यानि मनुवृणीता पिता नस्ता शं च योश्च रुद्रस्य वश्मि

हे मरुतो! आपकी जो निर्मल औषधि है, हे अभीष्टवर्षी गण। आपकी जो औषधि अतीव सुखद है, जिस औषधि का हमारे पिता मनु ने चयन किया था, वही सुखकर और भय का नारा करने वाली औषधि हम चाहते हैं।[ऋग्वेद 2.33.13]

हे मरुद्गण! तुम्हारी पवित्र औषधि अत्यन्त सुख प्रदान करने वाली है। जिस औषधि की हमारे पूर्वज मनु ने खोज की थी, वह भय को पतन करने वाली थी। उसी औषधि की हम इच्छा करते हैं।

Hey desires-accomplishments fulfilling Marud Gan! We wish to have the medicines which is pure & comforting. We wish to have the same medicine which remove fear & was discovered by our father Manu. 

परि णो हेती रुद्रस्य वृज्याः परि त्वेषस्य दुर्मतिर्मही गात्।

अव्र स्थिरा मघवद्भ्य स्तनुष्व मीढ्वस्तोकाय तनयाय मृळ

रुद्र का हेति आयुध हमें छोड़ दे। दीप्त रुद्र की महती दुर्मति भी हमें छोड़ दे। हे सेचन समर्थं रुद्रदेव! धनवान् यजमान के प्रति अपने धनुष की ज्या शिथिल करें। हमारे पुत्र और पौत्रों को सुखी करें।[ऋग्वेद 2.33.14]

हेति :: वज्र, अस्त्र, भाला, घाव, चोट, सूर्य की किरण, आग की लपट, धनुष की टंकार, औजार, अंकुर। वह प्रथम राक्षस राजा जो मधुमास या चैत्र में सूर्य के रथ पर रहता है। यह प्रहेति का भाई और विद्युल्केश का पिता कहा गया है। 

सेनापति रुद्र का अस्त्र हम पर न पड़े। तेजस्वी रुद्र की भीषण क्रोध बुद्धि हमारी ओर न हो।

Let the weapons of Rudr Dev avoid us. His Astr should not fall over us. Keep of cord of your bow loose towards the wealthy-devotees. Make our sons & grandson happy-blessed.

May the javelin-Trident, Trishul, of Rudr Dev avoid us; may the great displeasure of the radiant deity pass away from us; showerer of benefits, turn away your strong bow from the wealthy offerors of oblations and bestow happiness upon our sons and grandsons.

एवा बभ्रो वृषभ चेकितान यथा देव न हृणीषे न हंसि।

हवनश्रुन्नो रुद्रेह बोधि बृहद्वदेम विदथे सुवीराः

हे अभीष्टवर्षी, वभ्रुवर्ण, दीप्तिमान्, सर्वज्ञ और हमारा आह्वान सुनने वाले रुद्र! हमारे लिए आप यहाँ ऐसी विवेचना करें कि हमारे प्रति कोई क्रोधित न हो, हमें कभी विनष्ट न करें। हम पुत्र और पौत्र वाले होकर इस यज्ञ में प्रभूत स्तुति करें।[ऋग्वेद 2.33.15]

है रुद्र! तुम पीत वर्ण वाले हमारे आह्वान को सुनते हो। हमारे पुत्र पौत्रों को सुख प्रदान करो। हम पुत्र-पौत्रादि सहित इस यज्ञ में वंदना उच्चारण करेंगे।

Hey accomplishments granting Rudr Dev! You are glorious, enlightened & your body possess yellow tinge. You listen-respond to our prayers. You should not be angry with us & destroy us. We will promote-conduct Yagy having been blessed with sons & grandsons. 

NOIDA, UP, INDIA

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संतोष महादेव-सिद्ध व्यास पीठ, बी ब्लाक, सैक्टर 19, नौयडा

सोम देव SOM DEV

सोम देव SOM DEV

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM

By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।

अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।

निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (91) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :-सोम, छन्द :- गायत्री, उष्णिक्।त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठमनु नेषि पन्थाम्।  तव प्रणीतो न इन्दो देवेषु रत्नमभजन्त धीराः॥हे सोम देव! अपनी बुद्धि द्वारा हम आपको अच्छी तरह से जानते हैं। आप हमें सरल मार्ग से ले जाना। हे सोम! आपके द्वारा लाये जाने पर हमारे पितरों ने देवों के बीच रत्न प्राप्त किया था।[ऋग्वेद 1.91.1]

हे सोम, मति से हम तुमको जान सकें। तुम हमें सुन्दर मार्ग बतलाते हो। तुम्हारे अनुसरण में हमारे पिता देवों से रमणीक सुख को ग्रहण करने में सामर्थ्यवान हुए।

Hey Som Dev-Moon! We have recognised you through of our intelligence-(mind, brain). Please accompany us through a simple (trouble free) path-way. Our ancestors-Manes got jewels, when you took them to the demigods-deities.

त्वं सोम क्रतुभिः सुक्रतुर्भूस्त्वं दक्षैः सुदक्षो विश्ववेदाः।

त्वं वृषा वृषत्वेभिर्महित्वा द्युम्नेभिद्युम्न्यभवो नृचक्षाः॥

हे सोम! आप अपने यज्ञ के द्वारा शोभन यज्ञ से संयुक्त और अपने बल द्वारा शोभन बल स्व युक्त हैं। आप सर्वज्ञ है। आप अनिष्ट फल के वर्षण से वर्षणकारी हैं और आप महिमा में महान् यजमान के अभिमत फल का प्रदर्शन करके यजमान के द्वारा दिये गये अन्न से आप अत्यधिक अन्न से युक्त हैं।[ऋग्वेद 1.91.2]

हे सोम तुम उत्तम प्रज्ञा वाले समस्त धनों से परिपूर्ण, हृदय की शक्ति द्वारा चालाक हुए। तुम मनुष्यों को श्रेष्ठतम सीख देने वाली महिमा से पुरुषार्थ परिपूर्ण तथा तेजस्वी बनें।

Hey Som! You are decorated with the strength of Yagy and your own power-might. You enlightened the humans by granting them excellent knowledge of endeavours-self sufficiency, efforts. 

राज्ञो नु ते वरुणस्य व्रतानि बृहद्गभीरं तव सोम धाम।

 शुचिष्टमसि प्रियो न मित्रो दक्षाय्यो अर्यमेवासि सोम॥

हे सोम! राजा वरुण के सारे कार्य आपके ही हैं। आपका तेज विस्तीर्ण और गम्भीर है। प्रिय बन्धु के समान आप सबके संस्कारक हैं। अर्यमा की तरह आप सबके वर्द्धक हों।[ऋग्वेद 1.91.3]

गम्भीर :: गहरा, गम्भीर, अगाध, कर्कश, भारी, गम्भीर, अपने आप में शान्त; serious, profound, raucous, sober.

हे सोम! वरुण के सभी नियम तुममें सम्मिलित हैं। तुम अत्यन्त तेजस्वी हो। तुम निर्मल, सखा के समान प्रिय और अर्यमा के समान वृद्धि के कारक हो।

Hey Som! You perform like Varun Dev, possessing aura-power & strength, are broad and you are serious-contained in yourself. You should grant growth to all like Aryma.

या ते धामानि दिवि या पृथिव्यां या पर्वतेष्वोषधीष्वप्सु। 

तेभिर्ने विश्वैः सुमना अहेळन्राजन्त्सोम प्रति हव्या गृभाय॥

हे सोम! धुलोक, पृथ्वी, पर्वत, ओषधि और जल में आपका जो तेज है, उसी तेजी से युक्त होकर सुमना और क्रोध-रहित राजन्, हमारा हव्य ग्रहण करें।[ऋग्वेद 1.91.4]

हे नृप सोम! तुम हमारे जो तेज आकाश, धरती, शैलों, औषधियों और जलों में हो, उनके साथ क्रोध रहित मुद्रा में, प्रसन्नतापूर्वक हमारी हवियों को स्वीकार करो।

Hey Som Dev! Please accept our offerings free from anger, associated-accompanied with your aura-energy present in the outer space, earth, mountains, medicines and water. 

त्वं सोमासि सत्पतिस्त्वं राजोत वृत्रहा। 

त्वं भद्रो असि क्रतुः॥

हे सोम! आप सत्कर्म में वर्तमान ब्राह्मणों के अधिपति हैं। आप राजा हैं। आप शोभन यज्ञ भी हैं।[ऋग्वेद 1.91.5]

हे सोम! तुम श्रेष्ठ मनुष्यों के पोषक वृत्र नाशक एवं उत्तम शक्ति के साक्षात रूप हो।hey Som Dev! You are the king of Brahmns in performing virtuous, righteous, pious deeds. You are a decorated Yagy as well.

त्वं च सोम नो वशो जीवातुं न मरामहे।

प्रियस्तोत्रो वनपस्पतिः॥

स्तुतिप्रिय और सारी औषधियों के पालक, हे सोम! यदि आप हमारे जीवनौषध की अभिलाषा करें, तो हम मृत्युरहित हो जायें।[ऋग्वेद 1.91.6]

हे सोम! प्रिय श्लोकों से परिपूर्ण वन-राज! तुम हमारे जीवन की चाहना करो, जिससे हम मृत्यु को प्राप्त न हों।

Hey Som! You like the people to pray to you. You grow-protect all medicinal plants (जड़ी-बूटी, औषध). If you desire to provide us life saving medicines we will become immortal.  

त्वं सोम महे भगं त्वं यून ऋतायते।

दक्षं दधासि जीवसे॥

हे सोम! आप वृद्ध और तरुण याजक को उसके जीवन के उपयोग योग्य धन प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.91.7]

हे सोम! यज्ञों के अभिलाषी युवक अथवा वृद्धों की कीर्ति और जीवन के लिए आप शक्ति धारक हो।

Hey Som (Moon, Luna)! You provide-grant wealth, riches, money to both young & the old devotees, who ask you for money.

त्वं नः सोम विश्वतो रक्षा राजन्नघायतः। 

न रिष्येत्त्वावतः सखा॥

हे राजा सोम! हमें दुःख देने के अभिलाषी लोगों से बचावें। आप जैसे का मित्र कभी विनष्ट नहीं होता।[ऋग्वेद 1.91.8]

हे सोम! पापी लोगों से हमारी रक्षा करो। तुम्हारे मित्र हम कभी दुःख न उठायें।

Hey king Som! Protect us from those who want to trouble, tease, torture us. one who has  a friend like you will never perish.

सोम यास्ते मयोभुव ऊतयः सन्ति दाशुषे।

ताभिर्नेऽविता भव॥

हे सोम! आपके पास यजमानों के लिए सुखकर रक्षण हैं, उनके द्वारा हमारी रक्षा करें।[ऋग्वेद 1.91.9]

हे सोम! हविदाता को सुखी करने वाले सुरक्षा साधनों से तुम हमारे रक्षक हो।

Hey Som! You have means to protect your devotees who make offerings to you in the Yagy, Hawan, Agni Hotr. 

इमं यज्ञमिदं वचो जुजुषाण उपागहि। 

सोम त्वं नो वृधे भव॥

हे सोम! आप हमारा यह यज्ञ और स्तुति ग्रहण करके पधारें और हमें वर्द्धित करें।[ऋग्वेद 1.91.10]

हे सोम! इस यज्ञ में हमारी इन वंदनाओं को प्राप्त कर हमारी वृद्धि के लिए विराजमान होओ। 

Hey Som! Please come-join us and accept our prayers in the Yagy and ensure our progress.

चन्द्र देव ब्राह्मणों के राजा, औषधियों के स्वामी और मन के नियन्ता हैं। मनुष्य की हथेली पर इनका स्थान सीधे हाथ में बाईं तरफ़ होता है। इसे निम्न, मध्यम और उच्च चन्द्र के रूप में जाना जाता है। यह यात्रा का द्योतक भी है। इसके ऊपर चढ़ी हुई मस्तिष्क रेखा जातक के मन-मस्तिष्क की स्थिति का बयान करती है। बायें हाथ में यह दायेीं ओर होता है और स्त्रियों की मनोस्थिति को बयान करता है।  चन्द्र देव और काम देव दोनों ही ब्रह्मा जी के रूप हैं और दोनों ही मनुष्य के मन को भटकाने वाले हैं।सहज बोध-ज्ञान रेखा (LINE OF INTUITION) चन्द्र पर्वत पर वलयाकार होकर स्थिर होती है। यह मनुष्य को अंर्तज्ञान, भविष्य ज्ञान कराती है। यहीं से बुध रेखा (LINE OF MERCURY) का आविर्भाव होता है और वह जातक के स्वास्थ्य, व्यापार को नियंत्रित करती है। मस्तिष्क रेखा (LINE OF HEAD) निम्न चन्द्र पर आ जाये तो उसे बेहद संवेदनशील और अस्थिर चित्त बना देती है और जातक आत्महत्या भी कर सकता है। भाग्य रेखा यदि यहाँ से प्रारम्भ हो तो जातक अपनी मेहनत से काम-धंधे में सफलता पाता है। सूर्य रेखा (SUN LINE) का यहाँ से उदय उसे लोकप्रिय-जनप्रिय बना देता है और जातक समाज में सम्मान पाता है। सोमवल्ली एक लता-बेल है जो कि चन्द्र के प्रकाश में बढ़ती है। इसका रस सोमरस कहलाता है। यह स्फूर्ति दायक, उम्र में वृद्धि करने वाला, वृद्धावस्था को रोकने वाला है। देवराज इसको पीकर प्रसन्न होते हैं। समस्त देवगण इसको प्राप्त करने के लिये लालायित रहते हैं। 

Please refer to :: “SOMRAS-THE EXTRACT OF SOMVALLI सोमवल्ली-लता और सोमवृक्ष” santoshsuvichar.blogspot.com

अधिक समझने हेतु कृप्या “INNER SELF मन, चित्त, अन्तः करण” santoshsuvichar.blogspot.com का अध्ययन करें। 

सोम गीर्भिष्टा वयं वर्धयामो वचोविदः।

सुमृळीको न आ विश॥

हे सोम! हम लोग स्तुति ज्ञाता हैं; स्तुति द्वारा आपकी प्रार्थना करते हैं। सुखद होकर आप पधारें।[ऋग्वेद 1.91.11]

हे सोम! वंदनीय वचनों के ज्ञाता हम तुम्हें प्रार्थनाओं से सम्पन्न करते हैं। तुम कृपा करके हमारे शरीरों में प्रवेश करो।

Hey Som Dev! We pray-worship you with the help decent words, verse (Strotr, Shlok, hymns) to please you and make you comfortable. Please come to us.

गयस्फानो अमीवहा वसुवित्पुष्टिवर्धनः। 

सुमित्रः सोम नो भव॥

हे सोम! आप हमारे धनवर्द्धक, रोगहन्ता, धनदाता और सुमित्र युक्त होवें।[ऋग्वेद 1.91.12] 

हे सोम! तुम हमारे धन की वृद्धि करने वाले, रोग नाशक, पुष्टिदायक और श्रेष्ठ हो जाओ।

Hey Som! You increase our wealth, grant us riches, remove our diseases-ailments, gives us growth-nutrition and is our friend.

सोम रारन्धि नो हृदि गावो न यवसेष्वा। 

मर्य इव स्व ओक्ये॥

हे सोम! जैसे गौ सुन्दर तृण से तृप्त होती हैं, जैसे मनुष्य अपने घर में प्रसन्न होता है, उसी प्रकार आप भी हमारे हृदय में तृप्त होकर निवास करें।[ऋग्वेद 1.91.13]

हे सोम! गाय घासों के दल में और प्राणियों के भवन में रमण करने के समान, तुम हमारे हृदय में रमण करो।

Hey Som! You should reside in our hearts just like the cows enjoy in green grass and the humans feel satisfied in their home-house.

यः सोम सख्ये तव रारणद्देव मर्त्यः। 

तं दक्षः सचते कविः॥ 

हे सोमदेव! जो मनुष्य बन्धुता के कारण आपकी स्तुति करता है, हे अतीतज्ञाता और निपुण सोम! आप उस पर अनुग्रह करते हो।[ऋग्वेद 1.91.14]

अनुग्रह :: दया, सुघड़ता, इनायत, सुन्दर ढ़ंग, श्री, पक्षपात, अनुमति, अति कृपा, पत्र, इनायत; grace, favour, graciousness.

हे सोम! जो मनुष्य तुम्हारी मित्रता का अभिलाषी है, तुम मेधावी और शक्तिमान सदैव उसके मित्र रहते हो।

Hey Som Dev! You shower bliss-favours over those who prays to you. You know the past and is an expert in this job. 

उरुष्या णो अभिशस्तेः सोम नि पाह्यंहसः। 

सखा सुशेव एधि नः॥ 

हे सोम! हमें अभिशाप या निन्दा से बचायें। पाप से बचायें हमें सुख देकर हमारे हितैषी बनें।[ऋग्वेद 1.91.15]

हे सोम! हमको अकीर्ति से बचाओ, पाप से हमारी सुरक्षा करो, तुम हमारे लिए सुखकारी सखा बनो।

Hey Som Dev! Please protect us from sin, defamation, scorn and curses. You should be helpful-beneficial to us.

आ प्यायस्व समेतु ते विश्वतः सोम वृष्ण्यम्। 

भवा वाजस्य संगथे॥

हे सोम! आप वर्द्धित हों, आपको चारों ओर से शक्ति प्राप्त हो। आप हमारे अन्नदाता बनो।[ऋग्वेद 1.91.16]

हे सोम! तुम वृद्धि को प्राप्त होओ। तुम शक्तिशाली बनो। युद्धकाल में सम्मिलित होने पर हमारे सहायक बनो।

Hey Som! Let your powers grow from all directions. You should be our food provider.

आ प्यायस्व मदिन्तम सोम विश्वेभिरंशुभिः। 

भवा नः सुश्रवस्तमः सखा वृधे॥

अताव मद से युक्त साम समस्त लतावयवों द्वारा वर्धित हों। शोभन अन्न से युक्त होकर आप हमारे मित्र बनें।[ऋग्वेद 1.91.17]

हे अत्यन्त प्रसन्न करने वाले सोम! तुम सुन्दर यश रूपी रश्मियों से तेजस्वी बनो। तुम हमारे मित्र बनकर अच्छी बुद्धि की ओर प्रेरित करते रहो।

Hey bliss-pleasure providing Som! You should acquire aura-brilliance. You should be friendly with us and inspire us to acquire-possess better intelligence-wisdom, prudence. 

सं ते पयांसि समु यन्तु वाजाः सं वृष्ण्यान्यभिमातिषाहः। 

आप्यायमानो अमृताय सोम दिवि श्रवांस्युत्तमानि धिष्व॥ 

हे सोम! आप शत्रुनाशक हैं। आपमें रस, यज्ञान्न और वीर्य संयुक्त हैं। आप वर्द्धित होकर हमारे अमरत्व के लिए स्वर्ग में उत्कृष्ट अन्न धारित करें।[ऋग्वेद 1.91.18]

हे सोम! तुम शत्रुओं को वशीभूत करने वाले हो। हमको अन्न, शक्ति और वीर्य की ग्रहणता हो। अमरत्व की इच्छा में वृद्धि करते हुए क्षितिज के समान श्रेष्ठ कीर्ति तुम्हें प्राप्त हो।

Hey Som! You are the slayer of enemy. You should boost our power, energy and excellent food  grains to generate immortality in us. 

या ते धामानि हविषा यजन्ति ता ते विश्वा परिभूरस्तु यज्ञम्। 

गयस्फानः प्रतरणः सुवीरोऽवीरहा प्र चरा सोम दुर्यान्॥

यजमान लोग हव्य द्वारा जो आपके तेज की पूजा करते हैं, वह समस्त तेज हमारे यज्ञ को व्याप्त करे। धनवर्द्धक, पाप त्राता, वीर पुरुषों से युक्त और पुत्र रक्षक सोम! आप हमारे घर में पधारें।[ऋग्वेद 1.91.19] 

हे सोम! तुम्हारे जिन तेजों से यजमान हविदाता अनुष्ठान करते हैं, वे समस्त तेज हमारे अनुष्ठान के सभी तरफ़ विद्यमान हों। तुम धन की वृद्धि करने वाले, पाप से बचाने वाले, पराक्रम जिन तेजों से यजमान हविदाता अनुष्ठान करते हैं, वे समस्त तेज हमारे अनुष्ठान के सभी तरफ विद्यमान हों।

Hey Som! The devotees-hosts make offerings to you while conducting prayers. The aura generated by you should spread in our Yagy as well. You increase our riches, destroy-eliminate our sins, protect our sons and boost our power-energy. We invite you to our house.

सोमो धेनुं सोमो अर्वन्तमाशुं सोमो वीरं कर्मण्यं ददाति। 

सादन्यं विदथ्यं सभेयं पितृश्रवणं यो ददाशदस्मै॥

जो सोमदेव को हव्य देता है, उसे सोम गौ और शीघ्रगामी अश्व देते हैं और उसे लौकिक कार्य दक्ष, गृह कार्य परायण, यज्ञानुष्ठान्तत्पर माता द्वारा आदृत और पिता का नाम उज्ज्वल करने वाला पुत्र प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.91.20]

तुम धन की वृद्धि करने वाले, पाप से बचाने वाले, पराक्रम से परिपूर्ण संतानों के रक्षक हमारे ग्रहों में निवास करो। गाय अश्व देने वाले तथा कर्मवान घर के कार्यों में कुशल, यज्ञों के अधिकारी, पूर्वजों को यश दिलाने वाले पुत्र के दाता सोम को हवि देनी चाहिये।

Any one who make offerings for Som Dev in Yagy, gets cows & fast moving horses. Som Dev give him him the son who is obedient, expert in domestic rituals-work and bring name & fame to his parents.

अषाहळं युत्सु पृतनासु पप्रिं स्वर्षामप्सां वृजनस्य गोपाम्। 

भरेषुजां सुक्षितिं सुश्रवसं जयन्तं त्वामनु मदेम सोम॥

हे सोम! आप युद्ध में अजेय हैं, सेना के बीच विजयी हैं, स्वर्ग के प्रापयिता हैं। आप जल दाता, बल रक्षक, यज्ञ में अवस्थाता, सुन्दर निवास और यश से युक्त और जयशील हैं। आपको लक्ष्य कर हम प्रसन्न होते हैं।[ऋग्वेद 1.91.21]

हे सोम! हम युद्धों में प्रबल, पावक, प्रकाश दाता, जलों के पोषक, शक्ति रक्षक, श्लोक रूप श्रेष्ठ वास करने वाले, प्रतापी और अजेय होते हुए तुम्हारे पराक्रम से प्रसन्न रहें।

Hey Som! You are invincible in war. You are brave, protector of the fighters, provide water, manage the Yagy and has a seat in the heavens. We feel pleasure when we address you i.e., make prayers-recitations devoted to you.

त्वमिमा ओषधीः सोम विश्वास्त्वमपो अजनयस्त्वं गाः। 

त्वमा ततन्थोर्व अन्तरिक्षं त्वं ज्योतिषा वि तमो ववर्थ॥

हे सोम! आपने समस्त औषधियाँ, वृष्टि, जल और सारी गायें बनाई है। आपने इस व्यापक अन्तरिक्ष को विस्तृत कर ज्योति द्वारा उसका अन्धकार नष्ट कर दिया।[ऋग्वेद 1.91.22]

हे सोम! तुमने औषधि, जल और धेनुओं को रचित किया, अंतरिक्ष को चारों तरफ व्याप्त कर विशाल किया तथा अंधकार को दूर कर दिया।

Hey Som! You are the creator of all medicines, rain fall, water, cows. Your light illuminate the entire space and remove its darkness (at night). 

देवेन नो मनसा देव सोम रायो भागं सहसावन्नभि युध्य। 

मा त्वा तनदीशिषे वीर्यस्योभयेभ्यः प्र चिकित्सा गविष्टौ॥

हे बलशाली सोम! अपनी कान्तिमय बुद्धि द्वारा हमें धन का अंश प्रदान करें। कोई शत्रु आपकी हिंसा न करे। लड़ाई करने वाले दोनों पक्षों में आप ही बलवान हैं। युद्ध में हमें दुष्टों से बचावें।[ऋग्वेद 1.91.23]

हे बलशाली सोम! तुम अद्भुत मन वाले संग्राम में हमारे लिए धन भाग जीत कर लाओ। इस कार्य में तुम्हें कोई रोक न सके। तुम शक्ति के स्वामी हो, संग्राम में दोनों पक्षों को समझ लो कि कौन मित्र है और कौन शत्रु है?

Hey mighty Som! Provide us riches & prudence and the wealth earned during war. The enemy should not be able to harm you. You should be winner in war-dual. Protect us in the war from the demons, wicked, sinners.

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (93) :: ऋषि :- गौतम राहूगण, देवता :- अग्नि, सोम, छन्द :- अनुष्टप, जगती, त्रिष्टुप्, गायत्री, उष्णिक्, पंक्ति।अग्नीषोमाविमं सु मे शृणुतं वृषणा हवम्। 

प्रति सूक्तानि हर्यतं भवतं दाशुषे॥

हे अभीष्टवर्षी अग्नि और सोमदेव! मेरे इस आह्वान को सुनो, स्तुति ग्रहण करके हव्यदाता को सुख प्रदान करो।[ऋग्वेद 1.93.1]

मनुष्यार्थ परिपूर्ण अग्नि और सोम! तुम दोनों मेरे आह्वान को सुनो। मेरे सुन्दर सङ्कल्पों से प्रसन्न चित्त होओ। मुझ हविदाता के लिए सुख स्वरूप बनो।

Hey Agni & Som Dev! You should be happy with the offerings made by me and grant me pleasure-happiness. 

अग्नीषोमा यो अद्य वामिदं वचः सपर्यति। 

तस्मै धत्तं सुवीर्यं गवां पोषं स्वश्र्व्यम्॥

हे अग्नि और सोम! जो आपकी प्रार्थना करता है, उसे बलवान् अश्व और सुन्दर गौ प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.2]

हे अग्ने! हे सोम! तुम दोनों के प्रति विनती करता हूँ, तुम श्रेष्ठ मनुष्यार्थ धारण कर सुन्दर अश्वों गौओं की वृद्धि करो।

Hey Agni & Som Dev! Grant strong horses and beautiful cows to devotee. 

अग्नीषोमा य आहुतिं यो वां दाशाद्धविष्कृतिम्। 

स प्रजया सुवीर्यं विश्वमायु व्यश्नवत्॥

हे अग्नि और सोम! जो आप लोगों को आहुति और हव्य प्रदान करता है, उसे पुत्र-पौत्रादि के साथ वीर्यशाली आयु प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.3]

हे अग्ने! हे सोम! जो तुमको घृत परिपूर्ण हवि प्रदान करें, सन्तानवान हो और पूर्ण आयु को प्राप्त हों।

Hey Agni & Som Dev! Grant sons & grand sons to the devotee who make offerings for you in the holy fire and gifts to the Brahmns-needy. Let the devotee be full of energy and attain full life span of hundred years.

अग्नीषोमा चेति तद्वीर्यं वां यदमुष्णीतमवसं पणिं गाः। 

अवातिरतं बृसयस्य षोऽविन्दतं ज्योतिरेकं बहुभ्यः॥

हे अग्नि और सोम! आपने जिस वीर्य के द्वारा पणि के पास से गोरूप अन्न अपहृत किया था, जिस वीर्य के द्वारा वृसय के पुत्र (वृत्र) का वध करके सबके उपकार के लिए एक मात्र ज्योतिपूर्ण सूर्य को प्राप्त किया था, वह सब हमें मालूम है।[ऋग्वेद 1.93.4]

हे अग्ने! तुम दोनों पराक्रम से प्रसिद्ध तुमने “पणि” की अन्न रूपी गायों को हरण किया। “वृषभ” की संतान को तुमने “पणि” की अन्न रूपी गायों को हरण किया। “वृषभ” की संतान को नष्ट किया और असंख्यों के लिए ही प्रकाश (सूर्य) को प्राप्त किया।

Hey Agni & Som! we are aware that you killed the son of Pani Vratr, got food grains and released Sun light for all.

युवमेतानि दिवि रोचनान्यग्निश्च सोम सक्रतू अधत्तम्। 

युवं सिन्धूँरभिशस्तेर वद्यादग्नीषोमावमुञ्चतं गृभीतान्॥

हे अग्नि और सोम! समान कर्म सम्पन्न होकर आकाश में आपने इन उज्ज्वल नक्षत्र आदि को धारित कर दोषा क्रान्त नदियों को प्रकाशित दोष से मुक्त किया।[ऋग्वेद 1.93.5]

हे अग्ने! हे ! तुम दोनों एक समान कर्म वाले हो। तुमने आसमान में ज्योतियाँ स्थापित की हैं। दोनों ने हिंसक वृत्र से सरिताओं को मुक्त कराया। 

Hey Agni & Som Dev! You perform identical deeds. You cleared-released the sky and the rivers from the control of Vratr.

आन्यं दिवो मातरिश्वा जभारामथ्नादन्यं परि श्येनो अद्रेः। 

अग्नीषोमा ब्रह्मणा वावृधानोरुं यज्ञाय चक्रथुरु लोकम्॥

हे अग्नि और सोम! आप में से अग्नि को मातरिश्वा आकाश से लाये और सोम को श्येन पक्षी (बाज) पर्वत की चोटी से उखाड़ कर लायें। इस प्रकार स्तोत्रों अर्थात् प्रार्थनाओं से बढ़ने वालों ने यज्ञ के लिए संसार की आपने वृद्धि की।[ऋग्वेद 1.93.6]

मातरिश्वा :: ऋग्वेद (3,5,9) में यह अग्नि तथा उसको उत्पन्न करने वाले देवता के लिये प्रयुक्त किया गया है। मनु के लिये मातरिश्वा ने अग्नि को दूर से लाकर प्रदीप्त किया था। ऋग्वेद के एक प्रसिद्ध यज्ञकर्ता और गरुड़ के पुत्र का भी यही नाम है।

हे अग्ने! हे सोम! तुम में एक मातरिश्वा क्षितिज से लाये, दूसरे को श्येन पक्षी पर्वत के उत्तर से लाया। तुम श्लोकों से वृद्धि करने वालों ने संसार को अनुष्ठान के लिए विशाल किया।

Hey Agni & Som Dev! Matrishva brought Agni (here it is just fire, not the demigod Agni) from the sky and the Som (the herb used for extracting Somras) was brought by Shyen-a bird from the cliff of northern mountains for conducting Yagy. You enlarged-expanded the universe with the help of rituals, Shloks, Strotr etc. Its akin to increasing the community of ritualists, the person performing Yagy, Hawan, Agnihotr etc.

अग्नीषोमा हविषः प्रस्थितस्य वीतं हर्यतं वृषणा जुषेथाम्। 

सुशर्माणा स्ववसा हि भूतमथा धत्तं यजमानाय शं योः॥

हे अग्नि और सोम! प्रदत्त अन्न भक्षण करके; हमारे ऊपर अनुग्रह करें। अभीष्टवर्षी, हमारी सेवा ग्रहण करें। हमारे लिए सुख प्रद और रक्षण युक्त बनें और यजमान के रोग और भय का विनाश करें।[ऋग्वेद 1.93.7]

हे वीर्यवान अग्नि, सोम! तुम हमारी हवियों को स्वीकार करके हर्षित हो जाओ। श्रेष्ठ सुख से युक्त रक्षा करो। मुझ यजमान के रोगों को दूर कर शक्ति दो।

Hey Agni & Som Dev! Obelise us by accepting our offerings in the form of food & eatables. Accept our services and become pleasant and protecting to us, eliminating ailments-diseases & fear. 

यो अग्नीषोमा हविषा सपर्याद्देवद्रीचा मनसा यो घृतेन। 

तस्य व्रतं रक्षतं पातमंहसो विशे जनाय महि शर्म यच्छतम्॥

हे अग्नि और सोम! जो यजमान देव परायण हृदय से हव्य अर्थात् घृत द्वारा अग्नि और सोम की पूजा करता है, उसके व्रत की रक्षा करें। उसे पाप से बचावें तथा उस यज्ञ में लगे हुए व्यक्ति को प्रभूत सुख प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.8]

हे अग्नि और सोम! जो देवताओं में मन लगाने वाला घृत, हवि से तुमको पूजता है, उसकी रक्षा करो। उसे पाप से बचाओ और उसके परिजनों को शरणागत करो।

Hey Agni & Som Dev! Protect the devotee & his endeavours, who make offerings in the Yagy for you. Protect him from sins-wickedness and grant him sufficient commodities to survive granting him shelter along with his relatives. 

अग्नीषोमा सवेदसा सहूती वनतं गिरः। 

सं देवत्रा बभूवथुः॥

हे अग्नि और सोम! आप सारे देवों में प्रशंसनीय, समान धन युक्त और एकत्र आह्वान योग्य हैं। आप हमारी प्रार्थना श्रवण करो।[ऋग्वेद 1.93.9]

हे अग्नि और सोम! आप दोनों देव तत्व से परिपूर्ण हो। हमारी वन्दनाओं को स्वीकार करो।Hey Agni & Som Dev! You are appreciated-honoured by the demigods-deities. Accept our prayers-worship.

अग्नीषोमावनेन वां यो वां घृतेन दाशति। तस्मै दीदयतं बृहत्॥हे अग्नि और सोम! जो आपको घृत प्रदान करे, उसे प्रभूत धन प्रदान करें।[ऋग्वेद 1.93.10]

हे अग्नि और सोम! लिए घृत से परिपूर्ण हवि दे, उसके लिए तुम जाज्वल्यवान बनो।

Hey Agni & Som Dev! Grant sufficient money-riches to the one who offer Ghee-clarified butter in the Yagy for your sake. 

अग्नीषोमाविमानि नो युवं हव्या जुजोषतम्। 

आ यातमुप नः सचा॥

हे अग्नि और सोम! हमारा यह हव्य ग्रहण करें और एक साथ यहाँ पधारें।[ऋग्वेद 1.93.11]

हे अग्ने! हे सोम! तुम दोनों हमारी हवियों को स्वीकार करो। हमको प्राप्त होओ। Hey Agni & Som Dev! Accept our offerings and come here at the site of the Yagy to obelise us.

अग्नीषोसा पिपृतमर्वतो न आ प्यायन्तामुखिया हव्यसूदः। 

अस्मे बलानि मघवत्सु धत्तं कृणुतं नो अध्वरं श्रुष्टिमन्तम्॥

हे अग्नि और सोम! हमारे अश्वों की रक्षा करें। हमारी क्षीर आदि हव्य की उत्पादिका गायें वर्द्धित हों। हम धनशाली हों; हमें बल प्रदान करें। हमारा यज्ञ धनयुक्त हो।[ऋग्वेद 1.93.12] 

हे अग्ने! हे सोम! तुम दोनों हमारे अश्वों को पराक्रम दो। हवि उत्पन्न करने वाली हमारी धेनुएँ वृद्धि को प्राप्त हों। तुम दोनों हम धनवानों को ऐश्वर्य दो। हमारे यज्ञ को सुखकारी बनाओ।

Hey Agni & Som Dev! Make our horses strong and increase our lot-folk of cows who produce offerings for conducting the Yagy. Both of you grant us riches and make our Yagy blissful to us.

ऋग्वेद संहिता, द्वितीय मण्डल सूक्त (40) :: ऋषि :- गृत्समद, भार्गव, शौनक, देवता :- सोम, पूषा, अदिति, छन्द :- त्रिष्टुप।

सोमापूषणा जनना रयीणां जनना दिवो जनना पृथिव्याः।

जातौ विश्वस्य भुवनस्य गोपौ देवा अकृण्वन्नमृतस्य नाभिम्

आप धन, द्युलोक और पृथ्वी के पिता है। जन्म के अनन्तर ही आप सारे संसार के रक्षक हुए हैं। देवों ने आपको अमृत का केन्द्र बनाया है।[ऋग्वेद 2.40.1]

तुम धन, अम्बर, और धरा के पिता हो। जन्म लेने के बाद ही तुम संसार के रक्षक बन गये। देवताओं ने तुम्हें अमरत्व प्रदान करने वाला बनाया।

You are the father of the heavens, wealth and the earth. You turned into the protector of the universe soon after your birth. The demigods-deities have made you the centre of nectar, elixir, ambrosia, Amrat.

इमौ देवौ जायमानौ जुषन्तेमौ तमांसि गूहतामजुष्टा। 

आभ्यामिन्द्रः पक्वमामास्वन्तः सोमापूषभ्यां जनदुत्रियासु

जन्मते ही द्युतिमान् सोम और पूषा की देवों ने सेवा की। ये दोनों अप्रिय अन्धकार का विनाश करते हैं। इनके साथ इन्द्र देव तरुणी, धेनुओं के अधः प्रदेश में पक्व दुग्ध उत्पन्न करते हैं।[ऋग्वेद 2.40.2]

तेजस्वी सोम और पूषा के जन्म लेते ही देवों ने उनकी सेवा की। इन दोनों ने अहितकर अंधकार को मिटाया। इनकी सहायता से इन्द्र युवती धेनुओं के निम्नवत हिस्से वाले भाग में दुग्ध को रचित करते हैं।

The demigods-deities served bright Som-Moon and Pusha as soon as they took birth. Indr Dev evolved milk in the udder of the cows.

सोमापूषणा रजसो विमानं सप्तचक्रं रथमविश्वमिन्वम्। 

विषूवृतं मनसा युज्यमानं तं जिन्वथो वृषणा पञ्चरश्मिम्

हे अभीष्ट वर्षी सोम और पूषा! आप संसार के विभाजक, सप्त चक्र (सात ऋतु, मलमास लेकर) वाले संसार के लिए अविभाज्य, सर्वत्र वर्तमान और पंच रश्मि (पाँच ऋतू, हेमन्त और शीत को एक में करके) वाले हैं। इच्छा उत्पन्न होते ही योजित रथ हमारे सामने प्रेरित करते हैं।[ऋग्वेद 2.40.3]

इच्छित वर्षों में सोम और पूषा! तुमने संसार का विभाजन किया, तुम मल मास रहित सातों ऋतुओं से युक्त संसार के लिए पांच किरणों से युक्त हो। कामना करते ही अपना जाता हुआ रथ हमारे सम्मुख लाते हो।

Accomplishment fulfilling Som & Pusha! You divide the universe-year in seven cycles i.e., seasons and join the five seasons with Hemant and winter. Your charoite come to us as soon we desire.

In general we observe 4 seasons but in reality they are 6 in number. Though there are 12 months in a year according to ancient Hindu calendars and yet the 13th month is added for correction, since lunar mass varies considerably in number of days from 27 to 31. 

Please refer to ::  ANCIENT HINDU CALENDAR  काल गणना santoshkipathshala.blogspot.com

दिव्य १ न्यः सदनं चक्र उच्चा पृथिव्यामन्यो अध्यन्तरिक्षे। 

तावस्मभ्यं पुरुवारं पुरुक्षं रायस्पोषं वि ष्यतां नाभिमस्मे

आप में से एक जन (पूषा) उन्नत द्युलोक में रहते हैं। दूसरे (सोम) औषधि रूप से पृथ्वी  और चन्द्र रूप से अन्तरिक्ष में रहते हैं। आप दोनों अनेक लोगों में वरणीय, बहुकीर्तिशाली हमारे भाग का कारण और पशु-रूप धन हमें प्रदान करें।[ऋग्वेद 2.40.4]

सोम पूषा औषधि रूप से पृथ्वी पर तथा चन्द्रमा रूप से उन्नतशील अम्बर में निवास करते हैं। तुम दोनों प्रशंसा योग्य, वरण करने के योग्य, सुन्दर पशु धन प्रदान करो।One of you, Pusha resides-lives in the heaven and the second i.e., Som lives over the earth in the form of medicines (Ayur Vedic Medicines herbs). Som lives in space as a material object-satellite of earth. Both of you are appreciable & acceptable to most of the people. Grant our share of riches in the form of cattle. 

विश्वान्यन्यो भुवना जजान विश्वमन्यो अभिचक्षाण एति। 

सोमापूषणाववतं धियं मे युवाभ्यां विश्वाः पृतना जयेम

हे सोम और पूषा! आपमें से एक (सोम) ने सारे भूतों को उत्पन्न किया। दूसरे (पूषा) सारे संसार का पर्यवेक्षण करते हैं। हे सोम और पूषा! आप हमारे कर्म की रक्षा करें। आपकी सहायता से हम शत्रु सेना पर विजय प्राप्त करें।[ऋग्वेद 2.40.5]

हे सोम और पूजन! तुमने समस्त भूतों को प्रकट किया। पूषा समस्त संसार को देखते हैं। तुम दोनों हमारे कार्यों के रक्षक हो। तुम्हारी शक्ति से हम शत्रु सेना को विजय कर लें। 

Hey Som & Pusha! Som is the creator of all that which has been perished-past. Pusha observes the universe. Hey Som & Pusha! Let both of you become the protector of our endeavours-duty. We should win the enemy with your help. 

धियं पूषा जिन्वतु विश्वमिन्वो रयिं सोमो रयिपतिर्दधातु। 

अवतु देव्यदितिरनर्वा बृहद्वदेम विदथे सुवीराः

संसार को प्रसन्नता देने वाले पूषा हमारे कर्म से तृप्ति प्राप्त करें। धनपति सोम हमें धन प्रदान करें। द्युतिमती और शत्रु रहिता अदिति हमारी रक्षा करें। हम सुसंतति युक्त होकर यज्ञ में आपका यशोगान करें।[ऋग्वेद 2.40.6]

संसार को सुख प्रदान करने वाले पूषा हमारे कर्म से संतुष्ट हों। धन से सम्पन्न सोम हमको धन दें। तेजस्विनी, अदिति शत्रुओं से हमारी रक्षा करें। हम पुत्र और पौत्रों से युक्त, यज्ञ में अधिक श्लोक पाठ करेंगे।

Let Pusha who grant happiness-pleasure to the whole world be satisfied with our endeavours-deeds. Let-wealthy Som grant us riches. Let glorious-bright Aditi having no enemy, protect us. We should sing your glory blessed with sons and grandsons. 

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MANTROPCHAR (1) DIVINE CURE मंत्रोपचार

MANTROPCHAR (1) DIVINE CURE
मंत्रोपचार

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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 ॐ गं गणपतये नम:।
अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

Mantr (मन्त्र) are Sanskrat stanzas-rhymes which have special effect on us and the environment. These always bring peace, prosperity and wellness to all. If recited with the proper pronunciation a Shlok-Mantr can perform miracles. Scriptures have described specific Mantr which can cure diseases which are declared incurable. There are Mantr for healing, relief, mental peace, harmony, control of diseases, famine, floods, rains, soothing effect over the environment, repulsion of evil etc.
These are the coded verses which opens the power centres hidden in an individual to over his troubles, tensions, problems, provide performed with care, austerity, devotions with proper procedure under the supervision of some trained, qualified priest, Don’t link it with religion, if one wish to seek his welfare and blessings.

One, desirous of having intelligence, wisdom, knowledge, Riddhi, Siddhi and fulfilment of all desires, should pray, meditate Ganesh Ji Maha Raj respectfully, with faith, concentration and devotion. One often comes across difficulties in life, due to the deeds of present or previous lives. Ganpati is the incarnation of Bhagwan Shri Hari Vishnu (God), who is worshipped  before one starts with the prayers, auspicious occasion,  new venture, marriage, construction of house or else. Om Ganganpatye Namah (or Om Ganganpatye Swaha) is the Mantr, recitation of which regularly 108 or 1008 times, clear, removes all hurdles in the way of auspicious-pious deeds, ventures or the deeds undertaken by the devotee. One must fresh himself, under take to have only vegetarian meals, no smoking, alcohol, drugs, narcotics, observe fast and recite this Mantr, facing east in the morning and north in the evening with concentration and asceticism.

Recitation of  any of these Mantr 5,00,000 times or more, ascertain success in the desired field.

Procedure-Methodology :: The devotee should sit comfortably over cushion, mattress (Munj-Chatai), skin of black deer, with crossed legs, in front of the image (photograph, picture, sketch), statue of the deity having placed a Lota, Kalsh filled with water, made up of copper, brass, silver, gold or earthen. Dhoop, Agarbatti-incense sticks, should be ignited and suitably placed in front by the desirous. One should be clad in washed cloths. Flow of fast air should be avoided. These performances should be avoided in  high speed wind, typhoon, cyclone. Extreme care should be taken to pronounce the Shlok, Mantr correctly, with rhythm. One should adhere to asceticism. The water in the Kalsh may be added with Ganga Jal, milk, honey, sugar, Tulsi leaves, pure ghee, curd, Kapoor-camphor etc. Help of learned Brahman Priest  may be obtained. Jal in the Kalsh has to be poured, offered to Sury Bhagwan in the morning. A Tulsi plant may be placed in east direction with a Shiv ling in it, for offering water.
Caution :: Recitation of these Mantr with evil designs, ulterior motives, yield negative results and is counter productive.

गणपति सिद्ध मंत्र :: गणेश  महाराज के सिद्ध मंत्र  लम्बोदर के प्रमुख चतुर्वर्ण हैं। सर्वत्र पूज्य सिंदूर वर्ण के हैं। इनका स्वरूप व फल सभी प्रकार के शुभ व मंगल भक्तों को प्रदान करने वाला है। नीलवर्ण उच्छिष्ट गणपति का रूप तांत्रिक क्रिया से संबंधित है। शांति और पुष्टि के लिए श्वेत वर्ण गणपति की आराधना करना चाहिए। शत्रु के नाश व विघ्नों को रोकने के लिए हरिद्रा गणपति की आराधना की जाती है।

गणपतिजी का बीज मंत्र “गं” है। इनसे युक्त मंत्र :- “ॐ गं गणपतये नमः” का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।

षडाक्षर मंत्र ::

“ॐ वक्रतुंडाय हुम्‌”

आर्थिक प्रगति व समृद्धि के लिए उपरोक्त मत्रं का प्रतिदिन नहा धोकर 108 बार सस्वर जप करें।

उच्छिष्ट गणपति मंत्र ::

“ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा”

किसी के द्वारा अनिष्ट के लिए की गई क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति की साधना करना चाहिए। इनका जप करते समय मुँह में गुड़, लौंग, इलायची, पताशा, ताम्बुल, सुपारी होना चाहिए। यह साधना अक्षय भंडार प्रदान करने वाली है। इसमें पवित्रता-अपवित्रता का विशेष बंधन नहीं है।

विघ्नराज आराधना मंत्र ::

“गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:”

आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए उपरोक्त मत्रं का प्रतिदिन नहा धोकर 108 बार सस्वर जप करें।

हेरम्ब गणपति मंत्र ::

“ॐ गं नमः”

विघ्न को दूर करके धन व आत्मबल की प्राप्ति के लिए उपरोक्त मत्रं का प्रतिदिन नहा धोकर 108 बार सस्वर जप करें।

लक्ष्मी विनायक मंत्र ::

“ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं में वशमानय स्वाहा”

रोजगार की प्राप्ति व आर्थिक वृद्धि के लिए उपरोक्त मत्रं का प्रतिदिन नहा धोकर 108 बार सस्वर जप करें।

विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने वालों को त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह व विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने, शीघ्र विवाह व अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति के लिये निम्न त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप प्रतिदिन नहा धोकर 108 बार सस्वर जप करें।

त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र :: 

“ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा”

इन मंत्रों के अतिरिक्त गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणेशकवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र, मयूरेश स्तोत्र, गणेश चालीसा का पाठ करने से गणेश जी महाराज की कृपा प्राप्त होती है।

ॐ गं गणपत्ये नम:। ॐ गं गणपत्ये स्वाहा:।

Om Gan Ganpatye Namh.  Om Gan Ganpatye Swaha.

ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसम्स्प्रभः।

निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

Vakr Tund Maha Kay Sury Koti Sam Prabah, Nir Vighnam Kuru Me Dev Sarv Karyeshu Savda.
Hey Bhagwan Ganesh, bearing large body, the curved trunk, who shines like a million suns, may you always make my work free from obstacles.
गणपति मंत्र GANPATI MANTR ::

ॐ गं गणपत्ये नम:। Om Gan Ganpatye Nameh.

ॐ गं गणपत्ये स्वाहा:। Om Gan Ganpatye Swaha.

वक़तुण्ड महाकाय कोटि सूर्य समप्रभा: निर्विघ्नं कुरुमेदेव सर्वाकार्येसु सर्वदा। Vakr Tund Mahakay Koti Sury Samprabh: Nirvighnam Kuru May Dev Sarv  Karyeshu Sarvda.

गजाननं  भूतगणादि  सेवितं, कपिथ्य जम्बू फल चारू भक्षणम्।

उमासुतं शोक विनाश कारकं नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥

Gajanan Bhoot Ganadi Sawitam, Kapithy Jumboo Fal Charu Bhakshnam,

Umasutam Shok Vinash Karakam Namami Vighneshwer Pad Pankjam.

This is recited before starting any auspicious work to avoid obstacles.

गणेश्वरकल्प मन्त्र ::

ॐ गाँ गीं गूँ गैं गौं ग:।

नया मकान खरीदना :: निम्न मंत्रों से युक्त विघ्नहर्ता भगवान गणपति की प्रतिमा घर में स्थापित करने से आर्थिक तंगी-परेशानी, कलह, विघ्न, अशांति, क्लेश, तनाव, मन-मुटाव, बच्चों में अशांति, मानसिक संताप आदि का नाश होता है।
(1). बीज मंत्र “गं” का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है, (2). षडाक्षर मंत्र “ॐ गं गणपतये नमः” का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि प्रदायक है, (3). ॐ श्री विघ्नेश्वार्य नम:, (4). ऊं श्री गणेशाय नम:, (5). निर्हन्याय नमः। अविनाय नमः।
गणपति की प्रतिमा के साथ श्रीपतये नमः, रत्नसिंहासनाय नमः, ममिकुंडलमंडिताय नमः, महालक्ष्मी प्रियतमाय नमः, सिद्घ लक्ष्मी मनोरप्राय नमः लक्षाधीश प्रियाय नमः, कोटिधीश्वराय नमः जैसे मंत्रों का सम्पुट होता है। गणपति की मूर्ति की पीठ दक्षिण दिशा में रखें।

MORNING-EVENING SANDHYA PRAYERS :: Following three Mantr are recited in the morning, as a part of prayers to seek the blessings of the Almighty to get the desired.

(1). Twmev Mata Ch Pita Twmev, Twmev Bandhusch Sakha Twmev;
Twmev Vidyasch Dravinam Twamev, Twamev Sarwam Mam Dev Dev.
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्याश्च द्रविनम त्वमेव ,त्वमेव सर्वं मम देव देव॥

(2). Kragre Vaste Lakshmi: Karmule Saraswati. Kar Madhyetu Govindh Prabhate Kardarshnam.

कराग्रे वस्ते लक्ष्मी: करमूले सरस्वती। 
कर मध्येतु गोविन्द :प्रभाते कर दर्शनम॥

शान्ति मन्त्र:: 

ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव यद् भद्रं तन्न आ सुव॥

ॐ गणानां त्वा गणपति ग्वँग् हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति ग्वँग् हवामहे निधीनां त्वा निधीपति ग्वँग् हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्॥

ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन।

ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्॥

स्वस्ति-वाचन आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः। 

देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे-दिवे॥ 

देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानां रातिरभि नो नि वर्तताम्। 

देवानां सख्यमुप सेदिमा वयं देवा न आयुः प्र तिरन्तु जीवसे॥ 

तान् पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम्। 

अर्यमणं वरुणं सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्॥ 

तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत् पिता द्यौः। 

तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम्॥ 

तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम्। 

पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये॥ 

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पुषा विश्ववेदाः। 

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥ 

पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभंयावानो विदथेषु जग्मयः। 

अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह॥ 

भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। 

स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिर्व्यशेम देवहितं यदायुः॥ 

शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम। 

पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः॥ 

अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः। 

विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम॥[ऋक॰1.89.1-10]

कल्याणकारक, न दबनेवाले, पराभूत न होने वाले, उच्चता को पहुँचानेवाले शुभकर्म चारों ओर से हमारे पास आयें। प्रगति को न रोकने वाले, प्रतिदिन सुरक्षा करने वाले देव हमारा सदा संवर्धन करने वाले हों। सरल मार्ग से जाने वाले देवों की कल्याणकारक सुबुद्धि तथा देवों की उदारता हमें प्राप्त होती रहे। हम देवों की मित्रता प्राप्त करें, देव हमें दीर्घ आयु हमारे दीर्घ जीवन के लिये दें। उन देवों को प्राचीन मन्त्रों से हम बुलाते हैं। भग, मित्र, अदिति, दक्ष, विश्वास योग्य मरुतों के गण, अर्यमा, वरुण, सोम, अश्विनीकुमार, भाग्य युक्त सरस्वती हमें सुख दें। वायु उस सुखदायी औषध को हमारे पास बहायें। माता भूमि तथा पिता द्युलोक उस औषध को हमें दें। सोमरस निकालने वाले सुखकारी पत्थर वह औषध हमें दें। हे बुद्धिमान् अश्विदेवो तुम वह हमारा भाषण सुनो। स्थावर और जंगम के अधिपति बुद्धि को प्रेरणा देने वाले उस ईश्वर को हम अपनी सुरक्षा के लिये बुलाते हैं। इससे वह पोषणकर्ता देव हमारे ऐश्वर्य की समृद्धि करने वाला तथा सुरक्षा करने वाला हो, वह अपराजित देव हमारा कल्याण करे और संरक्षक हो। बहुत यशस्वी इन्द्र हमारा कल्याण करे, सर्वज्ञ पूषा हमारा कल्याण करे। जिसका रथचक्र अप्रतिहत चलता है, वह तार्क्ष्य हमारा कल्याण करे, बृहस्पति हमारा कल्याण करे। धब्बों वाले घोड़ों से युक्त, भूमि को माता मानने वाले, शुभ कर्म करने के लिये जाने वाले, युद्धों में पहुँचने वाले, अग्नि के समान तेजस्वी जिह्वावाले, मननशील, सूर्य के समान तेजस्वी मरुत् रुपी सब देव हमारे यहाँ अपनी सुरक्षा की शक्ति के साथ आयें। हे देवो कानों से हम कल्याणकारक भाषण सुनें। हे यज्ञ के योग्य देवों आँखों से हम कल्याणकारक वस्तु देखें। स्थिर सुदृढ़ अवयवों से युक्त शरीरों से हम तुम्हारी स्तुति करते हुए, जितनी हमारी आयु है, वहाँ तक हम देवों का हित ही करें। हे देवो सौ वर्ष तक ही हमारे आयुष्य की मर्यादा है, उसमें भी हमारे शरीरों का बुढ़ापा तुमने किया है तथा आज जो पुत्र हैं, वे ही आगे पिता होनेवाले हैं, सब देव, पञ्चजन (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निषाद), जो बन चुका है और जो बनने वाला है, वह सब अदिति ही है, अर्थात् यही शाश्चत सत्य है, जिसके तत्त्वदर्शन से परम कल्याण होता है।

द्यौः शान्तिरन्तरिक्ष ग्वँग् शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।

वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः सर्व ग्वँग् शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि॥[यजुर्वेद 36.17]

 यतो यत: समीहसे ततो नो अभयं कुरु। 

शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः  

सुशान्तिर्भवतु। 

ग्रह शांति के लिये नाम के अनुरूप मंत्र :: अपने नाम के प्रथम अक्षर से राशि को देखना चाहिये।

 राशि  नामाक्षर  मंत्र
मेष चू चे चो ला ली लू ले लो अ ॐ ऐं क्लीं सोः
 वृषभ  इ उ ए ओ वा वी वू वे वो ॐ ऐं क्लीं श्रीं
मिथुन का की कू घ ङ छ के को हा  ॐ क्लीं ऐं सोः
कर्क  ही हू हे हो डा डी डू डे डो ॐ ऐं क्लीं श्रीं
 सिंह मा मी मू मे मो टा टी टू टे ॐ ह्रीं श्रीं सोः
कन्या टो पा पी पू ष ण ठ पे पो ॐ क्लीं ऐं सोः
तुला रा री रू रे रो ता ती तू ते ॐ ऐं क्लीं श्रीं
 वृश्चिक तो ना नी नू ने नो या यी यू ॐ ऐं क्लीं सोः
धनु ये यो भा भी भू धा फा ढा भे ॐ ह्रीं क्लीं सोः
 मकर भो जा जी खी खू खे खो गा गी ॐ ऐं क्लीं श्रीं
कुंभ गू गे गो सा सी सू से सौ दा ॐ ऐं क्लीं श्रीं
मीन दी दू थ झ ञ दे दो चा ची ॐ ह्रीं क्लीं सोः

नवग्रह शान्ति मंत्र NAV GRAH SHANTI MANTR :: सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति चाहता है तो उसे नीचे लिखे नवग्रह मंत्रों का जाप करने से हर तरह की परेशानियों से मुक्ति मिल सकती है।

सूर्य मंत्र :: “ऊँ घृणि सूर्याय नम:”।

चन्द्र मंत्र :: “ऊँ सों सोमाय नम:”।

मंगल मंत्र :: “ऊँ अंगारकाय नम:”।

बुध मंत्र :: “ऊँ बुं बुधाय नम:”।

गुरु मंत्र :: “ऊँ बृं बृहस्पत्ये नम:”।

शुक्र मंत्र :: “ऊँ शुं शुक्राय नम:”।

शनि मंत्र :: “ऊँ शं शनैश्चराय नम:”।

राहु मंत्र :: “ऊँ रां राहवे नम:”।

राहु मंत्र :: “ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:”

नवग्रह शान्ति बीज मंत्र :: ब्रह्मा मुरारी  त्रिपुरांतकारी भानु शशि भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्र: शनि राहु केतव:, सर्वे ग्रहा शान्ति करा भवन्तु।
Brahma Murari Tripurantkari Bhanu Shashi Bhumi Suto Budhshcha Gurushcha Shukr Shani Rahu Ketvh,  Sarve Graha Shanti Kara Bhawntu.Let Brahma, Vishnu (Murari) and Shiv (Tri Pu Rant Kari), the Sun (Bhanu), the Moon (Shashi), Mars (Bhumi Sut the son of earth), Buddh, Guru (teacher) Shukr, Shani and Ketu make the morning auspicious for me.

This is recited in the morning to make the day auspicious and fruitful.  

SHANTI MANTR शान्ति मंत्र ::

ॐ द्यौ: शांति अंतरिक्ष शांति पृथिवी शांति आपः शांति औषधय: शांति वनस्पतय: शांति विश्र्वेदेवा शांति सर्व शांति ब्रह्म शांतिरेव शांति  सामा शांति शान्तिरेधि: विश्वानि देव सवितुर्दुरितानि परासुव। यद् भद्रं तन्न आसुव। ॐ शांति: शांति: शांति: ॐ॥

Om Dhyo Shanti,  Antriksh Shanti,  Prathvi Shanti,  Apah Shanti,  Oushadhay Shanti, Vanaspaty Shanti,  Vishve Deva Shanti, Sarv Shanti, Shanti Rev Shanti,  Sa Ma Shanti Redhi, Vishwani Dev Sviturduritani Prasuv. Yad Bhadrantann Asuv.  Om Shanti Shanti Shanti Om.

हे परमात्मा स्वरुप शांति कीजिये, वायु में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों और शांति हो, हे परमपिता परमेश्वर शांति हो, शांति हो, शांति हो।

Let the Almighty bless the mankind with peace (solace & tranquillity). Let the space be quite, the earth be quite. The air, water, medicines, the universe, demigods-deities, the creator-Brahm be quite. All of use be at peace. the God be quite. Let the entire world enjoy a congenital (mutually beneficial) environment. All of us should live happily.::

One who is suffering from mental tensions, agony, failure in endeavours, ill health, troubled married life, should recite this Mantr, every day 108 times.

For protection from death recite the following Mantr 108 times after taking bath facing North, East of North-East ::

मृत्यु-रोग, शांति-मन्त्र :: 

ॐ ह्रूमं हं स:।

मृत संजीवनी मन्त्र ::

 ॐ हं स: हूं हूं स:,
ॐ  ह: सौ:,
ॐ हूं स:,
ॐ जूं स:,
ॐ जूं स: वषट। 

महामृत्युंजय मन्त्र ::

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌॥ 

कूष्माण्ड मंत्र ::

कूष्माण्डैर्वापि जुहुयाद् घृतमग्नौ यथाविधि। 
उदित्यृचा वा वारुण्या तृचेनाब्दैवतेन वा॥[मनु स्मृति 8.106]

कृष्माण्ड मंत्रों से यथाविधि अग्नि में घृत से हवन करे। “किंया उदुत्तमं” इस वरुण मन्त्र से जल देवता की तीन ऋचाओं से हवन करे।

“ॐ कूष्माण्डायै नम:” का जाप मृत्युभय दूर करने के लिये किया जाता है। महामृत्युंजय मंत्र में उर्वारिक शब्द तोरी, घीया, खीरे जैसी वनस्पतियों के लिये आया है। इसका जाप करने से रोग, शोक, जरा-मृत्युभय दूर होता है।

One should recite “Krashmand Mantr” while offering holy sacrifices in holy fire. “Kinya Uduttamam” is a rhyme devoted to Varun Dev-deity of water, which has to be recited trice while performing Yagy, Hawan, Agnihotr-holy sacrifices in fire.

Kushmand Mantrs reduces the fear of diseases, ageing, sorrow-pain and death. Kushmand is a word used for gourds in Maha Mratunjay Mantr devoted to Bhagwan Shiv i.e., Maha Kal.

कूष्माण्ड :: gourd, cucurbit

राशि का मूल मंत्र :: धन, यश और समृद्धि लिये अपनी राशि के अनुकूल मंत्र का जाप करें। सामान्य सहज भाव से स्नान के पश्चात पूजा गृह या घर में शुद्ध स्थान का चयन कर प्रतिदिन धूप-दीप के पश्चात ऊन या कुशासन पर बैठें एवं अपनी शक्ति अनुरूप एक, तीन या पाँच माला का जाप करें।

मेष ॐ ऐं क्लीं सौं:
 वृषभ  ॐ ऐं क्लीं श्रीं
 मिथुन  ॐ क्लीं ऐं सौं:
 कर्क  ॐ ऐं क्लीं श्रीं
 सिंह  ॐ ह्रीं श्रीं सौं:
 कन्या  ॐ श्रीं ऐं सौं:
 तुला  ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं
 वृश्चिक  ॐ ऐं क्लीं सौं:
 धनु  ॐ ह्रीं क्लीं सौं:
 मकर  ॐ ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं सौं:
 कुंभ  ॐ ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं
 मीन  ॐ ह्रीं क्लीं सौं:

SANDHYA-EVENING PRAYER ::

शुभं कुरुत्वं कल्याणं आरोग्यं धनसंपदः।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिनमोऽस्तु ते॥

दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योति जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥

भो दीप ब्रह्मारूपस्त्वं ज्योतिषां प्रभुरव्ययः।
आरोग्यं देहि पुत्रांश्च मतिं स्वच्छां हि मे सदा॥

स्वेरस्तं समारभ्य यावत्सूर्योदयो भवेत्।
यस्य तिष्ठेद्गृहे दीपस्तस्य नास्ति दरिद्रता॥

Shubham Kurutvam Kalyanam Arogyam Dhan Sampdah, Shatru Buddhi Vinashay Deep Jyoti Namo Astu Te.

Deep Jyotih Par Brahm Deep Jyoti Janardnah, Deepo Hartu Me Papam Sandhya Deep Namo Astu Te.

Bho Deep Brahma Rupstwam, Jyotisham Prabhurvyyh Arogyam Dehi Putranshch Matim Swachchham Hi Me Sada.

Swerastam Samarbhay Yavatsuryodayo Bhavet, Yasy Tishthedgrahe Deepstasy Nasti Daridrta.

SANDHYA MANTR :: This is recited while lighting a candle (दीप, Deep) in the evening.

ॐ ऐं वाग्देव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदया।

ॐ नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि;

सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तुते।

ॐ काली काली महाकाली पाप नाशिनी;

काली कराली निष्क्रान्ते कालिके तवन्नामोSस्तुते।
For purification of body, mind and soul, eternal peace, solace and tranquillity and attainment of Salvation, recitation of these Mantr is helpful:
(1).  ॐ नम: शिवाय। Om Namah Shivay.
(2). ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।  Om Namo Bhagwate Vasudevay.
(3). कर्पूर गौरं करुणावतारम्, संसारसारं भुजगेंद्र हारम।
सदा बसंतम्  ह्र्द्यारविन्दे, भवम्  भवानी सहितम् नमामि॥
Karpur Gouram Karunavtaram, Sansarsaram Bhujgendr Haram;
Sada Basantam Hradyarvinde, Bhawam Bhawami Sahitam Namami.
(4). मंगलम्  भगवान  विष्णु, मंगलम् गरुड़ ध्वज।
मंगलम् पुंड्रिरिकाक्ष, मंगलाय तनु  हरि:॥
Manglam Bhagwan Vishnu, Manglam Garud Dhwaj,
Manglam Pundrikaksh, Manglay Tanu Hari.
(5). शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं;

विश्र्वाधारं गगन सदॄशमं मेघ वर्णं शुभांगम।
लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभिर्ध्यान गम्यं;

वंदे विष्णु भवभयहरं सर्व लोकैकनाथं॥
Shantakaram Bhujagshaynam Padmnabham Suresham,
Vishwadharam Gagan Sdrasham Megh Varnam Shubhangam.
Laxmi Kantam Kamal Nayanam Yogibhirdhyan Gamyam,
Vande Vishnu Bhavbhayharam Sarvloknatham.
(6). सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वादी साधिके।

शरण्ये त्रिअम्बिके गौरी नारायणी  नमोस्तुते॥
Sarv Mangal Mangalye Shive Sarvadi Sadhike,
Sharanye Triambike Gauri Narayani Namostute.

गायत्री मन्त्र ::

पूर्वां सन्ध्यां जपंस्तिष्ठेत् सावित्रीमार्कदर्शनात्। 

पश्चिमां तु समासीन: सम्यगृक्षविभावनात्॥[मनु स्मृति 2.101]

प्रातः संध्या में पूर्व की ओर मुँह करके खड़े होकर सूर्य दर्शन पर्यन्त सावित्री का जप करे। संध्याकालीन संध्या में पश्चिम की ओर मुँह करके बैठ कर जब तक तारे न दिखाई पड़ें तब तक गायत्री का जप करे।

One should stand facing east in the morning and recite the Savitri Mantr till the Sun rises and in the evening he should sit facing west and recite the Gayatri Mantr till the stars-constellations  appear.

This process begins quite early in the morning in the Brahm Muhurt, around 4 AM during summers and 6 AM during winters.

पूर्वां संध्यां जपन्तिष्ठन्नैशमेनो व्यपोहति। 

पश्चिमां तु समासीनो मलं  हन्ति दिवाकृतम्॥[मनु स्मृति 2.102]

प्रातः संध्या में खड़े होकर (गायत्री) जप करने वाला रात के पाप को नष्ट करता है और साँय-सँध्या के समय बैठकर जप करने वाला दिन के पाप को नष्ट करता है।

Recitation of the Gayatri Mantr in the morning while standing removes the sins-guilt committed at night, while the recitation of the Mantr while sting in the evening removes the sins of the day.

अपां समीपे नियतो नैत्यकं विधिमास्थितः। 

सावित्रीमप्यधीयीत  गत्वाSरण्यं समाहितः॥[मनु स्मृति 2.104]

निर्जन स्थान में जल के समीप जाकर अपनी नित्य क्रियाओं को कर, स्थिर चित्त होकर, गायत्री का जप करना चाहिए।

One should move to an isolate place near a water body, pond, lake, river & perform the daily routine of freshness and then he should recite the Gayatri Mantr with full concentration-devotion.

ॐ भुर्भुवः स्वः तत्सोवितुवरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्॥

Om Bhur Bhuvah Svah Tat Savitur Varenyam; Bhargo Devasy Dhee Mahi Dhiyo Yonah Prachodyat.

O God! YOU are the giver of life, the remover of pain and sorrow, the bestower of happiness; O Creator of the Universe!, may we receive YOUR supreme, sin destroying light; may YOU guide our intellect in the right direction.

Reciting or listening this Mantr, 3 to 108 times in early morning is extremely beneficial.

ब्रह्मा गायत्री BRAHMA GAYATRI ::

ॐ चतुर्मुखाय  विद्महे, हंसारूढाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।

Om Chaturmukhay Vidhmahe, Hansarudhay Dhimahi, Tenno Brahma Prechodyat.

विष्णु गायत्री VISHNU GAYATRI ::

ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात्।

Om Naraynay Vidmahe, Vasudevay Dheemahi Tenno Vishnuh Prechodyat.

रूद्र गायत्री RUDR GAYATRI ::

ॐ  पंच वाक्याय विद्महे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।

Om Punch Vakyay Vidhmahe, Mahadevay Dhimahi Tenno Rudrah Prechodyat.

श्री दुर्गा गायत्री SHRI DURGA GAYATRI ::

ऊँ कात्यायनाय विद्महे कन्यकुमारि धीमहि तन्नो दुर्गिः प्रचोदयात्॥

महामृत्युंजय साधना :: प्रत्यक्षं ज्योतिषं शास्त्रम् अर्थात् ज्योतिष प्रत्यक्ष शास्त्र है। फलित ज्योतिष में महादशा एवं अन्तर्दशा का बड़ा महत्व है। वृहत्पाराशर होराशास्त्र में अनेकानेक दशाओं का वर्णन है। आजकल विंशोत्तरी दशा का प्रचलन है। मारकेश ग्रहों की दशा एवं अन्तर्दशा में महामृत्युंजय प्रयोग फलदायी है।
जन्म, मास, गोचर, अष्टक आदि में ग्रहजन्य पीड़ा के योग, मेलापक में नाड़ी के योग, मेलापक में नाड़ी दोष की स्थिति, शनि की साढ़ेसाती, अढय्या शनि, पनौती (पंचम शनि), राहु-केतु, पीड़ा, भाई का वियोग, मृत्युतुल्य विविध कष्ट, असाध्य रोग, त्रिदोषजन्य महारोग, अपमृत्युभय आदि अनिष्टकारी योगों में महामृत्युंजय प्रयोग रामबाण औषधि है।
शनि की महादशा में शनि तथा राहु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, केतु में केतु तथा गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, रवि की महादशा में रवि की अनिष्टकारी अंतर्दशा, चन्द्र की महादशा में बृहस्पति, शनि, केतु, शुक तथा सूर्य की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, मंगल तथा राहु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, राहु की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, शुक्र की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अन्तर्दशा, मंगल तथा राहु की अन्तर्दशा, गुरु की महादशा में गुरु की अनिष्टकारी अंतर्दशा, बुध की महादशा में मंगल-गुरु तथा शनि की अनिष्टकारी अन्तर्दशा आदि इस प्रकार मारकेश ग्रह की दशा अन्तर्दशा में सविधि मृत्युंजय जप, रुद्राभिषेक एवं शिवार्जन से ग्रहजन्य एवं रोगजन्य अनिष्टकारी बाधाएँ शीघ्र नष्ट होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
उपर्युक्त अनिष्टकारी योगों के साथ ही अभीष्ट सिद्धि, पुत्र प्राप्ति, राजपद प्राप्ति, चुनाव में विजयी होने, मान-सम्मान, धन लाभ, महामारी आदि विभिन्न उपद्रवों, असाध्य एवं त्रिदोषजन्य महारोगादि विभिन्न प्रयोजनों में सविधि प्रमाण सहित महामृत्युंजय जप से मनोकामना पूर्ण होती है।
विभिन्न प्रयोजनों में अनिष्टता के मान से 1 करोड़ 24 लाख, सवा लाख, दस हजार या एक हजार महामृत्युंजय जप करने का विधान उपलब्ध होता है। मंत्र दिखने में जरूर छोटा दिखाई देता है, किन्तु प्रभाव में अत्यंत चमत्कारी है।
देवता मंत्रों के अधीन होते हैं- मंत्रधीनास्तु देवताः। मंत्रों से देवता प्रसन्न होते हैं। मंत्र से अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों का नाश होता है तथा सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता एवं निरुवतादि मंत्र शास्त्रीय ग्रंथों में त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। उक्त मंत्र मृत्युंजय मंत्र के नाम से प्रसिद्ध है।
शिवपुराण में सतीखण्ड में इस मंत्र को ‘सर्वोत्तम’ महामंत्र’ की संज्ञान से विभूषित किया गया है- मृत संजीवनी मंत्रों मम सर्वोत्तम स्मृतः। इस मंत्र को शुक्राचार्य द्वारा आराधित ‘मृतसंजीवनी विद्या’ के नाम से भी जाना जाता है। नारायणणोपनिषद् एवं मंत्र सार में- मृत्युर्विनिर्जितो यस्मात तस्मान्यमृत्युंजय स्मतः अर्थात् मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण इन मंत्र योगों को ‘मृत्युंजय’ कहा जाता है। सामान्यतः मंत्र तीन प्रकार के होते हैं- वैदिक, तांत्रिक, एवं शाबरी। इनमें वैदिक मंत्र शीघ्र फल देने वाले त्र्यम्बक मंत्र भी वैदिक मंत्र हैं।
मृत्युंजय जप, प्रकार एवं प्रयोगविधि का मंत्र महोदधि, मंत्र महार्णव, शारदातिक, मृत्युंजय कल्प एवं तांत्र, तंत्रसार, पुराण आदि धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में विशिष्टता से उल्लेख है। मृत्युंजय मंत्र तीन प्रकार के हैं- पहला मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र। पहला मंत्र तीन व्यह्यति- भूर्भुवः स्वः से सम्पुटित होने के कारण मृत्युंजय, दूसरा ॐ हौं जूं सः (त्रिबीज) और भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) से सम्पुटित होने के कारण ‘मृतसंजीवनी’ तथा उपर्युक्त हौं जूं सः (त्रिबीज) तथा भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) के प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ में ॐ का सम्पुट लगाया जाता है। इसे ही शुक्राचार्य द्वारा आराधित महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।
इस प्रकार वेदोक्त ‘त्र्यम्बकं यजामहे’ मंत्र में ॐ सहित विविध सम्पुट लगने से उपर्युक्त मंत्रों की रचना हुई है।

उपर्युक्त तीन मंत्रों में मृतसंजीवनी मंत्र ::

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः ॐ सः जूं हौं ॐ।

यह मंत्र सर्वाधिक प्रचलित एवं फल देने वाला माना गया है। कुछ लघु मंत्र भी प्रयोग में आते हैं, जैसे-त्र्यक्षरी अर्थात तीन अक्षरों वाला ॐ जूं सः पंचाक्षरी ॐ हौं जूं सः ॐ तथा ॐ जूं सः पालय पालय आदि। ॐ हौं जूं सः पालय पालय सः जूं हौं ॐ। हौं जूं सः पालय पालय सः जूं हौं ॐ।
इस मंत्र के 11 लाख अथवा सवा लाख जप का मृत्युंजय कवच यंत्र के साथ जप करने का विधान भी है। यंत्र को भोजपत्र पर अष्टगंध से लिखकर पुरुष के दाहिने तथा स्त्री के बाएँ हाथ पर बाँधने से असाध्य रोगों से मुक्ति होती है। सर्वप्रथम यंत्र की सविधि विभिन्न पूजा उपचारों से पूजा-अर्चना करना चाहिए, पूजा में विशेष रूप से आंकड़े, एवं धतूरे का फूल, केसरयुक्त, चंदन, बिल्वपत्र एवं बिल्वफल, भांग एवं जायफल का नैवेद्य आदि।
मंत्र जप के पश्चात् सविधि हवन, तर्पण एवं मार्जन करना चाहिए। मंत्र प्रयोग विधि सुयोग्य वैदिक विद्वान आचार्य के आचार्यत्व या मार्गदर्शन में सविधि सम्पन्न हो तभी यथेष्ठ की प्राप्ति होती है, अन्यथा अर्थ का अनर्थ होने की आशंका हो सकती है।
जप विधि में साधक को नित्यकर्म से निवृत्त हो आचमन-प्राणायाम के साथ मस्तक पर केसरयुक्त चंदन के साथ रुद्राक्ष माला धारण कर प्रयोग प्रारंभ करना चाहिए। प्रयोग विधि में मृत्युंजय देवता के सम्मुख पवित्र आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर शरीर शुद्धि कर संकल्प करने का विधान प्रमुख है। संकल्प के साथ विनियोग न्यास एवं ध्यान जप विधि के प्रमुख अंग हैं। मृत्युंजय महादेवों त्राहिमाम् शरणामम्। जन्म-मृत्यु जरारोगैः पीड़ितम् कर्मबंधनैः के ध्यान के साथ जप निवेदन करना चाहिए। अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों से मुक्ति की यह रामबाण महौषधि है।

Recitation or listening of this Mantr, 3 to 108 times in early morning is highly beneficial. This Mantr protects one along with his family, friends, relatives, elders, from accidents and misfortunes of all kinds and has great curative effect over diseases declared incurable.

व्याधि-बीमारी-रोग, संकट, कष्ट, मृत्यु का आभास होने पर मनुष्य को इस मन्त्र का पूरी लग्न-निष्ठां-ईमानदारी के साथ श्रवण, मनन, पाठ करना चाहिए। इसके जप व उपासना के तरीके आवश्यकता के अनुरूप होते हैं। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। मंत्र में दिए अक्षरों की संख्या से इनमें विविधता आती है। स्वयं के लिए निम्न मन्त्रों का जप इसी तरह होगा जबकि किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह जप किया जा रहा हो तो ‘मां’ के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना होगा।

(1). एकाक्षरी मंत्र :-

हौं। 

(2). त्र्यक्षरी मंत्र :-

ॐ जूं सः। 

(3). चतुराक्षरी मंत्र :-

ॐ वं जूं सः। 

(4). नवाक्षरी  मंत्र :-

ॐ जूं सः पालय पालय। 

(5). दशाक्षरी (10) मंत्र :-

ॐ जूं सः मां पालय पालय।

तांत्रिक बीजोक्त मंत्र :: महामृत्युंजय मन्त्र के अलग-अलग रुप हैं। अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी मंत्र का चुनाव करके नियमित रूप से इन मंत्रों का पाठ करना चाहिये। यह मन्त्र महर्षि वशिष्ठ ने हमें प्रदान किया। आचार्य शौनक ने ऋग्विधान में इस मन्त्र का वर्णन किया है। नियम पूर्वक व्रत तथा इस मंत्र द्वारा पायस (खीर, pudding) के हवन से दीर्घ आयु प्राप्त होती है, मृत्यु दूर  है तथा प्रकार सुख प्राप्त होता है। इस मंत्र  के अधिष्ठाता भगवान् शिव हैं। वेदोक्त महामृत्युंजय मंत्र निम्नलिखित है :-

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥[ऋग्वेद 7.59.12]

सुगन्ध युक्त, त्रिनेत्रधारी भगवान् शिव समस्त प्राणियों को भरण-पोषण, पालन-पोषण करने वाले, हमें संसार सागर (मृत्यु-अज्ञान) से उसी प्रकार बन्धन मुक्त करें, जिस प्रकार खीरा अथवा ककड़ी पककर बेल से अलग हो जाती है।

I worship Bhagwan Shiv the three-eyed Supreme deity, who is full of fragrance and who nourishes all beings; may He liberate me from the death (of ignorance), for the sake of immortality (of knowledge and truth), just as the ripe cucumber is severed from its bondage (the creeper).

संजीवनी मंत्र अर्थात्‌ संजीवनी विद्या ::

ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।

उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ॥

महामृत्युंजय मंत्र :: 

ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ॥

MAHA MRATUNJAY MANTR OTHER FORM ::

ॐ मृतुंज्याय महादेवाय नमोस्तुते।

Om Mratunjayay Maha Devay Namostute.

भगवान् शिव को अति प्रसन्न करने वाला मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र। जन साधारण की धारणा है कि इसके जाप से व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती परंतु यह पूरी तरह सही अर्थ नहीं है। महामृत्युंजय का अर्थ है महामृत्यु पर विजय अर्थात् व्यक्ति की बार-बार मृत्यु ना हो। वह मोक्ष को प्राप्त हो जाए। उसका शरीर स्वस्थ हो, धन एवं मान की वृद्धि तथा वह जन्म मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाए। शिव पुराण में भी महामृत्युंजय मंत्र की महिमा के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। इसी मंत्र के लगातार जाप से कई असाध्य रोगों से भी लाभ पहुंचता है। महामृत्युंजय मेंत्र के पहले तथा बाद उसके बीज मंत्र “ॐ हौं जूँ स:” का उच्चारण आवश्यक माना गया है। जिस तरह बिना बीज के जीवन उत्पन्न नहीं होता है उसी तरह बिना बीज मंत्र के महामृत्युंजय मंत्र फलित नहीं होता है। जो पूरे मंत्र का जाप नहीं सकते वे केवल बीज मंत्र के सतत जाप से सभी अभिष्ट फल प्राप्त कर सकते हैं।महामृत्युंजय मंत्र का एक लाख जाप करने पर शरीर की शुद्धि होती है। दो लाख जाप करने पर पूर्वजन्म का स्मरण होता है। तीन लाख जाप करने पर इच्छित वस्तु की प्राप्ति हो जाती है। चार लाख जाप करने पर स्वप्न में भगवान् शिव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। पांच लाख जाप करने पर भगवान् शिव प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। दस लाख जाप करने पर संपूर्ण फल की सिद्धि होती है। मंत्र जाप आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से पूर्ण पवित्र होकर करें। जो असहाय बीमार हो वह कैसी भी अवस्था में लेटे-बैठे, बगैर स्नान किए, किसी भी समय, किसी भी उम्र में बीज मंत्रों का जाप कर सकते हैं। उन्हें भगवान् शिव की कृपा से निरोगता प्राप्त होगी।

शिवाराधना से चन्द्रमा और शनि दोनों मजबूत और निरापद होते हैं। निराकार रूप में भगवान् शिव शिवलिंग रूप में पूजे जाते हैं। शिवपुराण में कहा गया है कि साकार और निराकार दोनों ही रूपों में शिव जी की पूजा कल्याणकारी होती है, लेकिन शिवलिंग की पूजा करना अधिक उत्तम है। भगवान् शिव के अतिरिक्त अन्य कोई भी देवता साक्षात् ब्रह्मस्वरूप नहीं हैं। संसार भगवान्  शिव के ब्रह्मस्वरूप को जान सके इसलिए ही भगवान शिव ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए और शिवलिंग के रूप में इनकी पूजा होती है। भगवान् शिव को जगत पिता हैं। वही सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म भी हैं। शिव’ का अर्थ है, कल्याणकारी, लिंग का अर्थ है :- सृजन अतः भगवान् सर्जनहार हैं। उत्पादक शक्ति के चिन्ह के रूप में लिंग की पूजा होती है। लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं।

विधि-विधान :: (1). रोजाना सुबह शिव मंदिर जायें और शिवलिंग पर चावल चढ़ायें। शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती।

(2).  रोजाना रात के समय शिव मंदिर जाएं और दीप दान करें। ऐसा करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी भी धन का अभाव नहीं होता।

(3). मंत्र कामनापूर्ति का श्रेष्ठ साधन हैं। पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके किया गया मंत्र जाप धन, वैभव व ऐश्वर्य की कामना को पूरी करता है।

रूद्राक्ष की माला लेकर अपनी इच्छा अनुसार शिव मंत्र का जाप करें : –

मन्दारमालाङ्कुलितालकायै कपालमालांकितशेखराय।

दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥

श्री अखण्डानन्दबोधाय शोकसन्तापहारिणे।

सच्चिदानन्दस्वरूपाय शंकराय नमो नम:॥

(4). जन-धन हानि हो रही हो तो महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें :-

ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात॥

(5).  सोमवार के दिन भगवान शिव जी को पंजीरी का भोग लगाएं।
सावधानियाँ :- महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम कल्याणकारी-फलदायी है। अनिष्ट निवारण हेतु जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :-
(1). जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।
(2). एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
(3). मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
(4). जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
(5). रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
(6). माला को गोमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गोमुखी से बाहर न निकालें।
(7). जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।
(8). महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।
(9). जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।
(10). महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
(11). जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
(12). जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधरन भटकाएँ।
(13). जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
(14). मिथ्या बातें न करें।
(15). जपकाल में स्त्री सेवन न करें।
(16). जपकाल में मद्य-नशा-मांसाहार त्याग दें।
शिवाराधना से चन्द्रमा और शनि दोनों मजबूत और निरापद होते हैं। निराकार रूप में भगवान शिव शिवलिंग रूप में पूजे जाते हैं।शिवपुराण में कहा गया है कि साकार और निराकार दोनों ही रूपों में शिव जी की पूजा कल्याणकारी होती है, लेकिन शिवलिंग की पूजा करना अधिक उत्तम है। शिव जी के अतिरिक्त अन्य कोई भी देवता साक्षात् ब्रह्मस्वरूप नहीं हैं। संसार भगवान शिव के ब्रह्मस्वरूप को जान सके इसलिए ही भगवान शिव ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए और शिवलिंग के रूप में इनकी पूजा होती है।भगवान् शिव को जगत पिता हैं। वही सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म भी हैं। शिव’ का अर्थ है – कल्याणकारी, लिंग का अर्थ है :- सृजन अतः भगवान् सर्जनहार हैं।उत्पादक शक्ति के चिन्ह के रूप में लिंग की पूजा होती है। लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं।
विधि-विधान :: (1). रोजाना सुबह शिव मंदिर जाएं और शिवलिंग पर चावल चढ़ाएं। शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती।
(2).  रोजाना रात के समय शिव मंदिर जाएं और दीप दान करें। ऐसा करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी भी धन का अभाव नहीं होता।
(3). मंत्र कामनापूर्ति का श्रेष्ठ साधन हैं। पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके किया गया मंत्र जाप धन, वैभव व ऐश्वर्य की कामना को पूरी करता है।
रूद्राक्ष की माला लेकर अपनी इच्छा अनुसार शिव मंत्र का जाप करें : –

मन्दारमालाङ्कुलितालकायै कपालमालांकितशेखराय।

दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥

श्री अखण्डानन्दबोधाय शोकसन्तापहारिणे।

सच्चिदानन्दस्वरूपाय शंकराय नमो नम:॥

(4).  जन-धन हानि हो रही हो तो महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें ::

ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात॥

(5).  सोमवार के दिन भगवान शिव जी को पंजीरी का भोग लगाएं।
कुशाग्र बुद्धि हेतु शिव मंत्र द्वारा आराधना ::

याते रुद्रशिवातनूरघोरा पापकाशिनी।
तयानस्तन्नवाशन्त मयागिरी शंताभिचाकशीहि॥

भगवान शिव के इस मंत्र को जप करने के लिए पूर्व दिशा या काशी की तरफ मुख कर, आसन पर बैठकर जाप करें। इस  मंत्र का जाप प्रत्येक दिन 108 बार करने से बुद्धि कुशाग्र हो जाती है और  गृहक्लेशों का निवारण होता है। मंत्र को जपते समय भगवान शिव का ही ध्यान करते रहना चाहिए। विद्यार्थियों के लिए यह श्लोक बहुत लाभ प्रद है। मन्त्र सिद्धि की लिए इसका 5,00,000 जप विधि विधान से करें।

SARASWAT MANTR ::

This Mantr is helpful to those who wish to be blessed with education, knowledge  and enlightenment.

 Om aim namah. ॐ ऐं नम:। 

सोने की सलाई से या कुशा की जड़ से गंगा-जल द्वारा अभिमंत्रित, अष्टमी या चतुर्दशी के दिन छात्र-बच्चे की जीभ पर ऐं’बीज लिखें व 5,00,000 बार शांत भाव से सस्वर उच्चारण करें।

सारस्वत मन्त्र: “ॐ ह्रां ऐं ह्रीं सरस्वतयै नमः” का जाप 5,00,000 बार विधि-विधान के साथ करें।

हंसारुढा भगवती मां सरस्वती का ध्यान कर मानस-पूजा पूर्वक इस मन्त्र का 108 बार जप करें :-

ॐ ऐं क्लीं सौः ह्रीं श्रीं ध्रीं वद वद वाग्-वादिनि सौः क्लीं ऐं श्रीसरस्वत्यै नमः।

सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि।
विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु मे सदा॥

Saraswati Namas Tubhyam Varde Kam Rupini;

Vidyarambham Karishyami Siddhirbhvtu Me Sada.

O Goddess Saraswati, I bow down humbly before you, the bestow-er of all wishes; As I commence my studies, may there be success for ever. Note: This is recited to salute Goddess Saraswati before starting studies.

 या कुन्देन्दु तुषारहार धवला या शुभ्र वस्त्रावृता। 

या वीणा वर दण्ड मण्डितकरा या श्वेत पद्मासना॥

या ब्रह्माच्युत सङ्कर प्रभृतिभिः देवैः सदा वन्दिता। 

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा॥

Ya Kundendu Tushar Har Dhavla Ya Shubhr Vastra Vrta;

Ya Veena Var Dand Manditkara Ya Shvet Padmasana.

Ya Brahmachyut Sankar Prabhr Tibhih Devaeh  Sada Vandita;

Sa Maan Patu Sarasvati Bhagvati Nihi Shesh Jadyapha.

Hey Maan  Saraswati, pure and radiant as the full moon and frost, wearing a garland of jasmine flowers, in your white robes, seated on lotus throne; with the Veena on your lap; O one who is worshipped by Brahma, Vishnu and Maheshwar (Shiv), may you bless and protect me and remove the laziness and sloth in me.

This is recited while worshipping Maa Saraswati.

SHAKTI MANTR ::

Tantrik/Beej (बीजमंत्र) :: This is a form of prayer, performed by the Tantrik. Those who recite this Mantr with good intentions, are blessed with might and power.

Om Aim Hreem Kleem Chamunday Vichchae Phat Swaha.

ॐ  ऐं  ह्रीं  क्लीं चामुंडाय  विच्चै  फट  स्वाहा:।

DURGA SAPT SHATI ::

Durge Smreta Harsi Bheetim shesh Janto, Swesthe Smreta Matimateew Shubham Dadasi.

Daridry Dukh Bhayharini Ka Tvdanya, Serwopkar Kernay Sdardr Chitta.

दुर्गे स्मृता  हरसि भीतिम शेष जन्तो, स्वस्थे: स्मृतामतिमतीव शुभां ददासि।

दारिद्र्य दुःख भयहारिणी का त्वदन्या, सर्वोपकार  करणाय सदार्द्र चित्ता॥ 

LAKSHMI MANTR :: भौतिक सुख के लिये लक्ष्मी मन्त्र :-

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये महे प्रसीदा प्रसीदा स्वाहा॥

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मेय नमः॥

किसी भी मन्त्र को कमलगट्टे की माला से हर गुरुवार को 5 माला जपे। इससे घर की आर्थिक परिस्थिती में सुधार होने लगता है।
Laxmi is the Shakti of Bhagwan Vishnu, who nurtures this universe. Desirous of worldly comforts and pleasures, people worship mother Laxmi on Deepawali, new ventures and the beginning of new business.

Om Shreem Hreem Kleem Aim Kamal Vasiney Phat Swaha.

ओम श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमल वासिन्ये फट स्वाहा:। 

आर्थिक संकट से मुक्त होने के लिए  ऋग्वेद के इस मंत्र का जप करें ::

“ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मादभ्रं भूर्या भर। भूरि धेदिन्द्र दित्ससि।

ॐ भूरि दाह्यसि श्रुतः पुरुजा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।

हे लक्ष्मीपते! आप दानी हैं, साधारण दानदाता ही नहीं बहुत बड़े दानी हैं। आप्तजनों से सुना है कि संसारभर से निराश होकर जो याचक आपसे प्रार्थना करता है, उसकी पुकार सुनकर उसे आप आर्थिक कष्टों से मुक्त कर देते हैं-उसकी झोली भर देते हैं। हे भगवान्! मुझे इस अर्थ संकट से उबार दें।
LAKSHMI VANDNA ::

महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वेरि।

हरिप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधि॥

Maha Laxmi Namstubhayam Namstubhayam Sureshrewari,

Hari Priye Namstubhayam Namstubhayam Dayanidhi.

KUBER MANTR कुबेर मन्त्र :: दीपावली की रात में लक्ष्मी और कुबेर देव का पूजन करें और इस मंत्र का जाप 108 बार करें।

ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रववाय, धन-धान्यधिपतये धन-धान्य समृद्धि मम देहि दापय स्वाहा।

महालक्ष्मी के पूजन में गोमती चक्र भी रखना चाहिए। गोमती चक्र भी घर में धन संबंधी लाभ दिलाता है। दीपावली पर तेल का दीपक जलाएं और दीपक में एक लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें। किसी हनुमान जी के मंदिर में जाकर ऐसा दीपक भी लगा सकते हैं।

LAKSHMI (wealth) & SARASWATI (Education)

Laxmi, Lajje, Maha Viddye Sherddhe, 

Pushti Swedhye Dhruve;

Maha Ratri Maha Viddye Narayani Namostute.

 लक्ष्मी, लज्जे, महाविद्दे श्रद्दे, पुष्टि स्वधे ध्रुवे।

 महारात्रि महाविद्द्ये   नारायणि नमोस्तुते॥ 

DAKHNINA MANTR :: For timely, good, harmonious marriage this Mantr is purposeful.

Om  Shreem Hreem Kleem Dakshinayae Phat Swaha. 

  ॐ श्रीं  ह्रीं  क्लीं  दक्षिणायै  फट स्वाहा:। 

SURY (रवि) MANTR :: The devotees of Bhagwan Sury Narayan are blessed with success, riches, name, fame, health and vigour. One should recite the Mantr every day, in the morning, after becoming fresh and pour water towards the Sun, such that the Lota-pot-vessel,  carrying water is slightly over the head. The water may be allowed to run into Tulsi Plant kept in the open. The day assigned to specific Pooja and Archna is Sunday.

Om Suryay Namo Namah. ॐ सूर्याय नमो: नम:।  

Om Suryay Namah. ॐ सूर्याय नम:। 

   Om Adityay Namo Namah. ॐ आदित्याय नम:। 

                  Om Jyotir Aditay Phat Swaha. ॐ ज्योतिर आदित्य फट स्वाहा:। 

             Om Bhaskray Namah. ॐ भास्कराय नम:। 

 Om Bhanuve Namah.  ॐ भानुवे नम:। 

 Om Khakhol Kay Namah. ॐ  खखोलकाय नम:।    

 Om Khakhol Kay Swaha.  ॐ  खखोलकाय स्वाहा:।

Om Vyam Phat. ॐ व्यं फट।

Om Hram Hreem Sah: Phat Swaha. ॐ  ह्रां  ह्रीं   स: फट स्वाहा:।

Om Hram Hreem Sheh Suryay Namah. ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नम:।

SURY GAYATRI MANTR ::

Om Adityay Vidmahe Bhaskray Dheemahi Tanno  Bhanuh Prachodyat.

आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नो भानुह: प्रचोदयात्।

साध्य सूर्य मन्त्र :: ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः। ॐ घृणि सूर्याय नमः।  

SOM MANTR :: Som (सोम-Moon) Mantr is devoted to Moon. Moon is the lord of Brahmns and the vegetation-herbs (Medicinal Plants). He nourishes all medicinal plants herbs. He is associated with travel and love. Those who wish to have good mental & physical health may pray to him. The day assigned is Monday. He is  a component of Brahma Ji and controls the Man, Mood, psyche, wisdom. For special-specific prayers visit Som Nath temple in Gujrat.

Om Somay Namo Nameh. ॐ सोमाय नमो: नम:।

MANGAL (मंगल-Mars) MANTR ::

This Mantr is meant to seek the blessings of Mangal-the red planet Mars which was created by the sweat of Bhagwan Shiv, which fell on earth.Those who are Mangli, must recite this Mantr, to seek protection from the bad omens associated with this sign lord.This plane creates all sorts of hurdles in the life of some people. Recitation of Hanuman Chalisa on Tuesdays is helpful to great extent.

Om Bhomay Namo Namah.  ॐ भोमाय नमो: नम।  

                   BUDDH MANTR

Buddh  (बुद्ध-Mercury) is the son of Moon from Tara-the wife of Dev Guru Vrahspati. This planet is closest to the Sun and is worshiped for success in trade, business, sciences, new inventions, techniques, innovations, new designs etc. on Wednesday. This day is assigned for Ganpati-Ganesh ji’s prayers as well.

ॐ सोमात्मज्याय नमो: नम:। 

Om Somatmjyay Namo Nameh.

GURU VRAHASPATI (गुरू वृहस्पति) :: Jupiter is the largest-gaseous planet in our Solar system. He is the teacher, philosopher and guide of Demigods, and most revered person in the Heaven. For harmony in family and cordial relations, one has to observe fast on Thursday, wear yellow cloths, donate yellow goods and eatables. Bhagwan Shiv is  the Maha Guru.  Guru Vandna is recited to pay salutation to teacher  (गुरु, guru) in the evening.

“ॐ गुं गुरूभ्यो नम:”। Om Gun Gurubhyo Namah.

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

Gurur Brahma, Gurur Vishnuh, Gurur Devo Maheshwarah;

Gurur Sakshat Param Brahm, Tasmae Shri Gurve Nameh.

My salutation to my teacher, who to me are Brahma, Vishnu and Maheshwar, the Ultimate Par Brahm, the Supreme reality.

SHUKR DEV :: Shukr (शुक्र-Venus) is the shining planet, which is closest to the earth. It affects the weather on earth, along with moon and Shishumar Chakr-constituted of 4 stars. Dhruv-the Pole Star is located at the tail of Shishumar Chakr-the embodiment of Bhagwan Vishnu. Sun revolves round Dhruv. It provides health, vigour  potency and success in arts and literary fields. Wear white cloths and observe fast on Friday.

ॐ शुक्राय नमो: नमः।

Om Shukray Namo Namah.

मृत सञ्जीवनी विद्या ::

ॐ हौं जूँ स:। ॐ भूर्भुव: स्व:। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं। ॐ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम। ॐ भर्गो देवस्य धीमहि। ॐ उर्वारुकमिव बन्धनाद। ॐ धियो यो न प्रचोदयात। ॐ मृत्योर्मुक्षीय माSमृतात। ॐ स्व: भुव: भू:। ॐ स: जूँ ह्रौं ॐ।

असुरों के गुरु शुक्राचार्य द्वारा इसका अभ्यास किया गया। सभी प्रकार के रोग-शोक निवारण के लिये इसका विधि-विधान पूर्वक अभ्यास करें।

सर्वरोग नाशक प्रातः स्मरण-आराधना :: यह महर्षि वशिष्ठ द्वारा भगदेवता-ईश्वर से सभी रोगों से मुक्ति पाने की प्रार्थना है। इसके प्रातःकाल श्रद्धापूर्वक पाठ करने से असाध्य से भी असाध्य रोग दूर हो जाते हैं और दीर्घायु प्राप्त होती है।

प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रावरुणा प्रातरश्विना। 

प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातः सोममुत रुद्रं हुवेम॥

हे सर्वशक्तिमान् ईश्वर! आप स्वप्रकाश स्वरूप-सर्वज्ञ, परम ऐश्वर्य के दाता और परम ऐश्वर्य से युक्त, प्राण और उदान के समान, सूर्य और चन्द्र को उत्पन्न करने वाले हैं।आप भजनीय, सेवनीय, पुष्टिकर्त्ता हैं। आप अपने उपासक, वेद तथा ब्रह्माण्ड के पालनकर्त्ता, अन्तर्यामी और प्रेरक, पापियों को रुलानेवाले तथा सर्वरोग नाशक हैं। हम प्रातः वेला में आपकी स्तुति-प्रार्थना करते हैं।[ऋग्वेद 7.41.1]

Hey Almighty! YOU bear (inbuilt) aura, all knowing, possess & grants ultimate comforts-bliss, support Pran Vayu-life sustaining force in us, creator of Sun & Moon, has to be prayed by us-devotees. YOU maintain-nurture your devotees, Ved & the Universe, punishes the sinners & eliminates all diseases-illness. We pray to YOU in the morning.

SHANI DEV-SATURN (शनि देव) :: It is the ringed planet, which is most feared and considered to be dreaded and cruel  by nature. If one is facing tough time, difficulties, obstructions in life, money losses, weak constitution, poor health, thin pale body, he must pray to Shani. People wear blue clothes and observe fast on Saturdays, for protection from its ill effects. They donate mustered oil, glow/light earthen lamp, with mustard oil, below the Peepal tree near its root.  People wear iron ring in their Saturn finger to avoid ill effects of Shani. It provides Bhakti, might and wealth.

ॐ शनैश्वराय  नमो नम:। Om Shaneshwray Namo Namah.

शनि गायत्री मन्त्र ::

ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्न सौरि प्रचोदयात।

शनि पौराणिक मन्त्र ::

ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनये नम:। ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनैश्चराय नमः॥    

 काल सर्प योग 

Protection from Snakes/Nag/Serpents. Recitation of these Mantr is useful.

 

Om Kurukulle Phat Swaha.  ॐ कुरुकुल्ले फट स्वाहा:|

 Om Nagar Phat Swaha.  ॐ नगर  फट स्वाहा:|

Om Narmdaye Nameh. Prater Narmdaye Namo Nishi,

Namo Astu Narmdye Trahimam Vishsarpt:.

ॐ  नर्मदायै नम:. प्रातर्नर्मदायै  नमो निशि। नमोअस्तु नर्मदे तुभं त्राहि मां विश्सर्पत:॥ 

Om Namo Bhagwate Neel Kanthay.

ॐ नमो भगवते नील कंठाय।

कालसर्प योग के दोष निवारण :- इस कार्य हेतु ताँबे का एक बड़ा सर्प शिवलिंग को अर्पित करें अथवा चांदी के नाग नागिन का जोड़ा समर्पित करें। नव नाग स्तोत्र तथा सर्प गायत्री मंत्र का उच्चारण करें।
नवनाग स्तोत्र :- अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलं, शन्खपालं ध्रूतराष्ट्रं च तक्षकं, कालियं तथा एतानि नव नामानि नागानाम च, महात्मनं सायमकाले पठेन्नीत्यं प्रातक्काले विशेषतः तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेतll
NAVNAG STROT :: Anant Vasukim Shesham Padmnabham Ch Kambalam, Shankhpalm Dhratrashtram  Ch Takshakm Kaliyam Tatha, Atani Nav Namani Naganam Ch Mahatmanm,Sayamkale Pathennityam Pratahkale Visheshtah Tasy Vishbhyam Nasti Sarwatr Vijyee Bhavet.
नाग गायत्री मंत्र :- ॐ नव कुलाय विध्महे विषदन्ताय धी माहि तन्नो सर्प प्रचोदयात।
NAG GAYATRI MANTR :: Om Nav Kulay Vidhmahe Vishdantay Dhee Mahi Tanno Sarp Prachodyat.

Protection from Ghosts, evil spirits 

Recitation of this Mantr and Hanuman Chalisa will help:

Om Shree Maha Anjnay Pawan Putravesh Veshey,

 Om Shree Hanumate Phat.

ॐ श्री महा अन्ज्नाये पवन पुत्रावेशवेशय। 

 ॐ श्री हनुमते फट॥ 

Shri Hanumat Vandna 

Atulit Bal Dhamam hem Shaella Bhadem, 

Dju Jwn Krashanu Gyani Namgr  Gamyam.

Sakal Gun Nidhanam Vrndhishm Vanrandhisham, 

Ragupati Pribhkram Vat Jatm Namami.

अतुलित बल धामं हेम शैला  भदेहं, दजु जवन  कृषानु  ज्ञानी नामग्र गम्यं।

सकल गुण निधानं वंरधिषम वानराधीशं, रघुपति प्रियभ्कृम्  वात  जातं नमामि॥ 

 Wish to have long life of son, recite this Mantr ::

ॐ नमोस्तुते कार्त्विर्याय।

Wish to avoid untimely/accidental  death, recite:

Akal Mrtyu-Hrnam Sarv Vyadhi-Vinashnam.               

Shri Ram Padodkam Peetva Punrjnm Na Vidhyte.

 अकाल मृत्यु-हरणं सर्व व्याधि-विनाशनम्। 

 श्री राम पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विध्यते॥ 

Shri Ram Vandna ::

Shri Ram Chandr Raghupungev Rajvry Rajendr Ram Raghu Nayak Raghvesh.

Rajadhiraj Raghunandan Ramchandr Dasoahmdy Bhawth Sarnagatoasmi.

श्री रामचन्द्र रघु पुंगव राज्वर्य राजेन्द्र राम रघु नायक राघवेश।

राजाधिराज रघुनन्दन रामचन्द्र दासोडहमद्द भवत: शरणागतोअस्मि॥ 

PREVENTION FROM  EPIDEMIC/PLAGUE ::

      Om Jayanti Mangla Kali Bhadr Kali Krapalini.               
Durga Kshama Shiva Dhatri Swaha Swedha Namostute.

 ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कृपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा  स्वधा नमोस्तुते॥ 

PREVENTION OF DISTRESS, DISASTER, ADVERSITY, MISFORTUNE ::

                                                   Sharnagat Deenatr Paritran Prayne;  

Sarw Syatimhre Devi Narayani Namostute.

   

 शरणागतदीनार्तपरीत्राण परायणे।

     सर्वस्यातिमंहरे देवी नारायणि नमोस्तुते।।  

PREVENTION FROM FEAR

                   Sarw-Sverupe Sarveshe Sarw Shakti Samnvite;                     

Bhyebhy strahi no Devi Durge Devi Namostute.. 

        सर्व-स्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।         

 भयेभ्यस्त्राहि  नो देवी दुर्गे देवि नमोस्तुते।।

           Prevention from Poverty, Pains and sorrow/grief

Durge Smrta Hersi Bheetim Sheshjnto. Swestheh Smrta Mtimteev Shubham Dadasi..

Daridry Dukh-Bhy Hrni Ka Tvdnya. Sarvopkarkrnay Sdardrchita..

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो । स्वेस्थे: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।।

दारिद्र्य दुःख-भय हारिणि  का त्वदन्या। सर्वोपकारकरणाय  सदार्द्रचिता  ।।

PREVENTION OF DISTRESS, DISASTER, ADVERSITY, MISFORTUNE OF THE ENTIRE  WORLD

Devi Prsann Tirhre Prsid Prsid Matrjgto Akhilsy.

 Prsid Vishveshwari Pahi Vishvm Tvmishwri Devi Chrachrsy..

देवि प्रसन्नतिर्हेरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतो   अखिलस्य।

 प्रसीद विश्वेश्वरी पाहि विश्वं, त्वमीश्वरी देवी चराचरस्य।।

Mantr recited  for Good Night sound sleep before sleeping

Krshnay Vasudevay Hrye Prmatmne, Prnat Klesh Nashay Govinday Namo Namh..

कृष्णाय  वासुदेवाय हरये परमात्मने, 

प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नम:।

भैरवी कवच ::

भैरवी कवचस्यास्य सदाशिव ऋषि: स्मृत:; 

छंदोSनुष्टुब देवता च भैरवी भयनाशिनी। 
धर्मार्थ काम मोक्षेषु विनियोग: प्रकीर्तित:; 

हसरैं मे शिर: पातु भैरवी भयनाशिनी। 
हसकलरीं नेत्रंच हसरौश्च ललाटकम् ; कुमारी सर्व्वगात्रे च वाराही उत्तरे तथा। 
पूर्व्वे च वैष्णवी देवी इंद्राणी मम दक्षिणे; दिग्विदिक्ष सर्व्वेत्रैवभैरवी सर्व्वेदावतु। 
इदं कवचमज्ञात्वा यो सिद्धिद्देवी भैरवीम; कल्पकोटिशतेनापि सिद्धिस्तस्य न जायते। 

Shri Brahm Vandna श्री ब्रह्म वन्दना 

Nameste Sate  Jagatkarnaay, Nameste Chite Serwlokashryay.

Namo Asdwet Ttway Mukti Prday, Namo Brahmne Vyapine Shashwtay.

नमस्ते सते ते जगत्कारणाम, नमस्ते चिते सर्व लोकाश्रयाय।

नमो अद्वेत तत्वाय मुक्ति प्रदाय, नमो ब्रह्मणे व्यापिने शाश्वताय ।।

Shri Krashn Vandna श्री कृष्ण वन्दना ::

Vsudev Sutam Devm Kans Chadur Mardnm, Devki Permanandm Kreshnm Vnde Jagatgurum.

वसुदेव सुतं देवं कंस  चाणूर मर्दनम्, देवकी परमानन्दं कृष्णम् वन्दे जगद्गुरुम।

Shuddhi Mantr  शुद्धि मंत्र ::

Om Apvitrh  Pavitro Va Sarwavsthangto Api Va.

Yh Smret Pundrikakshm S Wa Hyabhyantr Shuchih.

ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वाव स्थान्गतो अपि वा। 

य: स्मरेत  पुंडरीकाक्षं स वा ह्यभ्यन्तर: शुचि:॥   

प्रात: कर-दर्शनम् ::

कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥

पृथ्वी क्षमा प्रार्थना::

समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।

विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥

त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण ::

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।

गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

स्नान मन्त्र ::

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

सूर्य नमस्कार ::

ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।

दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्  सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥

ॐ मित्राय नम:। ॐ रवये नम:। ॐ सूर्याय नम:। ॐ भानवे नम:। ॐ खगाय नम:। ॐ पूष्णे नम:। ॐ हिरण्यगर्भाय नम:। ॐ मरीचये नम:। ॐ आदित्याय नम:। ॐ सवित्रे नम:। ॐ अर्काय नम:। ॐ भास्कराय नम:। ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:।

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥

दीप दर्शन ::

शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥

दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥

गणपति स्तोत्र ::

गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥

विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥

विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।

विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय। लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥

नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय। गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं। प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥

माता आदि शक्ति वंदना ::

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

भगवान् शिव स्तुति ::

कर्पूर गौरम करुणावतारं, संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।

सदा वसंतं हृदयार विन्दे, भवं भवानी सहितं नमामि॥

भगवान्  श्री हरी विष्णु स्तुति ::

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।

लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम् वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

भगवान्  श्री कृष्ण स्तुति ::

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥

सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥

मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्‌।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥

भगवान्  श्री राम वंदना ::

लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

श्री रामाष्टक ::

हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥

हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥

एक श्लोकी रामायण ::

आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥

बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥

सरस्वती वंदना ::

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥

या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता। 

सा माम पातु सरस्वती भगवती  निःशेषजाड्याऽपहा॥

श्री हनुमान वंदना ::

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌। दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌। रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥

मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥

स्वस्ति-वाचन ::

ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।

स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

शाँति पाठ ::

ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:, पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।

वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

शुद्धि मन्त्र ::

आचम्य प्रयतो नित्यं जपेदशुचिदर्शने।
सौरान्मन्त्रान्यथोत्साहं पावमानीश्च शक्तितः॥

स्नान आचमन आदि के बाद चाण्डाल आदि अपवित्र लोगों पर दृष्टि पड़े तो वह साध्य सूर्य का मन्त्र (उदुत्यं जातवेदसमीत्यादि) और यथाशक्ति पावमानी (पुनन्तु मां, इत्यादि) मन्त्र जपे।
If one happen to see a Chandal of some impure-unclean person, he should recite the Sadhy Sury Mantr and practice Pavmani Mantr with effort.

साध्य सूर्य मन्त्र :: ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः। ॐ घृणि सूर्याय नमः।

पावमानी मन्त्र ::

ॐ स्तूता मया वरदा वेद माता प्रचोदयंताम् पावमानी द्विजानाम् आयुः प्राणं प्रजाम् पशुं कीर्तिम् द्रविणं ब्रह्मवर्चसं मह्यम् द्वत्वा वृजत् ब्रह्मलोकं।  ततो नमस्कारं करोमि।

उच्चाटन मन्त्र ::

 (1). ॐ उल्लूकाना विद्वेषय फट स्वाहा:, (2). ॐ  क्षौं क्षौं भैरवाय स्वाहा:, (3). ॐ हृलीं ब्रह्मास्त्राये विद्यमने स्तम्भन धीमही तन्नो बगला प्रचोदयात।

आजचा मंत्र :: महामारी, स्वास्थ्य, भय दूर करने हेतु तथा  बुद्धि-ज्ञान प्राप्ति हेतु निम्न मंत्र  का जप प्रतिदिन शुद्ध होकर प्रातःकाल 108 बार करें :-

ॐ नमो भगवते सुदर्शन वासुदेवाय, धन्वंतराय अमृतकलश हस्ताय, सकला भय विनाशाय, सर्व रोग निवारणाय, त्रिलोक पठाय, त्रिलोक लोकनिथाये, ॐ श्री महाविष्णु स्वरूपा, ॐ श्री श्री ॐ औषधा चक्र नारायण स्वहा॥

अनावृष्टि दूर करने के उपाय ::

अनश्नतैतज्जप्तव्यं वृष्टिकामेन यन्त्रत:। 

पंचरात्रेSप्यतिक्रान्ते महतीं वृष्टिमाप्नुयात्॥[ऋग्विधान 2.327]

जल वृष्टि  :: निम्न दोनों मंत्रों से सत्तू और जल का ही सेवन करता हुआ, गुड़ तथा दूध में वेतस् की समिधाओं को भिगोकर हवन करे करें तो भगवान् सूर्य नारायण जल बरसाते हैं :-

“असौ यस्ताम्नो” तथा “असौ योSवसर्पति”

भूत-प्रेत से मुक्ति :: निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए सरसों के दाने अभिमन्त्रित करके आविष्ट पुरुष पर डालने से ब्रह्मराक्षस,भूत-प्रेत, पिशाचादि से मुक्ति प्राप्त होती है :-

अध्यवोचदधिवक्ता प्रथमो दैव्यो भिषक्। 

अहींश्च सर्वाञ्जम्भयन्त्सर्वाश्च यातुधान्योSधराची: परा सुव॥[शुक्ल यजुर्वेद 16.5]

 बाल शान्ति ::

मा नो महान्तमुत मा नो अर्भकं मा न उक्षन्तमुत मा न उक्षितम्। 

मा नो वधी: पितरं मोत मातरं मा नः प्रिया स्तन्वो रूद्र रीरिष:॥

[शुक्ल यजुर्वेद 16.15]

इस मंत्र से तिल की 10,000 आहुति देने से बालक नीरोग रहता है तथा परिवार में शान्ति रहती है।

रोग नाशन :: 

नमः सिकत्याय च प्रवाह्याय च नमः कि ँ ्शिलाय च क्षयणाय च नमः कपर्दिने च पुलस्तये च नम इरिण्याय च प्रपथ्याय च॥

[शुक्ल यजुर्वेद 16.43]

इस मंत्र से 800 वार कलश स्थित जल को अभिमन्त्रित करके उससे रोगी का अभिषेक करें तो वह रोग मुक्त हो जाता है।

सर्वरोग निवारण ::

ॐ नमो भगवते महासुदर्शन वासुदेवाय धन्वंतराय अमृतकळश हस्ताय सकल भय विनाशाय सर्वरोग निवारणाय त्रिलोक पतये त्रिलोक निधये ॐ श्री महाविष्णू स्वरुप श्री धन्वंतरी स्वरुप ॐ श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नम:।

द्रव्य प्राप्ति :: 

नमो वः किरिकेभ्योo।[शुक्ल यजुर्वेद 16.46]

उपरोक्त मंत्र से तिल की 10,000 आहुति देने पर धन की प्राप्ति होती है।

PRAYERS FOR HUMAN WELFARE :: 

ऋग्वेद का आद्य मांगलिक संदेश ::

अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्॥ 

स्वयं आगे बढ़कर लोगों का हित करनेवाले, प्रकाशक, ऋतु के अनुसार यज्ञ करने तथा देवों को बुलाने वाले और रत्नों को धारण करने वाले अग्नि की मैं स्तुति करता हूँ।

आद्य :: आदि, मूल; primitive, primordial.

I pray to the Agni-deity of fire, who illuminates all, performs Yagy as per the season (sowing crops, mating and performing all useful deeds), who invites the demigods-deities, bearing jewels-ornaments.

यजुर्वेद का आद्य मांगलिक संदेश ::

इषे त्वोर्जे त्वा वायव स्थ देवो वः सविता प्रापयतु श्रेष्ठतमाय कर्मण आप्यायस्व मध्य इन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवा अयक्ष्मा मा व स्तेन ईशत माघश सो ध्रुवा अस्मिन् गोपतौ स्यात बह्वीर्यजमानस्य पशून्याहि॥

(हे मानव!) सबको उत्पन्न करने वाला देव-सविता देव, तुझे अन्न-प्राप्ति के लिये प्रेरित करें। सबको उत्पन्न करने वाला देव तुझे बल-प्राप्ति के लिये प्रेरित करे। हे मनुष्यो! तुम प्राण हो। सबका सृजन करने वाला देव तुम सबको श्रेष्ठतम कर्म के लिये प्रेरित करे। हे मनुष्यो! बढ़ते जाओ। तुम सभी प्रजाओं का वध करने के अयोग्य हो।

तुम इन्द्र के लिये अपना भाग बढ़ाकर दो। तुम सन्तान युक्त, यज्ञ से रोग मुक्त और क्षय रोग रहित होओ। चोर तुम्हारा प्रभु न बने, पापी तुम्हारा स्वामी न बने। इस भूपति के निकट स्थिर रहो, अधिक सँख्या में प्रजा सम्पन्न हो, यज्ञ कर्ता के पशुओं की रक्षा करो।

Hey Humans! Savita Dev (read Almighty) who gave birth to all, should inspire-guide us to produce food grain. One-God who produces all, should inspire to acquire strength-power. Hey Humans! You are life force. The God who gave birth to all may inspire you to do excellent Karm-Deeds (endeavours). Keep on progressing. Let the God make you incompetent to destroy life-shun from violence.

You should increase the offering to Indr (Dev Raj-here Almighty, for the sake of charity, donations, human welfare). You should be blessed with progeny through the Yagy (production of life is also a form of Yagy.) and become free from illness & tuberculosis. The thief should not become your master-king. Stay with this land lord-the honest (virtuous, righteous, pious). More and more people should become rich-wealthy. Protect the one who performs the Yagy.

सामवेद का आद्य माङ्गलिक संदेश ::  

अग्न आ याहि वीतये गृणानो हव्यदातये। नि होता सत्सि बर्हिषि॥ 

 हे अग्ने! हवि-भक्षण करने के लिये तू आ, देवों को हवि देने के लिये जिसकी स्तुति की जाती है, ऐसा तू यज्ञ में ऋत्विज् होता हुआ आसन पर बैठ।

Hey Agni Dev! Please come and acquire the seat of Ritvij-the person making offerings to the demigods-deities.  Please eat the offerings to the demigods-deities for whom you act the mouth.

अथर्ववेद का आद्य माङ्गलिक संदेश :: 

शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु नः॥ 

दिव्य जल हमें सुख दे और इष्ट-प्राप्ति के लिये एवं पीने के लिये हो तथा हम पर शान्ति का स्रोत बहाये।

The divine water should grant us pleasure-comforts & should be meant as an offering to the Isht-the deity prayed by us and for drinking, in addition to showering solace, peace & tranquillity over us.

शरीर शुद्ध करने का मंत्र ::

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा

यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥

अतिनिल घनश्यामं नलिनायतलोचनं

स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम॥

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गुप्त सप्तशती और कुञ्जिका स्तोत्र

गुप्त सप्तशती और कुञ्जिका स्तोत्र
 CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM
By :: Pt. Santosh Bhardwaj
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ॐ गं गणपतये नमः

अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।
गुणातीतं निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]
सात सौ मन्त्रों की “श्री दुर्गा सप्तशती”, का पाठ करने से साधकों का जैसा कल्याण होता है, वैसा-ही कल्याणकारी गुप्त-सप्तशती का पाठ है। यह “गुप्त-सप्तशती” प्रचुर मन्त्र-बीजों के होने से आत्म-कल्याणेछु साधकों के लिए अमोघ फल-प्रद है।
इसके पाठ का क्रम :- प्रारम्भ में “कुञ्जिका-स्तोत्र”, उसके बाद “गुप्त-सप्तशती”, तदन्तर “स्तवन” का पाठ करें।
कुञ्जिका-स्तोत्र ::
पूर्व-पीठिका :-
श्रृणु देवि, प्रवक्ष्यामि कुञ्जिका-मन्त्रमुत्तमम्। 
येन मन्त्रप्रभावेन चण्डीजापं शुभं भवेत्॥1॥
न वर्म नार्गला-स्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्। 
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासं च न चार्चनम्॥2॥
कुञ्जिका-पाठ-मात्रेण दुर्गा-पाठ-फलं लभेत्। 
अति गुह्यतमं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥3॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्व-योनि-वच्च पार्वति। 
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठ-मात्रेण संसिद्धिः कुञ्जिकामन्त्रमुत्तमम्॥ 4॥
अथ मंत्र ::
ॐ श्लैं दुँ क्लीं क्लौं जुं सः ज्वलयोज्ज्वल ज्वल प्रज्वल-प्रज्वल प्रबल-प्रबल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा। 
इति मंत्रः। 
इस “कुञ्जिका-मन्त्र” का यहाँ दस बार जप करें। इसी प्रकार “स्तवन-पाठ” के अन्त में पुनः इस मन्त्र का दस बार जप कर “कुञ्जिका स्तोत्र” का पाठ करें।
कुञ्जिका स्तोत्र मूल-पाठ ::
नमस्ते रुद्र-रूपायै, नमस्ते मधु-मर्दिनि। नमस्ते कैटभारी च, नमस्ते महिषासनि॥
नमस्ते शुम्भहंत्रेति, निशुम्भासुर-घातिनि। जाग्रतं हि महा-देवि जप-सिद्धिं कुरुष्व मे॥
ऐं-कारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रति-पालिका॥ 
क्लीं-कारी कामरूपिण्यै बीजरूपा नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्ड-घाती च यैं-कारी वर-दायिनी॥ 
विच्चे नोऽभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि॥
धां धीं धूं धूर्जटेर्पत्नी वां वीं वागेश्वरी तथा। 
क्रां क्रीं श्रीं मे शुभं कुरु, ऐं ॐ ऐं रक्ष सर्वदा॥
ॐ ॐ ॐ-कार-रुपायै, ज्रां-ज्रां ज्रम्भाल-नादिनी। 
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि, शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥
ह्रूं ह्रूं ह्रूं-काररूपिण्यै ज्रं ज्रं ज्रम्भाल-नादिनी। 
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवानि ते नमो नमः॥
मन्त्र ::
अं कं चं टं तं पं यं शं बिन्दुराविर्भव, आविर्भव, 
हं सं लं क्षं मयि जाग्रय-जाग्रय,  त्रोटय-त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा। 
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा, खां खीं खूं खेचरी तथा।
 म्लां म्लीं म्लूं दीव्यती पूर्णा, कुञ्जिकायै नमो नमः
सां सीं सप्तशती-सिद्धिं, कुरुष्व जप-मात्रतः॥
इदं तु कुञ्जिका-स्तोत्रं मंत्र-जाल-ग्रहां प्रिये। 
अभक्ते च न दातव्यं, गोपयेत् सर्वदा श्रृणु
कुंजिका-विहितं देवि यस्तु सप्तशतीं पठेत्। 
न तस्य जायते सिद्धिं, अरण्ये रुदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम्।
गुप्त-सप्तशती ::
ॐ ब्रीं-ब्रीं-ब्रीं वेणु-हस्ते, स्तुत-सुर-बटुकैर्हां गणेशस्य माता।
स्वानन्दे नन्द-रुपे, अनहत-निरते, मुक्तिदे मुक्ति-मार्गे
हंसः सोहं विशाले, वलय-गति-हसे, सिद्ध-देवी समस्ता।
हीं-हीं-हीं सिद्ध-लोके, कच-रुचि-विपुले, वीर-भद्रे नमस्ते॥1॥
ॐ हींकारोच्चारयन्ती, मम हरति भयं, चण्ड-मुण्डौ प्रचण्डे।
खां-खां-खां खड्ग-पाणे, ध्रक-ध्रक ध्रकिते, उग्र-रुपे स्वरुपे॥
हुँ-हुँ हुँकांर-नादे, गगन-भुवि-तले, व्यापिनी व्योम-रुपे।
हं-हं हंकार-नादे, सुर-गण-नमिते, चण्ड-रुपे नमस्ते॥2॥
ऐं लोके कीर्तयन्ती, मम हरतु भयं, राक्षसान् हन्यमाने।
घ्रां-घ्रां-घ्रां घोर-रुपे, घघ-घघ-घटिते, घर्घरे घोर-रावे
निर्मांसे काक-जंघे, घसित-नख-नखा, धूम्र-नेत्रे त्रि-नेत्रे।
हस्ताब्जे शूल-मुण्डे, कुल-कुल ककुले, सिद्ध-हस्ते नमस्ते॥3॥
ॐ क्रीं-क्रीं-क्रीं ऐं कुमारी, कुह-कुह-मखिले, कोकिलेनानुरागे।
मुद्रा-संज्ञ-त्रि-रेखा, कुरु-कुरु सततं, श्री महा-मारि गुह्ये
तेजांगे सिद्धि-नाथे, मन-पवन-चले, नैव आज्ञा-निधाने।
ऐंकारे रात्रि-मध्ये, स्वपित-पशु-जने, तत्र कान्ते नमस्ते॥4॥
ॐ व्रां-व्रीं-व्रूं व्रैं कवित्वे, दहन-पुर-गते रुक्मि-रुपेण चक्रे।
त्रिः-शक्तया, युक्त-वर्णादिक, कर-नमिते, दादिवं पूर्व-वर्णे॥
ह्रीं-स्थाने काम-राजे, ज्वल-ज्वल ज्वलिते, कोशिनि कोश-पत्रे।
स्वच्छन्दे कष्ट-नाशे, सुर-वर-वपुषे, गुह्य-मुण्डे नमस्ते॥5॥
ॐ घ्रां-घ्रीं-घ्रूं घोर-तुण्डे, घघ-घघ घघघे घर्घरान्याङि्घ्र-घोषे।
ह्रीं क्रीं द्रूं द्रोञ्च-चक्रे, रर-रर-रमिते, सर्व-ज्ञाने प्रधाने॥
द्रीं तीर्थेषु च ज्येष्ठे, जुग-जुग जजुगे म्लीं पदे काल-मुण्डे।
सर्वांगे रक्त-धारा-मथन-कर-वरे, वज्र-दण्डे नमस्ते॥6॥
ॐ क्रां क्रीं क्रूं वाम-नमिते, गगन गड-गडे गुह्य-योनि-स्वरुपे।
वज्रांगे, वज्र-हस्ते, सुर-पति-वरदे, मत्त-मातंग-रुढे
स्वस्तेजे, शुद्ध-देहे, लल-लल-ललिते, छेदिते पाश-जाले।
किण्डल्याकार-रुपे, वृष वृषभ-ध्वजे, ऐन्द्रि मातर्नमस्ते॥7॥
ॐ हुँ हुँ हुंकार-नादे, विषमवश-करे, यक्ष-वैताल-नाथे।
सु-सिद्धयर्थे सु-सिद्धैः, ठठ-ठठ-ठठठः, सर्व-भक्षे प्रचण्डे
जूं सः सौं शान्ति-कर्मेऽमृत-मृत-हरे, निःसमेसं समुद्रे।
देवि, त्वं साधकानां, भव-भव वरदे, भद्र-काली नमस्ते॥8॥
ब्रह्माणी वैष्णवी त्वं, त्वमसि बहुचरा, त्वं वराह-स्वरुपा।
त्वं ऐन्द्री त्वं कुबेरी, त्वमसि च जननी, त्वं कुमारी महेन्द्री॥
ऐं ह्रीं क्लींकार-भूते, वितल-तल-तले, भू-तले स्वर्ग-मार्गे।
पाताले शैल-श्रृंगे, हरि-हर-भुवने, सिद्ध-चण्डी नमस्ते॥9॥
हं लं क्षं शौण्डि-रुपे, शमित भव-भये, सर्व-विघ्नान्त-विघ्ने।
गां गीं गूं गैं षडंगे, गगन-गति-गते, सिद्धिदे सिद्ध-साध्ये॥
वं क्रं मुद्रा हिमांशोर्प्रहसति-वदने, त्र्यक्षरे ह्सैं निनादे।
हां हूं गां गीं गणेशी, गज-मुख-जननी, त्वां महेशीं नमामि॥10॥
स्तवन ::
या देवी खड्ग-हस्ता, सकल-जन-पदा, व्यापिनी विशऽव-दुर्गा।
श्यामांगी शुक्ल-पाशाब्दि जगण-गणिता, ब्रह्म-देहार्ध-वासा
ज्ञानानां साधयन्ती, तिमिर-विरहिता, ज्ञान-दिव्य-प्रबोधा।
सा देवी, दिव्य-मूर्तिर्प्रदहतु दुरितं, मुण्ड-चण्डे प्रचण्डे॥1॥
ॐ हां हीं हूं वर्म-युक्ते, शव-गमन-गतिर्भीषणे भीम-वक्त्रे।
क्रां क्रीं क्रूं क्रोध-मूर्तिर्विकृत-स्तन-मुखे, रौद्र-दंष्ट्रा-कराले
कं कं कंकाल-धारी भ्रमप्ति, जगदिदं भक्षयन्ती ग्रसन्ती-
हुंकारोच्चारयन्ती प्रदहतु दुरितं, मुण्ड-चण्डे प्रचण्डे॥2॥
ॐ ह्रां ह्रीं हूं रुद्र-रुपे, त्रिभुवन-नमिते, पाश-हस्ते त्रि-नेत्रे।
रां रीं रुं रंगे किले किलित रवा, शूल-हस्ते प्रचण्डे
लां लीं लूं लम्ब-जिह्वे हसति, कह-कहा शुद्ध-घोराट्ट-हासैः।
कंकाली काल-रात्रिः प्रदहतु दुरितं, मुण्ड-चण्डे प्रचण्डे॥3॥
ॐ घ्रां घ्रीं घ्रूं घोर-रुपे घघ-घघ-घटिते घर्घराराव घोरे।
निमाँसे शुष्क-जंघे पिबति नर-वसा धूम्र-धूम्रायमाने
ॐ द्रां द्रीं द्रूं द्रावयन्ती, सकल-भुवि-तले, यक्ष-गन्धर्व-नागान्।
क्षां क्षीं क्षूं क्षोभयन्ती प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे॥4॥
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रूं भद्र-काली, हरि-हर-नमिते, रुद्र-मूर्ते विकर्णे।
चन्द्रादित्यौ च कर्णौ, शशि-मुकुट-शिरो वेष्ठितां केतु-मालाम्
स्त्रक्-सर्व-चोरगेन्द्रा शशि-करण-निभा तारकाः हार-कण्ठे।
सा देवी दिव्य-मूर्तिः, प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे॥5॥
ॐ खं-खं-खं खड्ग-हस्ते, वर-कनक-निभे सूर्य-कान्ति-स्वतेजा।
विद्युज्ज्वालावलीनां, भव-निशित महा-कर्त्रिका दक्षिणेन॥
वामे हस्ते कपालं, वर-विमल-सुरा-पूरितं धारयन्ती।
सा देवी दिव्य-मूर्तिः प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे॥6॥
ॐ हुँ हुँ फट् काल-रात्रीं पुर-सुर-मथनीं धूम्र-मारी कुमारी।
ह्रां ह्रीं ह्रूं हन्ति दुष्टान् कलित किल-किला शब्द अट्टाट्टहासे॥
हा-हा भूत-प्रभूते, किल-किलित-मुखा, कीलयन्ती ग्रसन्ती।
हुंकारोच्चारयन्ती प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे॥7॥
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं कपालीं परिजन-सहिता चण्डि चामुण्डा-नित्ये।
रं-रं रंकार-शब्दे शशि-कर-धवले काल-कूटे दुरन्ते॥
हुँ हुँ हुंकार-कारि सुर-गण-नमिते, काल-कारी विकारी।
त्र्यैलोक्यं वश्य-कारी, प्रदहतु दुरितं चण्ड-मुण्डे प्रचण्डे॥8॥
वन्दे दण्ड-प्रचण्डा डमरु-डिमि-डिमा, घण्ट टंकार-नादे।
नृत्यन्ती ताण्डवैषा थथ-थइ विभवैर्निर्मला मन्त्र-माला
रुक्षौ कुक्षौ वहन्ती, खर-खरिता रवा चार्चिनि प्रेत-माला।
उच्चैस्तैश्चाट्टहासै, हह हसित रवा, चर्म-मुण्डा प्रचण्डे॥9॥
ॐ त्वं ब्राह्मी त्वं च रौद्री स च शिखि-गमना त्वं च देवी कुमारी।
त्वं चक्री चक्र-हासा घुर-घुरित रवा, त्वं वराह-स्वरुपा॥
रौद्रे त्वं चर्म-मुण्डा सकल-भुवि-तले संस्थिते स्वर्ग-मार्गे।
पाताले शैल-श्रृंगे हरि-हर-नमिते देवि चण्डी नमस्ते॥10॥
रक्ष त्वं मुण्ड-धारी गिरि-गुह-विवरे निर्झरे पर्वते वा।
संग्रामे शत्रु-मध्ये विश विषम-विषे संकटे कुत्सिते वा॥
व्याघ्रे चौरे च सर्पेऽप्युदधि-भुवि-तले वह्नि-मध्ये च दुर्गे।
रक्षेत् सा दिव्य-मूर्तिः प्रदहतु दुरितं मुण्ड-चण्डे प्रचण्डे॥11॥
इत्येवं बीज-मन्त्रैः स्तवनमति-शिवं पातक-व्याधि-नाशनम्।
प्रत्यक्षं दिव्य-रुपं ग्रह-गण-मथनं मर्दनं शाकिनीनाम्॥
इत्येवं वेद-वेद्यं सकल-भय-हरं मन्त्र-शक्तिश्च नित्यम्।
मन्त्राणां स्तोत्रकं यः पठति स लभते प्रार्थितां मन्त्र-सिद्धिम्॥12॥
चं-चं-चं चन्द्र-हासा चचम चम-चमा चातुरी चित्त-केशी।
यं-यं-यं योग-माया जननि जग-हिता योगिनी योग-रुपा॥
डं-डं-डं डाकिनीनां डमरुक-सहिता दोल हिण्डोल डिम्भा।
रं-रं-रं रक्त-वस्त्रा सरसिज-नयना पातु मां देवि दुर्गा॥13॥

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