अश्व

अश्व-THE DIVINE HORSE

CONCEPTS & EXTRACTS IN HINDUISM

By :: Pt. Santosh Bhardwaj

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ॐ गं गणपतये नम:।

अक्षरं परमं ब्रह्म ज्योतीरूपं सनातनम्।

निराकारं स्वेच्छामयमनन्तजम्॥

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥

[श्रीमद्भगवद्गीता 2.47]

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (162) :: ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अश्व, छन्द :- त्रिष्टुप्।
मा नो मित्रो वरुणो अर्यमायुरिन्द्र ऋभुक्षा मरुतः परि ख्यन्।

यद्वाजिनो देवजातस्य सप्तेः प्रवक्ष्यामो विदथे वीर्याणि॥

चूँकि हम यज्ञ में देवजात और द्रुत गति अश्व के वीर कर्म का भजन करते हैं, इसलिए मित्र, वरुण, अर्यमा, आयु, इन्द्र, ऋभुक्षा और वायु आदि सभी देवता सदैव हमारे अनुकूल रहें और हमसे अलग न हो।[ऋग्वेद 1.162.1]

सखा, वरुण, अर्यमा, वायु, इन्द्र और मरुद्गण हमसे नियुक्त न हों। हम देवों के अत्यन्त वेगवान, अश्व के वीरता पूर्ण कर्मों का अनुष्ठान में वर्णन करते हैं।Since, we recite prayers devoted to Dev Jat and the fast moving horses, Mitr, Varun, Aryma, Ayu, Indr, Ribhuksha and Vayu etc. demigods-deities should remain in favour our favour and never move away-depart from us.

यन्निर्णिजा रेक्णसा प्रावृतस्य रातिं गृभीतां मुखतो नयन्ति। 

सुप्राङजो मेम्यद्विश्वरूप इन्द्रापूष्णोः प्रियमप्येति पाथः॥

सुन्दर स्वर्णाभरण से विभूषित अश्व के सामने ऋत्विक् लोग उत्सर्ग के लिए अज अर्थात् बकरे को पकड़कर ले जाते हैं। विविध वर्ण के अज शब्द करते हुए सामने जाते हैं और वह इन्द्र और पूषा के प्रिय हव्य को प्राप्त करते हैं।[ऋग्वेद 1.162.2]

उत्सर्ग :: त्यागना, बलिदान; ejecta, egestion, dedication, devotion, effusion, emission, excreta, excretion, sacrifice.

हम दमकते हुए वस्त्रों और स्वर्ण सहित आभूषणों से अश्व सुसज्जित आगे विभिन्न रंग वाली सामग्री ले जाते हैं। वह इन्द्र और पूषा के लिए प्रिय हो। 

The Ritviz take the goat for sacrifice in front of the horse decorated with golden ornaments. Several species of the goats come forward making sound and become favourite offerings for Indr & Pusha.

एष छागः पुरो अश्वेन वाजिना पूष्णो भागो नीयते विश्वदेव्यः। 

अभिप्रियं यत्पुरोळाशमर्वता त्वष्टेदेनं सौश्रवसाय जिन्वति॥

बलवान् अश्वों के आगे जब यह अज (बकरा) लाया जाता है, तब यजमान इस अश्व के साथ अज को प्रिय लगने वाले पुरोडाष आदि का भाग प्रदान कर यशस्वी होते हैं।[ऋग्वेद 1.162.3]

सब देवगण योग्य पूषा का भाग ले जाते हैं, जिसे त्वष्टा अत्यन्त पुष्टिप्रद बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।

When this goat is brought in front of the powerful-strong horses, the Ritviz make offerings liked by the horses & the goat. 

यद्धविष्यमृतुशो देवयानं त्रिर्मानुषाः पर्यश्वं नयन्ति। 

अत्रा पूष्णः प्रथमो भाग एति यज्ञं देवेभ्यः प्रतिवेदयन्नजः॥

जब ऋत्विक् लोग देवों के लिए प्राप्त करने योग्य अश्व को समय-समय पर तीन बार अग्नि के पास ले जाते हैं, तब पूषा के प्रथम भाग का अज देवों के यज्ञ की बात का प्रचार करके आगे आते हैं।[ऋग्वेद 1.162.4]

जहाँ प्राणी नियत काल में देवताओं के प्राप्त कराने योग्य घोड़े को घुमाते हैं, वहाँ पूषा का भाग देवगणों के यज्ञ को विख्यात करता हुआ चलता है।

When the Ritviz-Brahmans (Priests) bring the horse meant for the demigods-deities, thrice near the fire, they declare the offerings meant for Pusha (his share of offerings in the form of goat) to appreciate-honour the Yagy. It does not mention animal sacrifices. 

होताध्वर्युरावया अग्निमिन्धो ग्रावग्राभ उत शंस्ता सुविप्रः। 

तेन यज्ञेन स्वरंकृतेन स्विष्टेन वक्षणा आ पृणध्वम्॥

होता (देवों को बुलाने वाले), अध्वर्यु (यज्ञ नेता), आवया (हव्य दाता), अग्नि सिद्ध (अग्नि प्रज्वलन कर्त्ता), ग्राव प्राभ (प्रस्तर-द्वारा सोमरस निकालने वाले), शंस्ता (नियमानुसार कर्म का अनुष्ठान करने वाले) और ब्रह्मा (सब यज्ञ कार्यों के प्रधान सम्पादक) प्रसिद्ध, अलंकृत और सुन्दर यज्ञ द्वारा नदियों को (जल से) पूर्ण करें।[ऋग्वेद 1.162.5]

अनुष्ठान :: संस्कार, धार्मिक क्रिया, उत्सव-संस्कार, पद्धति, शास्र विधि, आचार, आतिथ्य सत्कार; rituals, rites, ceremonies.समारोह, संस्कार, अनुष्ठान, विधि, रसम, धर्म क्रिया होता, अध्वर्यु, प्रस्थाता, अग्नीत, ग्राव, स्तुत, प्रशस्ता वे सभी अत्यन्त शोभित हुए हमारी हवियों वाले सस्वर यज्ञ को परिपूर्ण करें। यूप काटने वाले, यूप ढोने वाले, यूप के लिए चषाल को गाढने वाले और अनुष्ठान के लिए अनिवार्य पात्र तैयार करने वाले, सभी का प्रयास हमको उत्साहजनक हो। 

Let the hosts, chief priest, those making offerings, igniting fire, extracting Somras, systematic conducting of rituals, rites, ceremonies; chief organisers fill the rivers with water in a beautifully organised and decorated Yagy. 

यूपव्रस्का उत ये यूपवाहाश्चषालं ये अश्वयूपाय तक्षति। 

ये चार्वते पचनं संभरन्त्युतो तेषामभिगूर्तिर्न इन्वतु॥

जो यूप के योग्य वृक्ष काटते हैं, जो यूप वृक्ष ढोते हैं, जो अश्व को बाँधने के यूप के लिए काष्ठ मण्डप आदि तैयार करते हैं, जो अश्व के लिए पाक पात्र का संग्रह करते हैं, इन सबके द्वारा हमारे लिए हितकारी कार्य हों।[ऋग्वेद 1.162.6]

यूप :: यज्ञ में वह खंभा जिसमें बलि का पशु बाँधा जाता है; toggle.  

यूप काटने वाले, यूप ढोने वाले, यूप के लिए चषाल को गढ़ने वाले और अनुष्ठान के लिए अनिवार्य पात्र तैयार करने वाले, सभी का प्रयास हमको उत्साह जनक हो।

Let the efforts of those who cut the tree and make the Yup-pole (toggle) to tie animals in a Yagy, carriers of Yup, boundary to hold the horse etc. be beneficial to us.

उप प्रागात्सुमन्मेऽधायि मन्म देवानामाशा उप वीतपृष्ठः। 

अन्वेनं विप्रा ऋषयो मदन्ति देवानां पुष्टे चकृमा सुबन्धुम्॥ 

हे मनोहर पृष्ठ विशिष्ट अश्व! देवों की आशा पूर्ति के लिए पधारें। देवों की पुष्टि के लिए हम उसे अच्छी तरह बाँधेंगे। मेधावी ऋत्विक् लोग आनन्दित हों। हमारा मनोरथ स्वयं सिद्ध हों।[ऋग्वेद 1.162.7]

उज्जवल पीठ वाला घोड़ा देवगण की तरफ मुख करके खड़ा है। मेरा श्लोक रुचिकर है। मेधावी ऋषि इसका समर्थन करते हैं। देवगण को संतुष्ट करने के लिए हमने यह उत्तम श्लोक तैयार किया है।

Hey horse with strong back! Come to fulfil the desires of the demigods-deities. We will tie him properly for the satisfaction of the demigods-deities. Let the brilliant Ritviz be happy. Let our purpose be accomplished automatically. 

य द्वाजिनो दाम संदानमर्वतो या शीर्षण्या रशना रज्जुरस्य। 

यद्वा घास्य प्रभृतमास्येतृणं सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु॥

जिस रस्सी से घोड़े की गर्दन बाँधी जाती है, जिससे उसके पैर बाँधे जाते हैं, जिस रस्सी से उसका सिर बाँधा जाता है, वे सब रस्सियाँ और अश्व के मुख में डाली जाने वाली घासें देवों के पास आयें।[ऋग्वेद 1.162.8]

गतिवान घोड़े की रास और मुँह में डाली हुई घास आदि या घोड़े की जो वस्तुएँ हों, वे सभी देवगणों की हों।

Let the cord with which the neck, legs and the head of the horse are tied and grass to be offered to the horse (put in its mouth) come to the demigods-deities.

यदश्वस्य क्रविषो मक्षिकाश यद्वा स्वरौ स्वधितौ रिप्तमस्ति। 

यद्धस्तयोः शमितुर्यन्नखेषु सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु॥

अश्व का जो कच्चा माँस ही मक्खी खाती हैं, काटने या साफ करने के समय हथियार में जो लग जाता है और छेदक के हाथों और नाखूनों में जो लग जाता है, वह सब देवों के पास जावें।[ऋग्वेद 1.162.9]

जो कच्चा भाग मक्खियाँ खाती हैं, जो भाग तापदायक कर्मों में लग जाता है तथा जो कार्यरत नरों के हाथ में लग जाता है, वे सभी देवताओं यज्ञ को परिपूर्ण करें।Let raw meat eaten by the flies, remains over the cutters & cleaners and that which remains in the hands & the nails of the cutter, reach the demigods-deities. 

यदूवध्यमुदरस्यापवाति य आमस्य क्रविषो गन्धो अस्ति। 

सुकृता तच्छमितारः कृण्वन्तूत मेधं शृतपाकं पचन्तु॥

उदर अर्थात् पेट का जो अजीर्ण अंश बाहर हो जाता है और अपक्व माँस का जो लेशमात्र बचा रहता है, उसे छेदक निर्दोष अर्थात् पवित्र करके उस माँस को देवों के लिए पकावें।[ऋग्वेद 1.162.10]

थोड़े पके अन्न और गंध परिपूर्ण भक्षण सामग्री को सिद्ध करने वाले श्रेष्ठ प्रकार से शुद्ध करके प्रस्तुत करें।

The undigestible segment of the stomach and the uncooked meat should be purified and prepared for the demigods-deities.

यत्ते गात्रादग्निना पच्यमानादभि शूलं निहतस्यावधावति। 

मा तद्भूम्यामा श्रिषन्मा तृणेषु देवेभ्यस्तदुशद्भ्यो रातमस्तु॥

हे अश्व! आग में पकाते समय आपके शरीर से जो रस निकलता और जो अंग शूल से आबद्ध रहता है, वह मिट्टी में गिरकर तिनकों में न मिल जाय। यज्ञ भाग चाहने वाले देवों का वह आहार बनें।[ऋग्वेद 1.162.11]

हे अश्व! क्रोधाग्नि द्वारा जलते हुए तेरे शरीर से जो अत्यन्त स्वेद-रूप रस टपके वह भूमि सात न हो जाये, बल्कि उससे देव गण का उत्साह वर्द्धन हो।

Hey horse! While cooking the juice-liquid that comes off of your body; should not be mixed with the straw, when it falls over the ground. It should become the food of those demigods-deities who desire the offerings of the Yagy. 

ये वाजिनं परिपश्यन्ति पक्कं य ईमाहुः सुरभिर्निर्हरति। 

ये चार्वतो मांसभिक्षामुपासत उतो तेषामभिगूर्तिर्न इन्वतु॥

जो लोग चारों ओर से अश्व का पकना देखते हैं, जो कहते हैं कि गन्ध मनोहर है, देवों को दें और जो माँस-भिक्षा की आशा करते हैं, उनका संकल्प हमारा ही है।[ऋग्वेद 1.162.12]

घोड़े को अत्यन्त आक्रोशित देखते हैं। वे उनके सम्मुख से हट जाने को कहते हैं। तब उसके महान दिखाई देने के कारण समस्त पराक्रमी उसे ग्रहण की विनती करते हैं, इससे भी अश्वों, स्वामी और पराक्रमी का उत्साह वर्द्धन होता है।

Those who see the horse being cooked from all sides say that the smell is good. Give it to the demigods-deities. They expect some meat as begging. Their determination-idea (desire) matches us.

Meat eating is taboo in Hinduism. If the demigods-deities desire meat, they must have been meat eaters in their earlier births. Bhavishy Puran says that at least two viceroys (Christians) of British empire and Akbar (a Muslim) had attained heaven. Heaven is a place to satisfy sensualities, sexuality, passions, lasciviousness. There one can not make efforts for Moksh-emancipation. Ultimately such souls return to earth. There are references in scriptures that the sacrificial horse was converted into camphor by using Mantr Shakti.

यन्नीक्षणं मांस्पचन्या उखाया या पात्राणि यूष्ण आसेचनानि।  ऊष्मण्यापिधाना चरूणामङ्काः सूनाः परि भूषन्त्यश्वम्॥

माँस पाचन की परीक्षा के लिए जो काष्ठाभानु लगाया जाता है, जिन पात्रों में रस रक्षित होता है, जिन आच्छादनों से गर्मी रहती है, जिस वेतस शाखा से अश्व का अवयव पहले चिह्नित किया जाता है और जिस क्षुरिका से चिह्नानुसार अवयव काटे जाते हैं, वो सब अश्व का माँस प्रस्तुत करते हैं।[ऋग्वेद 1.162.13]

मन को अच्छे लगने वाले, परिपाक करने वाले, सिंचन योग्य जो पात्र हैं, इनसे अश्व को सुभूषित करते हैं।

The wooden staff used for examining meat, the pots in which meat is saved are kept warm. The branch of the Vetas tree (Cane) is used to identify the organ of the horse which has to be cut to extract meat.

निक्रमणं निषदनं विवर्तनं यच्च पड्वीशमर्वतः। 

यच्च पयौ यच्च घासिं जघास सर्वा ता ते अपि देवेष्वस्तु॥

जहाँ अश्व गये थे, जहाँ बैठा था, जहाँ लेटा था, जिससे उसके पैर बाँधे गये थे, जो उसने पिया था तथा जो घास उसने खाई थी, वो सब देवों के पास जावें।[ऋग्वेद 1.162.14]

अश्व का भागना बैठना, लेटना, जल पीना, खाना जो कुछ कर्म हैं, वे सभी देवगणों के आधीन हैं। 

Let every thing like the places visited by the horse, where it laid to rest, where its feet were tied, the water drunk by it and the grass consumed by it should go to the demigods-deities.

मा त्वाग्निर्ध्वनयीद्भूमगन्धिर्मोखा भ्राजन्त्यभि विक्त जघ्रिः। 

इष्टं वीतमभिगूर्तं वषट्कृतं तं देवासः प्रति गृभ्णन्त्यश्वम्॥

हे अश्वगण! आपका निकलना, आनन्दित होना, पलटना, पीना-खाना आदि समस्त क्रियाएँ देवताओं के संरक्षण में हो।[ऋग्वेद 1.162.15]

हे अश्व! तुझे अग्नि का आँखों में घुस जाने वाला धुँआ कभी पीड़ित न करे। तुम सुन्दर अश्व को देवता स्वीकार करो।

Hey (sacrificial) horse! All of your activities-actions like movement, happiness, turning, eating & drinking etc. must be under the supervision of the deities-demigods.

यदश्वाय वास उपस्तृणन्त्यधीवासं या हिरण्यान्यस्मै। 

संदानमर्वन्तं पड्वीशं प्रिया देवेष्वा यामयन्ति॥

जिस आच्छादन योग्य वस्त्र से अश्व को आच्छादित किया जाता है, उसको जो सोने के गहने दिये जाते हैं, जिससे उसका सिर और पैर बाँधे जाते हैं, वो समस्त देवों के लिए प्रिय है। ऋत्विक लोग देवताओं को यह सब प्रदान करते है।[ऋग्वेद 1.162.16]

जो अश्वों को वस्त्राभूषणों से सुसज्जित करते हैं, वे देवगण को हर्षित करते हैं।The cloth used for covering the horse, fixing the ornaments used to decorate it, for covering its head and tying its legs; are liked by the demigods-deities. The Ritviz make all these offerings to the demigods-deities.

यत्ते सादे महसा शूकृतस्य पाष्ण्र्यावा कशया वा तुतोद। 

स्रुचेव ता हविषो अध्वरेषु सर्वा ता ते ब्रह्मणा सूदयामि॥

हे अश्व! जोर से नाक से ध्वनि करते हुए गमन करने पर चाबुक के आघात से जो कष्ट उत्पन्न हुआ है, वो सब कष्ट मैं उसी प्रकार मंत्र द्वारा आहुति में देता हूँ, जिस प्रकार से स्रुक द्वारा हव्य दिया जाता है।[ऋग्वेद 1.162.17]

हे अश्व! तेरे हाँफने से या थम जाने पर तुझे जो दुःख हुआ है, उसे मैं मंत्र द्वारा निवृत करता हूँ। 

Hey horse! I relieve you of the pain which was caused to you by striking you with the whip, with the help of Mantr.

चतुस्त्रिंशद्वाजिनो देवबन्धोवङ्क्रीरश्वस्य स्वधितिः समेति। 

अच्छिद्रा गात्रा वयुना कृणोत परुष्परुरनुघुष्या वि शस्त॥

हे ऋषियों! देवों के मित्र इस अश्व के चौतीस अंगों को अच्छी प्रकार प्राप्त करने वाले आप, इनके प्रत्येक अंग को स्वस्थ बनाकर समस्त त्रुटियों को दूर कर दें।[ऋग्वेद 1.162.18]

हे पराक्रमियों! वेगवान घोड़े की पीठ की पसलियों पर अस्त्र पहुँच सकता है। इसलिए उसके शरीर का निवारण न करो। उसे अभ्यास द्वारा पूर्ण शिक्षित बनाओ।

Hey sages! Make the 34 organs of this horse healthy-perfect to make it acceptable to the demigods-deities.

एकस्त्वष्टुरश्वस्या विशस्ता द्वा यन्तारा भवतस्तथ ऋतुः। 

या ते गात्राणामृतुथा कृणोमि ताता पिण्डानां प्र जुहोम्यग्नौ॥

सूर्य रूपी अश्व को सम्वत्सर विभाजित करता है। इसके दो विभाग उसके नियन्ता होते हैं अर्थात् उत्तरायण और दक्षिणायन। वह दो मासों की ऋतुओं में विभाजित होता है। यज्ञ में शरीर के अलग-अलग अंगों की पुष्टि के उद्देश्य से ऋतु सम्बन्धी अनुकूल पदार्थों की आहुतियाँ प्रदान करते हैं।[ऋग्वेद 1.162.19]

संवत्सर :: Samvatsar  is a Sanskrat term for a solar year. In the medieval era literature, a Samvatsar refers to the Jovian year, that is a year based on the relative position of the planet Jupiter, while the solar year is called Varsh. A Jovian year is not equal to a solar year based on the relative position of Earth and Sun. A Jovian year is defined in Indian calendars as the time Brahaspati (Jupiter) takes to transit from one constellation to the next relative to its mean motion.

हे अश्व! चालाक नर तुम पर निमंत्रण रखते हैं। तेरे अंगों को मैं कुशल नियन्ता के अधिकार में करूँ।

Horse in the form of path of the Sun is divided by the solar year into two parts the Northern Hemisphere and the Southern Hemisphere. These two are further sub divided into seasons. While conducting the Yagy offerings are made as per the season to make the body organs strong.

मा त्वा तपत्प्रिय आत्मापियन्तं मा स्वधितिस्तन्वआ तिष्ठिपत्ते। 

मा ते गृध्नुरविशस्तातिहाय छिद्रा गात्राण्यसिना मिथू कः॥

हे अश्व! आप जिस समय देवों के पास जाते हो, उस समय आपको प्रिय देह आपको कष्ट प्रदान न करें। आपके शरीर को खड्ग अधिक क्षति ग्रस्त न करे। माँस-लोलुप और अकुशल व्यक्ति भी आपके पापों के अतिरिक्त आपके (अन्य) अंगों पर खड्ग का प्रहार न सके।[ऋग्वेद 1.162.20]

हे घोड़े! चलते समय तुम्हें कोई दुःख न दे। तेरे हृदय में शस्त्र प्रवेश न करें। कोई मूर्ख प्राणी लोभ वश तेरे तन पर आघात न करे।

Hey horse! None should harm you, when you visit the demigods-deities. Your body should remain unaffected by the attack of sword etc. weapons. Those desirous of your meat and the unskilled people should not be able to strike your organs. 

न वा उ एतन्प्रियसे न रिष्यसि देवाँ इदेषि पथिभिः सुगेभिः। 

हरी ते युञ्जा पृषती अभूतामुपास्थाद्वाजी धुरि रासभस्य॥

हे अश्व! आप न तो मरते हो और न संसार आपकी हिंसा करता है। आप उत्तम मार्ग से देवों के पास जाते हैं। इन्द्रदेव के हरि नाम के दोनों घोड़े और मरुतों के पृषती नाम के दोनों वाहन आपके रथ में नियोजित किये गये हैं। अश्वनी कुमारों के वाहन रासभ के स्थान पर आपके रथ में कोई शीघ्रगामी रथ नियोजित किया जायगा।[ऋग्वेद 1.162.21]

हे अश्व! तेरे सखा रहेंगे। अग्नि देवों के रथ में रास की जगह पर भी कोई अश्व जोता जायेगा।

Hey horse! Neither you die nor the world harm-kill you. You move to the demigods-deities through excellent means-path (ways). The horses named Hari and the chariots named Prashti of Marud Gan have been deployed in your chariot. Some other vehicle will be deployed in your chariot instead of the vehicle named Rasabh of the Ashwani Kumars.  

सुगव्यं नो वाजी स्वश्र्व्यं पुंसः पुत्राँ उत विश्वापुषं रयिम्। अनागास्त्वं नो अदितिः कृणोतु क्षत्रं नो अश्वो वनतां हविष्मान्॥

यह अश्व हमें गौ और अश्व से युक्त तथा संसार रक्षक, धन प्रदान करते हुए हमें पुत्र प्रदान करे। तेजस्वी अश्व हमें पाप कर्मों से बचावें। हविर्भूत अश्व हमें शारीरिक बल प्रदत्त करें।[ऋग्वेद 1.162.22]

तेजस्वी :: शानदार, शोभायमान, अजीब, हक्का-बक्का करने वाला, नादकार, तेज़, शीघ्र, कोलाहलमय, उग्र, प्रज्वलित, तीक्ष्ण, उत्सुक, कलह प्रिय; majestic, full of aura-brightness, stunning, rattling, fiery.

वह अश्व सुन्दर गवादि परिपूर्ण धनो से एवं पुत्रादि से परिपूर्ण करने वाला हो। अदिति हमारे पापों को दूर करें। यह अन्न परिपूर्ण धन हमको शक्ति प्रदान करे।

Let this horse grant us cows & horses, protect the world, give us money and son. The majestic (stunning, rattling, fiery) should protect us from sins and grant us might, strength & power.

In this Strotr, its felt that the translation to Hindi is improper-incorrect.

ऋग्वेद संहिता, प्रथम मण्डल सूक्त (163) ::  ऋषि :- दीर्घतमा, देवता :- अश्व, छन्द :- त्रिष्टुप्।

This Strotr is devoted to Ashw (Horse) a demigod-deity.

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यदक्रन्दः प्रथमं जायमान उद्यन्त्समुद्रादुत वा पुरीषात्।

श्येनस्य पक्षा हरिणस्य बाहू उपस्तुत्यं महि जातं ते अर्वन्॥

हे अश्व! आपका महान् जन्म सबकी स्तुति योग्य है। अन्तरिक्ष या जल से पहले उत्पन्न होकर यजमान के अनुग्रह के लिए महान शब्द करते हो। श्येन पक्षी के पंखों की तरह आपके पंख है और हिरण के पैरों की तरह आपके भी पैर हैं।[ऋग्वेद 1.163.1]

हे अश्व! तुम्हारा जन्म भी कथन योग्य है। तुम अंतरिक्ष या जल से निकलकर अत्यन्त ध्वनि करते हो। तुम्हारे बाज के तुल्य पंख और हिरण के तुल्य पाँव हैं।
Hey Ashw! Your birth-appearance, deserve prayer. You make loud sound for the sake of the host-Ritviz prior to the appearance of the space and the water. Your feather is like Shyen-a bird and your feet are like that of the deer. 

यमेन दत्तं त्रित एनमायुनगिन्द्र एणं प्रथमो अध्यतिष्ठत्। 

गन्धर्वो अस्य रशनामगृभ्णात्सूरादश्वं वसवो निरष्ट॥

यम या अग्नि ने अश्व दिये, त्रित या वायु ने उसे रथ में नियोजित किया। रथ पर पहले इन्द्र चढ़े और गन्धर्वों या सोमों ने उसकी लगाम को धारण किया। वसुओं द्वारा सूर्यमण्डल से निकाले जाने वाले इस अश्व की हम स्तुति करते हैं।[ऋग्वेद 1.163.2]

यम द्वारा दिये गये इस घोड़े को त्रित ने जोड़ा। इन्द्रदेव ने इस पर प्रथम बार सवारी की। गन्धर्व ने उसकी लगाम पकड़ी।

The horses were granted by Yam & Agni Dev, Trit or Vayu deployed them in the chariote. Indr rode the chariote first and the Gandharvs & Soms held the reins. We pray to this chariote drawn by the Vasus through the Sury Mandal (Solar System).

असि यमो अस्यादित्यो अर्वन्नसि त्रितो गुह्येन व्रतेन।

असि सोमेन समया विपृक्त आहुस्ते त्रीणि दिवि बन्धनानि॥

हे अश्व! आप यम, आदित्य और गोपनीय व्रतधारी त्रित है। आप सोम के साथ संयुक्त हैं। पुरोहित लोग कहते हैं कि द्युलोक में आपके तीन बन्धन स्थान हैं।[ऋग्वेद 1.163.3]

Hey Ashw! You are Yam, Adity and the Trit-trio, holding-conducting the Vrat secretly. You are associated with Som. The Purohit-priests says that you are available at three places in the heavens.

त्रित :: एक ऋषि का नाम जो ब्रह्मा जी के मानस पुत्र माने जाते हैं, गौतम मुनि के तीन पुत्रों में से एक जो अपने दोनों भइयों से अधिक तेजस्वी और विद्वान् थे। एक देवता, जिन्होंने सोम बनाया था।

त्रित मुनि का यज्ञ :: भरतश्रेष्ठ! जैसे पापी मनुष्य अपने-आपको नरक में डूबा हुआ देखता है, उसी प्रकार तृण, वीरुध और लताओं से व्याप्त हुए उस कुँए में अपने आपको गिरा देख मृत्यु से डरे और सोमपान से वंचित हुए विद्वान त्रित अपनी बुद्धि से सोचने लगे कि मैं इस कुँए में रहकर कैसे सोमरस का पान कर सकता हूँ। इस प्रकार विचार करते-करते महातपस्वी त्रित ने उस कुँए में एक लता देखी, जो दैव योग से वहाँ फैली हुई थी। मुनि ने उस बालू भरे कूप में जल की भावना करके उसी में संकल्प द्वारा अग्नि की स्थापना की और होता आदि के स्थान पर अपने आपको ही प्रतिष्ठित किया। तत्पश्चात् उन महातपस्वी त्रित ने उस फैली हुई लता में सोम की भावना करके मन ही मन ऋग, यजु और साम का चिन्तन किया। नरेश्वर! इसके बाद कंकड़ या बालू-कणों में सिल और लोढ़े की भावना करके उस पर पीस कर लता से सोमरस निकाला। फिर जल में घी का संकल्प करके उन्होंने देवताओं के भाग नियत किये और सोमरस तैयार करके उसकी आहुति देते हुए वेद-मन्त्रों की गम्भीर ध्वनि की। राजन! ब्रह्म वादियों ने जैसा बताया है, उसके अनुसार ही उस यज्ञ का सम्पादन करके की हुई त्रित की वह वेदध्वनि स्वर्ग लोक तक गूँज उठी। महात्मा त्रित का वह महान यज्ञ जब चालू हुआ, उस समय सारा स्वर्ग लोक उद्विग्न हो उठा, परन्तु किसी को उसका कोई कारण नहीं जान पड़ा। तब देव गुरु बृहस्पति ने वेद मन्त्रों के उस तुमुलनाद को सुनकर देवताओं से कहा, “देवगण! त्रित मुनि का यज्ञ हो रहा है, वहाँ हम लोगों को चलना चाहिये”।वे महान तपस्वी हैं। यदि हम नहीं चलेंगे तो वे कुपित होकर दूसरे देवताओं की सृष्टि कर लेंगे। बृहस्पति जी का यह वचन सुनकर सब देवता एक साथ हो उस स्थान पर गये, जहाँ त्रित मुनि का यज्ञ हो रहा था। वहाँ पहुँच कर देवताओं ने उस कूप को देखा, जिसमें त्रित मौजूद थे। साथ ही उन्होंने यज्ञ में दीक्षित हुए महात्मा त्रित मुनि का भी दर्शन किया। वे बड़े तेजस्वी दिखायी दे रहे थे। उन महाभाग मुनि का दर्शन करके देवताओं ने उनसे कहा, “हम लोग यज्ञ में अपना भाग लेने के लिये आये हैं”। उस समय महर्षि ने उनसे कहा, “देवताओं! देखो, में किस दशा में पड़ा हूँ। इस भयानक कूप में गिरकर अपनी सुधबुध खो बैठा हूँ”। महाराज! तदनन्तर त्रित ने देवताओं को विधिपूर्वक मन्त्रोच्चारण करते हुए उनके भाग समर्पित किये। इससे वे उस समय बड़े प्रसन्न हुए। विधि पूर्वक प्राप्त हुए उन भागों को ग्रहण करके प्रसन्न चित्त हुए देवताओं ने उन्हें मनोवान्छित वर प्रदान किया। मुनि ने देवताओं से वर माँगते हुए कहा, “मुझे इस कूप से आप लोग बचावें तथा जो मनुष्य इसमें आचमन करे, उसे यज्ञ में सोमपान करने वालों की गति प्राप्त हो”। राजन! मुनि के इतना कहते ही कुँए में तरंगमालाओं से सुशोभित सरस्वती लहरा उठी। उसने अपने जल के वेग से मुनि को ऊपर उठा दिया और वे बाहर निकल आये। फिर उन्होंने देवताओं का पूजन किया।[महाभारत शल्य पर्व 36.20-55]

हे देवों! तुमने इसे सूर्य से ग्रहण किया। हे अश्व! तू यम रूप है, सूर्य रूप है और गोपनीय नियम वाला त्रित है। तू सोम से युक्त है आसमान में तेरे बंधन को तीन स्थान बताए गए हैं। 

त्रीणि त आहुर्दिवि बन्धनानि त्रीण्यप्सु त्रीण्यन्तः समुद्रे। 

उतवे मे वरुण्श्छन्त्स्यर्वन्यत्रा त आहुः परमं जनित्रम्॥

हे अश्व! द्युलोक में आपके तीन बन्धन (वसुगण, सूर्य और द्युस्थान) है। जल या पृथ्वी में आपके तीन बन्धन (अन्न, स्थान और बीज) हैं। अन्तरिक्ष में आपके तीन बन्धन (मेघ, विद्युत् और स्तनित) है। आप ही वरुण हैं। पुरातत्वविदों ने जिन सब स्थानों में आपके परम जन्म का निर्देश किया है, वह आप हमें बताते हैं।[ऋग्वेद 1.163.4]

स्तनित :: बादल की गरज, मेघ गर्जन, बिजली की कड़क, ताली बजाने का शब्द, करतल ध्वनि, गरजता हुआ, गर्जित, आवाज़ या ध्वनि करता हुआ,  ध्वनित, शब्दायमान; rattling sound of the clouds.हे अश्व! नभ जल और अंतरिक्ष में तेरे तीन तीन बंधन स्थान बताए गए हैं। तू ही वरुण और जहाँ पर तेरा जन्म स्थान है, उसे बताते हैं।

Hey Ashw! You are tied to Vasu Gan, Sury-Sun and the horizon in space. Over the earth & the water you are present in food grains, place-site & the seeds. In the space you are tied to clouds, electricity and the rattling sound of he clouds. You are a form of Varun Dev. The historians-scriptures tells us the places of your origin.

इमा ते वाजिन्नवमार्जनानीमा शफानां सनितुर्निधाना। 

अत्रा ते भद्रा रशना अपश्यमृतस्य या अभिरक्षन्ति गोपाः॥

हे अश्व! मैंने देखा है, ये सब स्थान आपके अंगशोधक हैं। जिस समय आप यज्ञांश का भोजन करते हैं, उस समय आपके पैरों के चिह्न यहाँ पड़ते है। आपकी जो फलप्रद लगाम सत्यभूत यज्ञ की रक्षा करती है, उसे भी यहाँ देखा है।[ऋग्वेद 1.163.5]

हे अश्व! ये तुमको शुद्ध करने वाली जगह है। ये तुम्हारे पद-चिह्नों वाले स्थान हैं। यहाँ तुम्हारी कल्याणकारी रस्सियाँ रखी हैं। यज्ञ पोषक इनकी सुरक्षा करते देखे जाते हैं।

Hey Ashw (horse)! All these places (items, things) cleanse your body. I have seen the spots-places (points) where hoofs fall, when you eat the offerings in the Yagy and your reins protecting the truthful Yagy.

आत्मानं ते मनसारादजानामवो दिवा पतयन्तं पतङ्गम्। 

शिरो अपश्यं पथिभिः सुगेभिररेणुभिर्जेहमानं पतत्रि॥

हे अश्व! दूर से ही मन द्वारा मैंने आपके शरीर को पहचाना। आप नीचे से अन्तरिक्ष मार्ग में सूर्य मण्डल में जाते हैं। मैंने देखा आपका सिर धूलि शून्य, सुखकर मार्ग से शीघ्र गति से क्रमश: ऊपर उठता है।[ऋग्वेद 1.163.6]

हे अश्व! मैंने तुम्हारे शरीर को अपने मन से ही पहचान लिया है। तुमको आसमान में उड़ते हुए देखा है। तुम धूल से रहित राह से जाने का प्रयत्न करते हो। तुम द्रुत वेग से चलते हुए सिर को ऊंचा उठाते हो।

Hey Ashw! I have recognised your body though a distance with the help of my mind (insight, innerself, consciousness).You move to the Sury Mandal (core-inside of the Sun, where life forms are present) from the lower space. I saw-found your clean head without dust, rising-moving upwards comfortably with fast-high speed.

अत्रा ते रूपमुत्तममपश्यं जिगीषमाणमिष आ पदे गोः। 

यदा ते मर्तो अनु भोगमानळाद्विसिष्ठ ओषधीरजीगः॥

मैं देखता हूँ, आपका उत्कृष्ट रूप पृथ्वी पर चारों ओर अन्न के लिए आगमन करता है। हे अश्व! जिस समय मनुष्य भोग लेकर आपके पास जाता है, उस समय आप ग्रास योग्य तृण आदि का भक्षण करते हैं।[ऋग्वेद 1.163.7]

हे अश्व! तुम्हारा महान शरीर धरा पर अन्नो को जीतने के लिए विचरण करता है। जब मनुष्य तुम्हारे भक्षणार्थ तृणादि लाता है, तब तुम उसे खुशी-खुशी भक्षण करते हो।

Hey Ashw! I see your excellent body coming over to the earth for food grains-stuff. Hey Ashw! When humans comes to you with offerings, you eat suitable mouthful straw (single bite).  

अनु त्वा रथो अनु मर्यो अर्वन्ननु गावोऽनु भगः कनीनाम्। 

अनु व्रातासस्तव सख्यमीयुरनु देवा ममिरे वीर्यं ते॥

हे अश्व! आपके पीछे-पीछे अश्व जाता है, मनुष्य आपके पीछे जाते हैं, स्त्रियों का सौभाग्य आपके पीछे जाता है। दूसरे अश्वों ने आपको अनुगमन करके मित्रता प्राप्त की है। देवगण आपके वीरकर्म की प्रशंसा करते हैं।[ऋग्वेद 1.163.8]

अश्व! तुम्हारे पीछे रथ चलते हैं। मनुष्य, गौ आदि भी तुम्हारे पीछे ही चलते हैं। स्त्रियों का सौभाग्य तुम्हारे पीछे चलता है। अन्य घोड़े तुम्हारे संग चलते हुए सखा भाव रखते हैं।

Hey Ashw! Other Ashw-horse, humans, fortune-good luck of women follows you. Other horses followed you and became friendly with you. The demigods-deities praise your valour.

VALOUR :: निर्भयता, साहस, शूर-वीरता, हिम्मत; दिलेरी, निर्भयता, पराक्रम,  बहादुरी,  वीरता,  शूरता,  साहस, वीरत्व; bravery, hardihood, heroine, pluck, stoutness, valiance, chivalry, gallantry, metal, grit, stout-heart, courageousness, daring, effrontery, intrepidity, courage, fearlessness, courageousness, braveness, intrepidity, pluck, pluckiness, nerve, backbone, spine, heroism, stout-heartedness, manliness, audacity, boldness, spirit, fortitude, mettle, dauntlessness.

हिरण्यशृङ्गोऽयो अस्य पादा मनोजवा अवर इन्द्र आसीत्। 

देवा इदस्य हविरद्यमायन्यो अर्वन्तं प्रथमो अध्यतिष्ठत्॥

अश्व का सिर सोने का है और उसके पैर लोहे के तथा वेगशाली हैं। वेग के सम्बन्ध में तो इन्द्रदेव भी लघु है। देवगण अश्व के हव्य भक्षण के लिए यहाँ पधारते हैं, किन्तु इन्द्रदेव पहले से ही यहाँ उपस्थित रहते हैं।[ऋग्वेद 1.163.9]

देवगण तुम्हारे पीछे वीर्य, कार्य के प्रशंसक हैं। इस घोड़े का सिर स्वर्ण से सजा हुआ है। इसके पैरों में लोहे का आवरण चढ़ा है। देवता भी इससे आकर्षित होते हैं। इन्द्र इस अश्व पर सबसे पहले सवार हुए थे। 

The head of the fast running horse-Ashw is golden and its feet are made of iron. Its faster than Dev Raj is respect of speed. The demigods-deities present themselves here to ensure that the horse eats-accepts the offerings, while Dev Raj Indr is already present.

ईर्मान्तासः सिलिकमध्यमासः सं शूरणासो दिव्यासो अत्याः। 

हंसाइव श्रेणिशो यतन्ते यदाक्षिषुर्दिव्यमज्ममश्वाः॥

सूर्य देव के रथ को खींचने वाले और सदैव चलने वाले पुष्ट जंघाओं और वक्ष वाले अश्व पंक्ति बद्ध होकर हंसों के तुल्य चलते हैं, तब वे स्वर्ग मार्ग में दिव्यता को प्राप्त होते हैं।[ऋग्वेद 1.163.10]

जब यह अश्व भव्य मार्ग में चलता है तब उसके साथी घोड़ों के साथ चलती हुई पंक्ति हंसों को पंक्ति जैसी लगती है।When the horses pulling the chariote of Bhagwan Sury Narayan having strong thighs and strong chest, moving in a que like swans attain divinity through the heavens. 

तव शरीरं पतयिष्णवर्वन्तव चित्तं वातइव ध्रजीमान्। 

तव शृङ्गाणि विष्ठिता पुरुत्रारण्येषु जर्भुराणा चरन्ति॥

हे अश्व! आपका शरीर शीघ्रगामी है, आपका चित्त भी वायु भी की तरह शीघ्रगन्ता है। आपकी विशेष प्रकार से स्थित दीप्तियाँ जंगलों में दावानल के रूप में विद्यमान है।[ऋग्वेद 1.163.11]

हे अश्व! तू उड़ने में समर्थवान है। तू पवन वेग से चलता है। तू विविध स्थानों में भ्रमणशील है।

Hey fast moving, horse-Ashw! Your are fast moving like wind and capable of flying. You travel through various places like forests-jungles. You are present in the forests like the fire which engulfs the jungles.

उप प्रागाच्छसनं वाज्यर्वा देवद्रीचा मनसा दीध्यान:।  

अजः पुरो नीयते नाभिरस्यानु पश्चात्करेंयो यन्ति रेभाः॥

वह द्रुतगामी अश्व आसक्त चित्त से देवों का ध्यान करते हुए वध स्थान में जाता है। उसके मित्र अज उसके आगे-आगे ले जाया जाता है। स्तोता पीछे-पीछे पाठ करते हुए चलते हैं।[ऋग्वेद 1.163.12]

कुशल घोड़ा युद्ध क्षेत्र की तरफ जाता हुआ वंदना के योग्य होता है। अन्य अश्व जो उसके संग जन्म लेते हुए भी इसका बंधु रूप है, संग चलता है। मेधावी जन उसके संग आगे चलते हैं।

That fast moving horse moves to the site of sacrifice-slaughter remembering the demigods-deities. Its friend goat moves ahead of him. The devotees follows him chanting Shloks. 

उप प्रागात्परमं यत्सवस्थमवां अच्छा पितरं मातरं च ।

देवातमी हि गम्या अथा शास्ते दाशुषे वार्याणि॥

द्रुतगामी अश्व पिता और माता को प्राप्त करने के लिए उत्कृष्ट और एक निवास योग्य स्थान पर गमन करता है। हे याजक! आप भी अच्छे गुणों से युक्त होकर देवत्व को प्राप्त करते हुए देवताओं से अपार वैभव प्राप्त करें।[ऋग्वेद 1.163.13]

ऐसा परम श्रेष्ठ स्थान को प्राप्त हुआ वीर देवगणों के समीप पहुँचता है। उसे प्रदान करने वाला घोड़ा का मालिक यजमान वरणीय धन प्राप्त करता है।

The fast moving horse-Ashw moves to the excellent place for living, with his parents. Hey Yagy performers, you too should have righteous-virtuous qualities to attain demigodhood and all sorts of amenities like the demigods-deities.

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